PR Sreejesh last match: पेरिस ओलंपिक (Paris Olympics 2024) खेलों में टीम हरमनप्रीत भले ही सेमीफाइनल में विश्व चैंपियन जर्मनी से 2-3 से हार कर स्वर्णिम दौर से बाहर हो गई हो, लेकिन स्पेन के खिलाफ कांस्य पदक की लड़ाई 2-1 से जीतकर ओलंपिक में 52 साल बाद लगातार दूसरा पदक अपने नाम कर लिया. और अभियान की शुरुआत से लेकर आखिर तक जो बात फिजा में बहती रही, वह रहे अपना आखिरी मैच खेल रहे गोलकीपर परट्टु रवींद्रन श्रीजेश (PR Sreejesh super defence). अगर कुछ दशकों तक क्रिकेट में एक "वॉल" (राहुल द्रविड़) दुनिया के तूफानी गेंदबाजों से लोहा लेते हुए भारत की ढाल बन गए, तो हॉकी टीम के लिए टर्फ पर यही काम पी. आर. श्रीजेश ने किया. भारतीय टीम के लिए करीब 18 साल के करियर में पी. आर. श्रीजेश गोलपोस्ट के सामने तूफानी स्पीड से आए शॉटों के सामने एक ऐसी वॉल बन गए, जिसे डिगााना या गिराना दुनिया के तमाम धुरंधरों के लिए बहुत ही मश्किल काम रहा. श्रीजेश ने पहले साल 2020 में टोक्यो ओलंपिक में करीब 48 साल बाद मिले कांस्य पदक में इस बात को बखूबी साबित किया, तो पेरिस ओलंपिक में भी श्रीजेश ने कमोबेश ऐसा ही प्रदर्शन कर दिखा कि हॉकी टीम को आने वाले कई सालों तक उनकी कमी खलने जा रही है.
इन तीन खास गुणों से यूएसपी बनी इस वॉल की !
श्रीजेश ने भारतीय हॉकी की वॉल का तमगा पाया, तो उसके पीछे तीन बहुत ही खास गुण रूपी सीमेंट रहे, जिन्हें उन्हें तूफानी शॉटों के सामने करीब दो दशकों तूफानी प्रहारों के तक किसी चट्टान की तरह डटे रहे. इसमें सबसे बड़ी वजह बना उनका फोकस. मैचों में चाहे दर्शकदीर्घा में सौ लोग बैटे रहे या फिर दस हजार, लेकिन श्रीजेश के मुंह से लगातार बैक-अप की आवाजें और साथियों को "गालियां", हमेशा यह बताती रहीं कि हालात जैसे जैसे भी हों, लेकिन उनका फोकस कभी नहीं डगमगाया.
कुछ ऐसा ही उनके कॉन्फिडेंस के बारे में कहा जा सकता है. कभी श्रीजेश ने इस बारे में कहा था, "अगर आप गोलकीपर बनना चाहते हैं, तो आपको थोड़ा अलग होने की जरुरत होती है. आपके पास थोड़ा पैदाइशी हुनर, थोड़ा निडर और मैच जीतने के बाद हेडलाइन में नाम न आने पर सहज होना की जरुरत पड़ती है." दुनिया के सर्वश्रेष्ठ गोलची के अनुसार, "शुरुआती दिनों में मैं हॉकी इसलिए खेला क्योंकि राज्य टीम में आने पर ग्रेस मार्क्स मिलते थे. और मैंने पाया कि इसके लिए हॉकी टीम उकने लिए सबसे आसान रास्ता है. वहीं गोलकीपिंग इसलिए चुनी क्योंकि मैं ज्यादा भागदौड़ से बचना चाहता था. इस चयन में मैं एकदम अकेला था, लेकिन मैं इससे जड़ रहा. यह मेरा आत्मविश्वास था जो मेरे सफर में मेरी सबसे बड़ी ताकत साबित हुआ."
जिस तीसरे गुण ने श्रीजेश को विश्व स्तरीय गोलकीपर में बदला, वह रही उनकी निर्भीकता. दो राय नहीं को गोकीपर की जिंदगी बहुत ही खतरनाक हो सकती है. कभी उनसे सवाल किया गया था, "जब गेंद उनकी तरफ आती है, तो क्या उन्हें डर लगता है?' इस पर श्रीजेश ने जवाब दिया था, "कभी-कभी ट्रेनिंग के दौरान. अगर कोई बहुत ज्यादा नजदीक से शॉट लगाता है, तो डर लगता है. इस पर मैं उस पर चिल्ला पड़ता हूं कि तुम मुजे चोटिल कर सकते हो, लेकिन यह सिर्फ ट्रेनिग की बात है. मैच के दौरान मेरे ज़हन में कभी यह नहीं आया कि मुझे गेंद लग जाएगी या गेंद कितनी तेज आ रही है. सिर्फ एक ही बात दिमाग में चलती रहती है कि मझे गोल बचाना है". और श्रीजेश की यूएसपी का यह तीसरा सबसे बड़ा एक और गुण है, जिसने उन्हें बारतीय हॉकी की वॉल में तब्दील कर दिया.
ये तीन खेल छोड़ने के बाद थामी थी हॉकी
बचपन के दिनों में श्रीजेश का हॉकी के प्रति रुझान नहीं था. शुरुआत उन्होंने फर्राटा धावक (स्प्रिंटर) से की, फिर वह लांग-जंप की ओर मुड़े, तो फिर इस गोलकीर ने वॉलीबॉल में हाथ आजमाए. लेकिन जब उन्होंने 12 साल की उम्र में तिरुवनंतुरम के जीवी राजा स्पोर्ट्स कॉलेज मे दाखिला लिया, तो वहां कोच के गोलकीपर बनने के सुझाव पर श्रीजेश ने तुरंत अमल रूपी मुहर लगा. और यहां से मैच दर मैच, टूर्नामेट-दर-टूर्नामेंट श्रीजेश एक ऐसी "वॉल" में तब्दील हो गए, जिसे भेदने में दुनिया के दिग्गज हिट और ड्रैगफ्लिक विशेषज्ञों के पसीने छूट गए.
केवल दूसरे भारतीय खिलाड़ी, पहले गोलकीपर
साल 2021 में श्रीजेश की गोलकीपिंग का लोहा पूरी दुनिया ने माना, जब उन्हें इस साल उन्हें विश्व गेम्स एथलीट ऑफ द ईयर के प्रतिष्ठित अवार्ड से नवाजा गया. यह उपलब्धि हासिल करने वाले वह भारत के केवल दूसरे हॉकी खिलाड़ी बने. उनसे पहले महिला कप्तान रानी रामपाल को साल 2019 में किए प्रदर्शन के लिए पहली बार यह सम्मान मिला था. इस अवार्ड के लिए हुई वोटिंग में श्रीजेशन ने स्पेन के क्लाइंबर अल्बर्टो गिनेज लोपेज और इटली के वुशू खिलाड़ी मिशेल गियोरडानो को मात दी. श्रीजेश को लोपेज के मुकाबले दोगुने से भी ज्यादा 1,27, 647 वोट मिले थे. पुरस्कार के लिए इंटरेशनल हॉकी फेडरेशन द्वारा नामित किए जाने वाले श्रीजेश इकलौते खिलाड़ी थे.
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