Paris olympics 2024: पेरिस ओलिंपिक शुरू होने में कुछ ही दिन बचे हैं. बता दें कि पिछले ओलंपिक में भारत के नाम 7 मेडल थे जिसमें एक गोल्ड मेडल, 2 सिल्वर और 4 ब्रान्ज मेडल शामिल थे. 2020 टोक्यो ओलंपिक में भाला फेंक प्रतियोगिता में निरज कुमार ने गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रचा था. टोक्यो 2020 में भारत के लिए मेडल लाने का काम मीराबाई चानू (सिल्वर), लवलीना बोरगोहेन (ब्रॉन्ज़), पीवी सिंधु (ब्रॉन्ज़) , रवि कुमार (सिल्वर) , भारतीय हॉकी टीम( ब्रॉन्ज), बजरंग पुनिया (ब्रॉन्ज) और नीरज चोपड़ा (गोल्ड) ने किया था. इस बार देखना दिलस्प होगा कि क्या नीरज चोपड़ा फिर से भारत को गोल्ड दिला पाएंगे. इस बार पेरिस ओलंपिक में एक बार फिर पीवी सिंधु से मेडल की उम्मीद है. नीरज के अलावा पुरुष हॉकी टीम से भी मेडल की उम्मीद होगी, इस बार भारतीय हॉकी टीम गोल्ड जीतने की भरसक कोशिश करेगी. भारत ने 1928, 1932, 1936, 1948, 1952, 1964, 1980 में गोल्ड मेडल जीता था. इसके अलावा 1960 में सिल्वर मेडल और 1968, 1972 और 2020 खेलों में ब्रॉन्ज मेडल जीतने में भारतीय हॉकी टीम सफल रही थी.
पहलवानी में विनेश फोगट से उम्मीद है. सात्विक-चिराग की जोड़ी पर भी नजर इस बार रहने वाली है. इसके अलावा बॉक्सिंग में लवलीना-निकहत से भी मेडल की उम्मीद भारतीय फैन्स को होगी. बता दें कि भारत के नाम ओलंपिक इतिहास में अबतक केवल 35 मेडल हैं जिसमें 10 गोल्ड मेडल, 9 सिल्वर और 16 ब्रॉन्ज मेडल हैं. ऐसे में आज जानते हैं ऐसे एथलीटों के बारे में जिन्होंने भारत को ऐतिहासिक मेडल दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी.
नॉर्मन प्रिचार्ड , भारत को पहला मेडल दिलाने वाले 'विदेशी' एथलिट
साल 1900 में खेले गए समर ओलंपिक में भारत को पहली बार मेडल मिला था. 1900 के ओलंपिक में भारत ने पहली बार ओलंपिक में हिस्सा लिया था और पहले ही बार में भारत के खाते में दो मेडल आए थे. ये दोनों ही मेडल इंडिविजुअल गेम्स में नॉर्मन प्रिचार्ड ने भारत को दिलाया था. बता दें कि नॉर्मन प्रिचर्ड ब्रिटिश भारतीय थी. 23 जून, 1877 को कोलकाता में जन्में प्रिचार्ड ब्रिटेन के नागरिक थे. 1900 में में ओयोजित ओलिंपिक में उन्होंने भारत को रिप्रेजेंट किया था. प्रिचार्ड ने 200 मी. और 200 मी. हर्डल में सिल्वर मेडल जीतकर इतिहास रचा था. ओलंपिक 1990 में नॉर्मन प्रिचर्ड ने 60 मी, 100 मी, 200 मी (फर्राट), 110 मी और 200 मी. हर्डल रेस में हिस्सा लिया था.
प्रिचार्ड ओलिंपिक में मेडल जीतने वाले ना सिर्फ पहले इंडियन, बल्कि पहले एशियन भी थे. बता दें कि उनका होम क्लब प्रेसीडेंसी एथलेटिक क्लब बंगाल था, इसलिए IOC ने उन पदकों का श्रेय भारत को दिया. प्रिचर्ड ने कोलकाता में बर्ड एंड कंपनी के लिए काम किया, जहां अमिताभ बच्चन ने भी अपना कॉर्पोरेट करियर शुरू किया था. बाद में नॉर्मन प्रिचर्ड इंग्लैंड चले गए और फिर हॉलीवुड में भी जाकर काम किया. जहां उन्होंने नॉर्मन ट्रेवर नाम से 'ब्यू गेस्ट' और 'मैड ऑवर' जैसी हिट फ़िल्मों में काम किया.
1928 जयपाल सिंह मुंडा: हॉकी में भारत को पहला ओलिंपिक गोल्ड दिलाने वाला कप्तान (1928 Jaipal Singh Munda: Hockey)
जयपाल सिंह मुंडा साल 1928 में भारतीय हॉकी टीम के कप्तान थे. जयपाल एक पशुपालक थे, जिन्होंने अपनी एथलेटिक और शैक्षिक क्षमताओं से मिशनरियों को इतना प्रभावित किया कि उन्होंने उन्हें ऑक्सफोर्ड में उच्च अध्ययन के लिए इंग्लैंड भेज दिया, जहां उन्होंने अर्थशास्त्र में स्नातक किया. बाद में उन्होंने भारत की पहली संविधान सभा में अपने लोगों का प्रतिनिधित्व किया था. हालांकि, उन्होंने 1928 ओलंपिक में खेले गए फाइनल मैच का हिस्सा नहीं थे, जिस मैच में ध्यानचंद ने दो गोल किए थे और नीदरलैंड के खिलाफ जीत दिलाकर भारत को हॉकी में पहला गोल्ड मेडल दिलाया था. बता दें कि जयपाल सिंह मुंडा को आदिवासियों का मसीहा माना जाता था. साल 1938 में जयपाल सिंह मुंडा ने आदिवासी महासभा की स्थापना की थी.
1932 रूप सिंह: हॉकी (1932 Roop Singh: Hockey)
साल 1932 ओलंपिक में हॉकी टूर्नामेंट में सिर्फ़ तीन टीमें खेली थीं, जबकि 1928 में 5 टीमें खेली थीं. भारत ने 1932 ओलंपिक में जापान को 11-1 और अमेरिका को 24-1 से हराया. ध्यानचंद के भाई रूप सिंह ने दो मैचों में 13 गोल किए और टॉप स्कोरर बने थे. टीम को लॉस एंजिल्स की यात्रा के दौरान देश भर में और कई बंदरगाहों पर प्रदर्शनी मैच खेलने पड़े ताकि लॉस एंजिल्स में अपनी यात्रा और ठहरने का खर्च उठा सकें. उन दिनों मेडल जीतने के लिए कम से कम एक मैच खेलना ज़रूरी था, इसलिए भारतीय टीम ने अपने दूसरे मैच के लिए पूरी टीम को घुमाया ताकि सभी खेलने के लिए योग्य हो सकें.
1936 ध्यान चंद: (1936 Dhyan Chand)
हॉकी में मेजर ध्यान चंद ने बर्लिन के खिलाफ फाइनल में तीन गोल किए, जिसमें भारत ने 8-1 से जीत दर्ज की. ध्यानचंद का जर्मन गोलकीपर टिटो वार्नहोल्ट्ज़ से टक्कर के बाद उनका एक दांत टूट गया था लेकिन चिकित्सा सहायता लेने के बाद वे वापस मैदान पर उतरे और फिर दूसरे हाफ में एक बड़ा फैसला किया था. कथित तौर पर कहा जाता है कि तेज़ दौड़ने के लिए ध्यान चंद ने नंगे पैर खेलना शुरू कर दिया था.. कुल मिलाकर, भारतीय हॉकी टीम नेइस ओलंपिक में पांच मैचों में कुल 38 गोल किए और सिर्फ़ एक गोल खाया था.
1952 केडी जाधव: कुश्ती (1952 KD Jadhav: Wrestling)
महाराष्ट्र के सतारा में पहलवानों के परिवार में जन्मे खशाबा दादासाहेब जाधव ने पहली बार 1948 ओलंपिक में भाग लिया, जहां उन्होंने छठा स्थान हासिल किया था. बता दें कि उन्होंने कभी भी मैट पर कुश्ती नहीं लड़ी थी. 1952 में, उनकी यात्रा का खर्च मुख्य रूप से उनके और आस-पास के गांवों में क्राउडफंडिंग से उठाया गया था. चूंकि वे अभी भी छोटे थे, इसलिए गंगाराम कॉलेज के प्रिंसिपल ने अपना घर गिरवी रख दिया और जाधव के कोच ने उन्हें हेलसिंकी भेजने के लिए व्यक्तिगत कर्ज लिया. बता दें कि पिछले मुकाबले के बाद उन्हें अनिवार्य आधे घंटे का आराम नहीं दिया गया, जिसके कारण वे सोवियत रशीद मम्मादबेयोव से हार गए, लेकिन अपने शेष मुकाबले जीतकर उन्होंने स्वतंत्र भारत का पहला व्यक्तिगत ब्रान्ज मेडल जीतने का कमाल किया था. ओलंपिक के बाद सतारा में उनका भव्य स्वागत किया गया था. 151 बैलगाड़ियों के जुलूस ने उनका स्वागत किया था.
1996 लिएंडर पेस: टेनिस (1996 Leander Paes: Tennis)
लिएंडर पेस के पिता, डॉ. वेस पेस, 1972 में ब्रॉन्ज मेडल जीतने वाली भारतीय ओलंपिक हॉकी टीम के साथ थे और उनकी मां जेनिफर बास्केटबॉल में भारत का प्रतिनिधित्व किया था. 1996 की शुरुआत में लिएंडर 138वें स्थान पर थे, और फिर भी वे टॉप 3 में जगह बनाने में सफल रहे, लेकिन सेमीफाइनल में अगासी से हार गए थे. पेस की कलाई की नस ब्रॉन्ज मेडल मैच के दौरान टूट गई, लेकिन किसी तरह वे फर्नांडो मेलिगेनी को हराने के लिए काफी देर तक कोर्ट पर टिके रहे थे.
2000 कर्णम मल्लेश्वरी: भारोत्तोलन (2000 Karnam Malleswari: Weightlifting)
जब मल्लेश्वरी 15 साल की थी तब उनको महान कोच लियोनिद तारानेंको ने पहली बार देखा था, वो अपनी बहन के साथ दिल्ली में एक राष्ट्रीय शिविर में गई थी, सिडनी ओलंपिक में, कर्णम मल्लेश्वरी ,हंगरी की एर्ज़बेट मार्क और चीन की लिन वेनिंग "स्नैच श्रेणी" के बाद संयुक्त रूप से पहले स्थान पर थीं. 'क्लीन एंड जर्क' में मल्लेश्वरी ने 137.5 किलोग्राम वजन उठाने की कोशिश की थी, जिसे उन्होंने अभ्यास में उठाया था, लेकिन वह पोडियम में ऐसा करने से चूक गईं और तीसरे स्थान पर रहीं.
2008 अभिनव बिंद्रा: शूटिंग (2008 Abhinav Bindra: Shooting)
साल 2004 ओलंपिक में, बिंद्रा ने क्वालीफायर में एक नया ओलंपिक रिकॉर्ड बनाया, लेकिन अंत में 7वें स्थान पर रहे. बीजिंग ओलंपिक के लिए अपनी तैयारी में, उन्होंने एक कमांडो कोर्स में भाग लिया, विशाल आयोजन स्थल की नकल करने के लिए मैरिज हॉल में शूटिंग का अभ्यास किया और अपने द्वारा इस्तेमाल किए गए हर पेलेट का वजन किया. 2008 के ओलंपिक में अंतिम राउंड में फिन हेनरी हकीकिन के साथ पहले स्थान पर रहे, बिंद्रा ने लगभग 10.7 का स्कोर करके गोल्ड मेडल जीता था और भारत के लिए इतिहास रचा था.
2016 पीवी सिंधु: बैडमिंटन
पीवी सिंधु के माता-पिता दोनों ही वॉलीबॉल के पूर्व स्टार हैं (उनके पिता पीवी रमना ने अर्जुन पुरस्कार विजेता रहे हैं. सिंधु को रियो ओलंपिक में 9वीं वरीयता दी गई थी, लेकिन उन्होंने फाइनल में अपनी जगह बनाई, जहां वह शीर्ष वरीयता प्राप्त कैरोलिना मारिन से हार गईं थी.
2021 नीरज चोपड़ा: भाला फेंक (2021 Neeraj Chopra: Javelin throw)
नीरज चोपड़ा ने ओलंपिक में इतिहास रचा है. चोपड़ा ने टोक्यो ओलंपिक के फाइनल में अपने दूसरे प्रयास में 87.58 मीटर की दूरी तक भाला फेंककर गोल्ड मेडल जीतने कमाल किया था. एथलेटिक्स में गोल्ड मेडल जीतने वाले पहले भारतीय ओलंपियन भी बने थे. उन्होंने अपनी जीत स्प्रिंटर्स मिल्खा सिंह और पीटी उषा को समर्पित क थी, जो दोनों ही एथलेटिक्स में ओलंपिक मेडल जीतने से चूक गए थे. इस बार भी नीरज चोपड़ा से बड़ी उम्मीद है. पेरिस ओलंपिक में नीरज चोपड़ा एक बार फिर भारत के लिए पदक के सबसे प्रबल दावेदार हैं. टोक्यो ओलंपिक के गोल्ड मेडलिस्ट नीरज चोपड़ा ने वर्ल्ड चैम्पियनशिप 2023 में भी गोल्ड मेडल जीता था. इसके अलावा वह डायमंड लीग 2022 में भी गोल्ड जीत चुके हैं। उन्होंने 2022 के एशियन गेम्स में भी गोल्ड मेडल जीता था.क्या नीरज चोपड़ा पेरिस ओलंपिक में अपने खिताब को डिफेंड कर पाएंगे, यह देखना दिलचस्प होगा.
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