
बैंकॉक एशियाड से, 1998 में, भारतीय टीम 7 गोल्ड सहित 35 मेडल लेकर लौट रही थी. दिल्ली में हुए एशियाई खेलों के बाद ये भारतीय दल की इन खेलों में सबसे बड़ी कामयाबी थी (दिल्ली में भारतीय दल ने 13 गोल्ड सहित 57 मेडल जीते थे.) तब टीवी न्यूज़ में खेल पत्रकारिता लुप्त होने से पहले एक ऐसा दौर था जब खिलाड़ियों के विदेश से जीत कर लौटने पर पत्रकार अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट जाकर खिलाड़ियों का इंटरव्यू लेते थे. भारतीय टीम के कई खिलाड़ी एयरपोर्ट से बाहर आ रहे थे और पत्रकार आपस में पूछ रहे थे,'ये डिंको सिंह कौन है?'विजेताओं के इस समूह के बीच से डिंगको बेहद सकुचाये से बाहर आये. बहुत लजाते हुए मीडिया से संक्षेप में ही अपने अनुभव बांटे और पास में खड़ी बस में जाकर बैठ गये. डिंको ने 28 साल बाद विदेशी ज़मीन पर एशियाड में भारत के लिए पहला गोल्ड जीता था. लेकिन ना कोई अभिमान ना दिखावा. शायद डिंको को भी ये भी अहसास नहीं था कि उन्होंने कितना बड़ा कारनामा कर दिखाया है. उनसे पहले 1966 और 1970 में एशियाड में हवा सिंह ने गोल्ड जीतने के कारनामे किये जबकि 1982 में दिल्ली में कौर सिंह ने गोल्ड जीता था और भारत के लिए एशियाड में बॉक्सिंग का गोल्ड जीतना बेहद बड़ी चुनौती मानी जाती थी. डिंको को साल 1998 में अर्जुन और 2013 में पद्मश्री से नवाजा गया.
Shri Dingko Singh was a sporting superstar, an outstanding boxer who earned several laurels and also contributed to furthering the popularity of boxing. Saddened by his passing away. Condolences to his family and admirers. Om Shanti.
— Narendra Modi (@narendramodi) June 10, 2021
मोदी और राष्ट्रपति कोविंद ने दी बॉक्सर डिंको सिंह को श्रद्धांजलि, पीएम ने खेलों का सुपरस्टार बताया
इस दौरान सबसे ज़्यादा धूम भारतीय हॉकी टीम की थी जिसने 32 साल बाद एशियाड का गोल्ड जीता था. दिवंगत कोच एमके कौशिश की अगुआई में धनराज पिल्लै, मो. रियाज़, आशीष बल्लाल, अनिल ऑल्ड्रिन, बलजीत सिंह ढिल्लों और दिलीप टिर्की जैसे सितारों से सजी ये टीम सबकी निगाहों में थी. इसके अलावा एथलेटिक्स में 2 गोल्ड जीतने वाली ज्योतिर्मय सिकदर, क्यू स्पोर्ट में दो गोल्ड जीतने वाले अशोक शांडिल्य और गीत सेठी और भारतीय कबड्डी टीम को कहीं ज़्यादा शोहरत हासिल थी. लेकिन डिंको अपनी सादगी की वजह से इन सभी स्टार्स के बीच सबसे अलग नज़र आये.
भारतीय बॉक्सिंग संघ के पूर्व सचिव ब्रिगेडियर (रिटा.) मुरली राजा बताते हैं कि कैसे एका-एक डिंको बॉक्सिंग की दुनिया में चमकते दिखाई दिए. वो बताते हैं, " नेवी के देवेन्द्रो थापा अटलांटा ओलिंपिक्स से लौटे थे. 2 महीने बाद ही मुंबई के मलाड में INS हमला में सर्विसेज़ चैंपियनशिप में डिंको ने भी हिस्सा लिया. सबको अंदाज़ा था कि देवेन्द्र सर्विसेज़ के चैंपियन रहे हैं, नेशनल चैंपियन हैं और अटलांटा ओलिंपिक्स से हाल ही में लौटे हैं तो यहां भी आसानी से जीत जाएंगे. लेकिन 18 साल के डिंको अपना पहला सीनियर मुक़ाबला खेल रहे थे.
I'm deeply saddened by the demise of Shri Dingko Singh. One of the finest boxers India has ever produced, Dinko's gold medal at 1998 Bangkok Asian Games sparked the Boxing chain reaction in India. I extend my sincere condolences to the bereaved family. RIP Dinko pic.twitter.com/MCcuMbZOHM
— Kiren Rijiju (@KirenRijiju) June 10, 2021
मुक़ाबला शुरू होते ही 20 सेकेंड के अंदर नॉकआउट पंच लगाया और देवेंद्रो गिर गये. सबको लगा कि तुक्का लग गया है. लेकिन डिंको ने तीनों ही राउंड में ऐसा ही किया और बॉक्सिंग सर्किट में स्टार बन गये." अगले दो साल डिंको के लिए बेहद शानदार रहे. साल 1997 में बैंकॉक में हुए किंग्स कप में ऑस्ट्रेलिया, थाइलैंड, रूस और कनाडा जैसी कई मज़बूत टीमें आईं. डिंको यहां भी चैंपियन बने. विदेशी मीडिया ने डिंको को बड़ा स्टार बना दिया. उनकी नज़र में डिंको भारतीय बॉक्सिंग का भविष्य थे. लेकिन भारतीय मीडिया की नज़र तब भी उनपर नहीं पड़ी.
डिंको 1998 में क्वालालंपुर में हुए कॉमनवेल्थ खेलों में हार गए और इसका उन्हें बड़ा ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ा. भारतीय सरकार ने उनका नाम एशियाड में जाने को क्लियर ही नहीं किया. तब बॉक्सिंग संघ के अध्यक्ष रहे अशोक मट्टू ने उनपर दांव लगाया और सरकार से उन्हें फ़ेडरेशन के खर्चे पर एशियाड भेजे जाने की अनुमति ले ली. 1998 के बेंकॉक एशियाड में डिंको की टक्कर घरेलू स्टार मुक्केबाज़ सोंटाया वोंगप्रेट्स से भी हुई. भरे हुए स्टेडियम में फ़ैन्स अपने मुक्केबाज़ की हौसलाअफ़ज़ाई लिए शोर मचा रहे थे. लेकिन डिंको को मेज़बान देश की भाषा की नहीं समझ होने की वजह से लगा कि वो उनके लिए शोर मचा रहे हैं. डिंको पूरे जोश से लड़े और छा गये. उसके बाद फ़ाइनल मैच उनके लिए आसान साबित हुआ. डिंगको का नाम इतिहास में दर्ज हो चुका था.
बॉक्सिंग संघ के पूर्व सचिव ब्रिगेडियर मुरली राजा कहते हैं, "उन दिनों खिलाड़ियों को अंतर्राष्ट्रीय एक्सपोज़र और ट्रेनिंग की ऐसी सुविधाएं नहीं थीं. वरना गुरुचरण सिंह और डिंको यकीनन ओलिंपक पदक जीतने का माद्दा रखते थे. " बीजिंग ओलिंपिक्स की तैयारी के दौरान डिंको एक बार फिर एनआईएस पटियाला में नज़र आये. तब वो बॉक्सिंग की कोचिंग कर रहे थे. विजेन्दर सिंह और अखिल कुमार जैसे बॉक्सर्स के लिए वो प्रेरणा की वजह थे. उनकी इस टीम पर पैनी नज़र थी लेकिन वो टीम में दखलंदाज़ी नहीं करते थे. मणिपुर के जांबाज़ डिंको ने कोविड को भी मात देदी लेकिन अपने आख़िरी दिन कैंसर से जूझते रहे और सिर्फ़ 42 साल की उम्र में उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया.
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