वाराणसी:
क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया के सर्वे के बाद घोषित हुई सूची में शामिल 73 बड़े शहरों में बनारस 65वें स्थान पर खिसक गया है। यही नहीं, बनारस यूपी के चार सबसे बड़े शहरों में भी सबसे गंदा शहर साबित हुआ है। संस्कृति, अध्यात्म और शिक्षा के नाते जिस शहर कि चर्चा पूरी दुनिया में होती हो, उसके दामन में लगा गंदगी का दाग नहीं मिट पा रहा है।
इसकी इस 'उपलब्धि' पर अखबार भी तमाम आर्टिकलों से भरे पड़े हैं, जिसमें कुछ की हेडलाइन रही 'धत्त... फिर रह गए सबसे पीछे', 'बनारस अब भी सबसे गंदे शहरों की सूची में', 'स्वच्छता सूची में भी वाराणसी रहा फिसड्डी'... अखबारों की ये हेडलाइन बनारस की उस बेबसी को बयान कर रही हैं, जिसने उसे स्वच्छता की रैंकिंग में तमाम दावों के बाद भी आखिरी पायदान पर खड़े रहने को मजबूर कर दिया है।
बनारस को दुनिया के नक्शे में सबसे साफ-सुथरा शहर बनाने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी ने इसकी गलियों में झाड़ू लगाए। अस्सी घाट पर फावड़ा चलाया। इतना ही नहीं ये मुहिम फीकी न पड़ जाए, इसलिए 'सफाई के नवरत्न' भी बनारस में ही घोषित किए। लेकिन बनारस के गली-मुहल्लों में पड़ा कूड़ा बताता है कि प्रधानमंत्री की सारी कवायद बेमानी साबित हुई।
शहर के मेयर राम गोपाल मोहले कहते हैं कि स्वच्छता अभियान का जो पैमाना था डोर टू डोर कलेक्शन, सेग्रीगेशन, सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट, इस पर पिछली सरकारों ने कोई काम नहीं किया था। 2009 में सीवर लाइन डाली पर STP नहीं बना... करसंडा प्लांट हमारा 2011 से बंद है। प्लान का काम चालू नहीं। हमारा डोर टू डोर कलेक्शन 2011 से बंद है, तो जिस पर नंबर मिलना था, उन नंबरों के आधार पर हमारा नंबर कम है।
गौरतलब है कि 19 लाख की आबादी वाले इस शहर में हर रोज़ कूड़ा की निकासी 600 मीट्रिक टन होती है। 500 मीट्रिक टन कूड़ा उठाने का दावा है, लेकिन रमना डम्पिंग क्षेत्र का रास्ता खराब है और ग्रामीणों के विरोध से वहां कूड़ा नहीं जा रहा। कूड़ा घरों में 23 बंद हैं, सिर्फ दो खुले हैं। लिहाजा हर रोज़ 600 मीट्रिक टन निकलने वाला कूड़ा सड़कों और गलियों के बीच लोगों के नाक में दम किए हुए है। इसके न उठ पाने की लाचारी नगर निगम के अधिकारियों में भी दिखाई पद रही है।
नगर निगम वाराणसी के सहायक नगर अधिकारी बीके द्विवेदी साफ कहते हैं कि कूड़े के निस्तारण में हमारी वैधानिक समस्या है। कोर्ट में केस है, जमीन का भी विवाद है। इस वजह से भी हम कूड़े का निस्तारण नहीं कर सकते हैं। जमीन मिल जाती तो हमारे प्लांट लग सकते हैं। हम इसके लिए प्रयासरत है।
कूड़े का निस्तारण न हो पाने की वजह से उसे इकट्ठा कर शहर में ही जला दिया जाता है। इस वजह से जहरीला धुआं बनारस की हवाओं को जहरीला भी बना रहा है। इस धूल को मापने के लिए प्रधानमंत्री की योजना के तहत ही बनारस के अर्दली बाजार में सूचकांक के सेंसर लगाया गया। इसके आंकड़े चौंकाने वाले आए। इसमें पार्टिकल पीएम 10 की मात्रा का औसत 244 माइक्रॉन प्रति घन सेंटीमीटर है। यह न्यूनतम 110 और अधिकतम 427 दर्ज़ किया गया। इसका स्तर 60 माइक्रॉन प्रति घन सेंटीमीटर से कम होना चाहिए।
इसी तरह 10 माइक्रॉन से छोटे आकार के धूल के कण मानक से 7 गुना ज़्यादा पाए गए। इसी क्रम में पीएम 2.5 की मात्रा का औसत मिला 220। चौबीस घंटे में इसका न्यूनतम 50 और अधिकतम 500 रिकॉर्ड किया गया, जबकि इसकी मात्रा 40 से कम होनी चाहिए। ये बहुत खतरनाक स्थिति है, जो बताती है कि बनारस की हवा सांस लेने लायक नहीं है।
स्वच्छता के आखिरी पायदान पर खड़े बनारस में तमाम वादे धरे के धरे रह गए। अगर अब भी कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया, तो बनारस में पड़ा ये कूड़ा व्यंग्य से हमसे यही कहेगा, 'हम प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र के कूड़ा हैं, है किसी में हिम्मत कि हमें हाथ लगा दे!'
इसकी इस 'उपलब्धि' पर अखबार भी तमाम आर्टिकलों से भरे पड़े हैं, जिसमें कुछ की हेडलाइन रही 'धत्त... फिर रह गए सबसे पीछे', 'बनारस अब भी सबसे गंदे शहरों की सूची में', 'स्वच्छता सूची में भी वाराणसी रहा फिसड्डी'... अखबारों की ये हेडलाइन बनारस की उस बेबसी को बयान कर रही हैं, जिसने उसे स्वच्छता की रैंकिंग में तमाम दावों के बाद भी आखिरी पायदान पर खड़े रहने को मजबूर कर दिया है।
बनारस को दुनिया के नक्शे में सबसे साफ-सुथरा शहर बनाने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी ने इसकी गलियों में झाड़ू लगाए। अस्सी घाट पर फावड़ा चलाया। इतना ही नहीं ये मुहिम फीकी न पड़ जाए, इसलिए 'सफाई के नवरत्न' भी बनारस में ही घोषित किए। लेकिन बनारस के गली-मुहल्लों में पड़ा कूड़ा बताता है कि प्रधानमंत्री की सारी कवायद बेमानी साबित हुई।
शहर के मेयर राम गोपाल मोहले कहते हैं कि स्वच्छता अभियान का जो पैमाना था डोर टू डोर कलेक्शन, सेग्रीगेशन, सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट, इस पर पिछली सरकारों ने कोई काम नहीं किया था। 2009 में सीवर लाइन डाली पर STP नहीं बना... करसंडा प्लांट हमारा 2011 से बंद है। प्लान का काम चालू नहीं। हमारा डोर टू डोर कलेक्शन 2011 से बंद है, तो जिस पर नंबर मिलना था, उन नंबरों के आधार पर हमारा नंबर कम है।
गौरतलब है कि 19 लाख की आबादी वाले इस शहर में हर रोज़ कूड़ा की निकासी 600 मीट्रिक टन होती है। 500 मीट्रिक टन कूड़ा उठाने का दावा है, लेकिन रमना डम्पिंग क्षेत्र का रास्ता खराब है और ग्रामीणों के विरोध से वहां कूड़ा नहीं जा रहा। कूड़ा घरों में 23 बंद हैं, सिर्फ दो खुले हैं। लिहाजा हर रोज़ 600 मीट्रिक टन निकलने वाला कूड़ा सड़कों और गलियों के बीच लोगों के नाक में दम किए हुए है। इसके न उठ पाने की लाचारी नगर निगम के अधिकारियों में भी दिखाई पद रही है।
नगर निगम वाराणसी के सहायक नगर अधिकारी बीके द्विवेदी साफ कहते हैं कि कूड़े के निस्तारण में हमारी वैधानिक समस्या है। कोर्ट में केस है, जमीन का भी विवाद है। इस वजह से भी हम कूड़े का निस्तारण नहीं कर सकते हैं। जमीन मिल जाती तो हमारे प्लांट लग सकते हैं। हम इसके लिए प्रयासरत है।
कूड़े का निस्तारण न हो पाने की वजह से उसे इकट्ठा कर शहर में ही जला दिया जाता है। इस वजह से जहरीला धुआं बनारस की हवाओं को जहरीला भी बना रहा है। इस धूल को मापने के लिए प्रधानमंत्री की योजना के तहत ही बनारस के अर्दली बाजार में सूचकांक के सेंसर लगाया गया। इसके आंकड़े चौंकाने वाले आए। इसमें पार्टिकल पीएम 10 की मात्रा का औसत 244 माइक्रॉन प्रति घन सेंटीमीटर है। यह न्यूनतम 110 और अधिकतम 427 दर्ज़ किया गया। इसका स्तर 60 माइक्रॉन प्रति घन सेंटीमीटर से कम होना चाहिए।
इसी तरह 10 माइक्रॉन से छोटे आकार के धूल के कण मानक से 7 गुना ज़्यादा पाए गए। इसी क्रम में पीएम 2.5 की मात्रा का औसत मिला 220। चौबीस घंटे में इसका न्यूनतम 50 और अधिकतम 500 रिकॉर्ड किया गया, जबकि इसकी मात्रा 40 से कम होनी चाहिए। ये बहुत खतरनाक स्थिति है, जो बताती है कि बनारस की हवा सांस लेने लायक नहीं है।
स्वच्छता के आखिरी पायदान पर खड़े बनारस में तमाम वादे धरे के धरे रह गए। अगर अब भी कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया, तो बनारस में पड़ा ये कूड़ा व्यंग्य से हमसे यही कहेगा, 'हम प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र के कूड़ा हैं, है किसी में हिम्मत कि हमें हाथ लगा दे!'
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