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This Article is From Feb 10, 2016

हाजी अली दरगाह में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी असंवैधानिक : महाराष्ट्र सरकार

हाजी अली दरगाह में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी असंवैधानिक : महाराष्ट्र सरकार
हाजी अली दरगाह (फाइल फोटो)
मुंबई: प्रार्थना स्थलों पर महिलाओं से होते भेदभाव के मामलों में महाराष्ट्र राज्य सरकार ने स्पष्ट रुख अपनाया है। सरकार ने ऐसी रोक का समर्थन करने से मना किया है। मुम्बई के प्रसिद्ध हाजी अली दरगाह में महिलाओं के प्रवेश पर जारी पाबन्दी पर सुनवाई के दौरान महाराष्ट्र सरकार ने बॉम्बे हाई कोर्ट ने अपना पक्ष रखा है।

राज्य सरकार ने मुम्बई के हाजी अली दरगाह में महिलाओं के प्रवेश पर लगी पाबन्दी को असंवैधानिक बताया है। सरकार की तरफ़ से इस पाबन्दी के मामले पर राय स्पष्ट करते हुए महाधिवक्ता श्रीहरी अणे ने कहा, जो रीति-रिवाज इस्लाम का हिस्सा नहीं उनके अनुसरण पर ट्रस्ट खुलासा करें। मजार पर जाने को लेकर महिलाओं पर पाबंदी संविधान की धारा 14 में विदित समानता के अधिकार के विपरीत है।

अपने रुख के समर्थन में सरकार ने कुछ उदाहरण भी कोर्ट के सामने पेश किए। सरकार की तरफ़ से कहा गया कि, अगर ताज महल में बनी मुमताज़ महल की मजार, नागपुर के ताजुद्दीन बाबा दर्गा, अजमेरशरीफ की दरगाह हो या फतेहपुर का सलीम चिश्ती दरगाह, यहां पर महिलाओं के प्रवेश पर कोई भेदभाव नहीं है। ऐसे में हाजी अली पर रोक का समर्थन नहीं हो सकता।

इस मामले पर सुनवाई के दौरान सरकार ने यह भी कहा कि, सबरीमला और शनि शिंगणापुर में जारी पाबन्दी की तुलना हाजी अली दरगाह की पाबन्दी से नहीं हो सकती। क्योंकि, दरगाह की पाबन्दी हाल ही में लागू हुई है। जबकि शनि शिंगणापुर और सबरीमला में वर्षों पुरानी पाबन्दी है जो परम्परा का हिस्सा है। ज्ञात हो कि हाजी अली दरगाह की मजार पर 2011 तक महिला जायरीनों को बे रोकटोक प्रवेश दिया जाता था।

दूसरी तरफ़ हाजी अली ट्रस्ट ने पाबन्दी का समर्थन करते हुए कोर्ट में यह तर्क दिया है कि, चूंकि हाजी अली एक पुरुष संत की मजार है इसलिए वहां महिलाओं के प्रवेश पर रोक लगाई गई है।

भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन की सह-संस्थापक जकिया सोमण और नूरजहां सफ़िया नियाज़ ने मिलकर हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। सरकार के रुख को लेकर NDTV इंडिया से बात करते हुए नूरजहां ने कहा कि, उनका संगठन इस सरकारी रुख का स्वागत करता है। काश यह रुख पहले से होता तो हमें कोर्ट में जाने की नौबत ही न आती।

भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन ने 2012 में तत्कालीन कांग्रेस-एनसीपी सरकार से दरगाह पर होते भेदभाव में दखल देने की बात कही थी। लेकिन उनकी बात अनसुनी कर दी गई। मंगलवार को हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई पूरी हुई। अब अंतिम फैसले का इन्तजार है।

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