कांग्रेस महासचिव बनने के बाद प्रियंका गांधी वाड्रा चुनावी रथ पर सवार होकर उत्तर प्रदेश के मैदान में उतर पड़ी हैं. राज्य में पस्त पड़ी कांग्रेस में फिर उत्साह भरना प्रियंका के सामने बड़ी चुनौती है. उत्तर प्रदेश में कांग्रेस अगर अकेले लड़ाई लड़ती है तो उसको एक साथ दो मोर्चों पर लड़ना है. जिसमें एक ओर पीएम मोदी की अगुवाई में बीजेपी है तो दूसरी ओर अखिलेश यादव और मायावती का गठबंधन है. लोग प्रियंका की तुलना पूर्व प्रधानमंत्री और उनकी दादी इंदिरा से कर रहे हैं लेकिन प्रियंका के सामने इंदिरा से ज्यादा बड़ी चुनौती है. जब इंदिरा गांधी राजनीति में आई थीं तो उनके साथ कांग्रेस के कार्यकर्ता, नेहरू और लाल बहादुर शास्त्री की विरासत और आम जनमानस में के दिल में बसी कांग्रेस थी. विपक्ष एकदम नदारद था. लेकिन प्रियंका के साथ तो इस समय कोई बड़ा मुद्दा है और 'गरीबी हटाओ' जैसा करिश्माई नारा सवाल यहीं से उठा कि क्या प्रियंका, इंदिरा और पिता राजीव की विरासत थाम केंद्र की राजनीति करेंगे. लेकिन इस सवाल का जवाब कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने दे दिया है. लखनऊ में रोड शो के दौरान राहुल गांधी ने कहा कि लोकसभा चुनाव लक्ष्य जरूर है लेकिन प्रियंका अब उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनवाएंगी. मतलब उत्तर प्रदेश में अब प्रियंका गांधी कांग्रेस का चेहरा होंगी. दरअसल कांग्रेस के आलाकमान ने फैसला किया है कि 80 लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश को साधे बिना दिल्ली पाना आसान नहीं है.उत्तर प्रदेश में क्षेत्रीय पार्टियों के सहारे चुनाव लड़ने से अच्छा है कि कांग्रेस को खुद खड़ा किया.
लखनऊ में प्रियंका गांधी के रोड शो का कितना असर, तस्वीरों से समझें उत्तर प्रदेश का मिजाज
इसके लिए एक बड़े चेहरे की जरूरत थी जिसकी भरपाई अब प्रियंका गांधी करेंगी. वैसे भी सपा औप बीएसपी ने अपने गठबंधन में कांग्रेस को शामिल नहीं किया है. शुरू में कांग्रेस के नेता कुछ नेता इन दोनों से गठबंधन में गुहार लगाते दिखे लेकिन बाद में कांग्रेस ने आक्रामक रणनीति अपनाते हुए पूरी 80 सीटों पर लड़ने का ऐलान कर दिया. इससे फायदा यह हो सकता है कि कांग्रेस को अपना कॉडर मजबूत होगा और राज्य में अपनी पैठ बनाने में मदद मिलेगी.
प्रियंका की टीम की रणनीति के मुताबिक उत्तर प्रदेश में उन सीटों पर ज्यादा फोकस करना है जिसमें 20 फीसदी या उससे ज्यादा दलित वोटर हैं. इंदिरा के समय दलित वोटर कांग्रेस का वोटबैंक हुआ था जो अब बीएसपी सुप्रीमो मायावती को अपना नेता मानते हैं. इस समय उत्तर प्रदेश में 80 ऐसी सीटें हैं जिसमें 20 फीसदी या उससे ज्यादा दलित हैं वहीं 17 सीटें आरक्षित हैं. वहीं प्रियंका का चेहरा सवर्ण वोटों को भी लुभा सकता है, यह भी कभी इंदिरा के समय कांग्रेस के साथ ही था. मतलब है उत्तर प्रदेश में कांग्रेस अब प्रियंका के सहारे अपनी जड़ों को लौटने की कोशिश कर रही है इसके लिए अब प्रियंका गांधी वाड्रा विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री पद की दावेदार भी हो जाएं तो कोई बड़ी बात नहीं होगी.
लखनऊ में प्रियंका गांधी का रोड शो
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