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This Article is From Apr 17, 2019

राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत राष्ट्रपति को लेकर दिए गए बयान से पलटे

गहलोत ने कहा प्रेस कॉन्फ़्रेंस के दौरान मेरे बयान को कुछ मीडिया वालों ने गलत ढंग से पेश किया, भारतीय राष्ट्रपति का मैं बेहद सम्मान करता हूं

राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत राष्ट्रपति को लेकर दिए गए बयान से पलटे
राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत (फाइल फोटो).
नई दिल्ली:

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की दलित पहचान अब नया चुनावी मुद्दा है. राजस्थान के मुख्यमंत्री ने इस पहचान की चर्चा छेड़ी और बीजेपी ने चुनाव आयोग से कार्रवाई की मांग की है.

क्या गुजरात विधानसभा से पहले चुनावी समीकरणों को ध्यान में रखते हुए बीजेपी ने रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति बनवाया क्योंकि वो एक विशेष जातीय समुदाय के थे? जयपुर में एक मीडिया ब्रीफिंग में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत  ने यही बात कही. अशोक गहलोत ने कहा "लोग कहते हैं कि राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद, मैंने एक लेख में पढ़ा ... उन्हें चिंता हुई कि वे गुजरात में सरकार नहीं बना पाएंगे ... तब अमित शाह ने अपना हथियार चुना कि कोविंद जी को राष्ट्रपति बनाए रखने के लिए जातीय गणित सही है ... और आडवाणी जी दौड़ से बाहर हो गए ... राष्ट्र को उम्मीद थी कि आडवाणी को वह मिलेगा जो वह चाहते थे."

बीजेपी ने जवाब देने में देरी नहीं की... बीजेपी प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हा ने कड़े शब्दों में गहलोत की आलोचना की और मांग की कि चुनाव आयोग गहलोत के खिलाफ कार्रवाई करे. जीवीएल नरसिम्हा ने कहा, "राजस्थान के सीएम का बयान दलित विरोधी है. हम लोग मांग करते हैं कि गहलोत जी माफी मांगें. गहलोत ने कहा है कि कोविंद प्रेसिडेंट बने क्योंकि वे दलित समुदाय से आते हैं. हम मांग करते हैं कि चुनाव आयोग गहलोत को नोटिस जारी करे."

अशोक गहलोत का विवादित बयान, 'रामनाथ कोविंद को वोट के लिए बनाया गया राष्ट्रपति', BJP का पलटवार

बाद में अशोक गहलोत ने ट्वीट करके कहा, "बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि प्रेस कॉन्फ़्रेंस के दौरान मेरे बयान को कुछ मीडिया वालों ने गलत ढंग से पेश किया. भारतीय राष्ट्रपति का मैं बेहद सम्मान करता हूं और श्री रामनाथ जी का निजी तौर से भी, जिनसे मैं मिल चुका हूं और उनकी सादगी और विनम्रता से बहुत प्रभावित हूं."

VIDEO : राष्ट्रपति को लेकर कांग्रेस बनाम बीजेपी

वैसे लोक सभा चुनाव अभियान के बीच उठा ये विवाद जल्दी ख़त्म होगा इसके आसार फिलहाल दिखाई नहीं देते. भारत में जातिगत राजनीती का दलदल चाहे जितना जितना भी बड़ा होता जा रहा हो उच्च संवैधानिक पदों को इससे दूर रखना ही उचित होगा. लेकिन जब सारा खेल पहचान की राजनीती तक ही सिमट गया हो तो इसे मुद्दा बनाना भी एक तरह की राजनीति ही है.

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