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This Article is From May 13, 2019

नरेंद्र मोदी: विरोध और आरोपों के बीच तय किया संघ प्रचारक से प्रधानमंत्री तक का सफर

बीजेपी से जुड़ने और सक्रिय राजनीति में आने से पहले मोदी कई सालों तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक रहे.

नरेंद्र मोदी: विरोध और आरोपों के बीच तय किया संघ प्रचारक से प्रधानमंत्री तक का सफर
नरेंद्र मोदी एक कुशल राजनेता और ओजस्वी वक्ता के तौर पर जाने जाते हैं.
नई दिल्ली:

देश के मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) 2019 में एक बार फिर सत्ता में वापसी के लिए जोर-आजमाइश कर रहे हैं. इस बार भी पीएम मोदी बीजेपी (BJP) से अपनी पिछली संसदीय सीट वाराणसी से ही उम्मीदवार हैं. कभी अपने पिता के साथ वडनगर स्टेशन पर चाय बेचने वाले नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने कभी नहीं सोचा था कि वे एक दिन देश के प्रधानमंत्री भी बनेंगे. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के साथ प्रचारक के तौर पर जुड़े और फिर यहां से भारतीय जनता पार्टी (BJP) के बाद उनका राजनीति में आने का रास्ता साफ हुआ. उनका ये सफर काफी लंबा और उतार-चढ़ाव भरा रहा.  2014 में देश के प्रधानमंत्री बनने से पहले उन्होंने गुजरात में 12 साल तक मुख्यमंत्री रहने के अलावा पार्टी में तमाम तरह की जिम्मेदारियों को निभाया. पीएम मोदी की छवि एक विकास पुरुष और बीजेपी के कर्णधार के तौर पर रही हैं, क्योंकि उन्हीं की वजह से पिछले चुनाव में एक दशक बाद बीजेपी की सत्ता में वापसी तय हो सकी थी. 

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व्यक्तिगत जीवन
नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) 17 सितंबर 1950 को गुजरात के मेहसाणा जिले के अंतर्गत वडनगर में पैदा हुए. इनके पिता का नाम दामोदरदास और माता का नाम हीराबेन है. बचपन में नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) वडनगर स्टेशन पर अपने पिता और भाई किशोर के साथ रेलवे स्टेशन पर चाय बेचा करते थे. बचपन से ही उनका संघ की तरफ झुकाव था. 1967 में 17 साल की उम्र में  घर छोड़ दिया और अहमदाबाद पहुंचकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सदस्यता ले ली. इसके बाद 1974 में वे नव-निर्माण आंदोलन में शामिल हुए. इस बीच उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी और गुजरात विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में एमए कर लिया. पीएम मोदी की शादी जशोदा बेन से हुई है लेकिन वे उनके साथ नहीं रहते हैं. नरेंद्र मोदी को हिन्दी, अंग्रेजी और गुजराती भाषा का अच्छा ज्ञान है. 

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राजनीतिक सफर
संघ के जरिए उनका परिचय बीजेपी से हुआ. इसके बाद 1980 के दशक में मोदी गुजरात की बीजेपी इकाई में शामिल हो गए. हालांकि बीजेपी से जुड़ने और सक्रिय राजनीति में आने से पहले मोदी कई सालों तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक रहे. 1988-89 में उन्हें भारतीय जनता पार्टी की गुजरात इकाई का महासचिव बनाया गया. नरेंद्र मोदी  (Narendra Modi) ने लाल कृष्ण आडवाणी (Lal Krishna Advani) की 1990 की सोमनाथ-अयोध्या रथ यात्रा के आयोजन में अहम भूमिका अदा की. इसके बाद 1995 में मोदी को बीजेपी का राष्ट्रीय सचिव और पांच राज्यों का पार्टी प्रभारी बनाया गया. 1998 में उन्हें महासचिव (संगठन) की जिम्मेदारी सौंप दी गई और इस पद पर वे अक्‍टूबर 2001 तक रहे.  

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2001 में केशुभाई पटेल को मुख्यमंत्री पद से हटाने के बाद मोदी को गुजरात की कमान सौंपी गई, जिस पर वे लगातार 2014 तक बने रहे. 2001 में मुख्यमंत्री का पद संभालने के सिर्फ पांच महीने बाद 2002 में साबरमती एक्सप्रेस के एक डिब्बे में आग लगने और उसमें 59 कारसेवकों की मौत होने के बाद भड़के गुजरात दंगों के मामलों में उनकी छवि एक विवादास्पद नेता की बनी. उन पर अपनी जिम्मेदारी सही ढंग से न निभाने का आरोप भी लगा. जब सितंबर 2014 में मोदी को पार्टी का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया गया, तब भी इसी वजह को लेकर उनका काफी विरोध हुआ था, लेकिन यह विरोध उन्हें प्रधानमंत्री की कुर्सी पर सत्तासीन करने के उनके लक्ष्य से डिगा नहीं पाया. 

पीएम मोदी ने बीते चुनाव में गुजरात के विकास मॉडल को लेकर वोट अपील की थी. बीते पांच सालों में नोटबंदी, जीएसटी, स्वच्छ भारत अभियान और स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट जैसी उनकी तमाम योजनाओं को लेकर कई लोग पक्ष में तो कई विपक्ष में रहे हैं. इस बार वे विकास, सेना और राष्ट्रवाद के मुद्दों को लेकर जनता से वोट मांग रहे हैं. 

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