चुनाव आयोग (ईसी) ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के उन आरोपों को खारिज कर दिया है कि उसने केंद्र की सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा के इशारे पर राज्य के चार पुलिस अधिकारियों के तबादले का आदेश दिया. इसके साथ ही आयोग ने कहा कि तबादले का उसका फैसला अपने शीर्ष अधिकारियों में से एक के अलावा विशेष पुलिस पर्यवेक्षक की प्रतिक्रियाओं पर आधारित था. आयोग ने बनर्जी से यह भी कहा कि चुनाव कानून के अनुसार आदर्श आचार संहिता के दौरान उसे अधिकारियों को स्थानांतरित करने और नियुक्त करने का अधिकार है. ममता बनर्जी ने शनिवार को चुनाव आयोग को पत्र लिखकर आरोप लगाया था कि आयोग भाजपा के इशारे पर काम कर रहा है.
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ममता बनर्जी के पत्र का जवाब देते हुए आयोग ने शनिवार को कहा कि विश्व के सबसे लोकतंत्र में मतदाताओं के लिए चुनाव आयोग और राज्य सरकारें तथा केंद्रशासित प्रदेश संयुक्त रूप से जवाबदेह हैं. इसके साथ ही वे संविधान निर्माताओं द्वारा तय की गयी अपनी अपनी भूमिकाओं का पालन करने के लिए बाध्य हैं. ममता बनर्जी को संबोधित करते हुए यह पत्र उप चुनाव आयुक्तों में से एक द्वारा लिखा गया है व इसमें जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 28 ए का उल्लेख किया गया है कि चुनाव आयोग आचार संहिता की अवधि के दौरान अधिकारियों का तबादला और उनकी नियुक्ति कर सकता है. इसने कहा कि केरल उच्च न्यायालय ने भी अपने एक फैसले में इस प्रावधान को मंजूरी दी है.
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गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने चुनाव आयोग को चिट्ठी लिख कर कोलकाता और बिधाननगर पुलिस आयुक्तों समेत चार आईपीएस अधिकारियों के ट्रांस्फर के खिलाफ विरोध जताया. उन्होंने पत्र में कहा था कि चुनाव आयोग का फैसला 'दुर्भाग्यपूर्ण', अत्यंत मनमाना, प्रेरित और 'पक्षपातपूर्ण' है और बीजेपी के इशारे पर किया गया है. चिट्ठी में कहा था कि राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति बिगड़ने पर क्या आयोग इसकी जिम्मेदारी लेगा?' उन्होंने चुनाव आयोग से जांच भी शुरू करने को कहा ताकि यह पता चल सके कि कैसे और किसके निर्देश के तहत वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के ट्रांस्फर का फैसला लिया गया.
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बनर्जी ने अपने पत्र में कहा था कि मेरी यह दृढ़ सोच है कि भारत में लोकतंत्र बचाने में चुनाव आयोग की निष्पक्ष भूमिका है. लेकिन यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि मुझे आज यह पत्र लिखकर चुनाव आयोग की तरफ से जारी पांच अप्रैल 2019 के स्थानांतरण आदेश के खिलाफ विरोध जाहिर करना पड़ रहा है जिसके जरिए चार वरिष्ठ अधिकारियों को उनके मौजूदा पदों से हटाया गया' पत्र में कहा गया किआयोग का फैसला बेहद मनमाना, प्रेरित एवं पक्षपातपूर्ण है। हमारे पास यह यकीन करने के सारे कारण हैं कि आयोग का फैसला केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी, भाजपा, के इशारे पर लिया गया.
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