ऐसा लग रहा है कि देश में दलित वोटों को लेकर कांग्रेस और बीएसपी के बीच बड़ी जंग होने वाली है जो इस लोकसभा चुनाव से शुरू होगी और उत्तर प्रदेश में 2022 में होने वाले विधानसभा तक चरम पर पहुंच जाएगी. इंदिरा गांधी के समय कभी दलित, सवर्णों में ब्राह्णण कांग्रेस का कोर वोट बैंक हुआ करते थे. लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस उत्तर प्रदेश में क्षत्रपों के बजाए अपने दम पर खड़े होने की कोशिश कर रही है यही वजह है कि लोकसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस ने भले ही प्रियंका गांधी को महासचिव बनाकर पूर्वांचल की जिम्मेदारी दी है लेकिन एक कार्यकर्ता से बातचीत में उन्होंने जब पूछा कि चुनाव की तैयारी कैसे चल रही है तो कार्यकर्ता का जवाब था कि सब ठीक है, तो प्रियंका ने दोबारा कहा, 'इस चुनाव की नहीं, 2022 की.' उनका इशारा साफ था कि वह उत्तर प्रदेश में दूर की रणनीति बनाकर आई हैं. और हो सकता है कि कांग्रेस विधानसभा का चुनाव प्रियंका के ही चेहरे पर लड़े. महागठबंधन में जगह न मिलने के बाद कांग्रेस ने भी सभी सीटों पर प्रत्याशी उतारने का ऐलान कर दिया. बीते दो-तीन महीने में कई ऐसी बातें रही हैं जो बीएसपी सुप्रीमो मायावती और कांग्रेस के बीच सीधे टकराव की वजह बन सकती हैं.
8 बड़ी बातें
लोकसभा चुनाव को लेकर टीम प्रियंका ने करीब 40 ऐसी सीटों को चिन्हित किया है जहां दलित मतदाताओं की संख्या 20 फीसदी से ज्यादा है. इनमें 17 आरक्षित सीटें भी शामिल हैं.' इसी खबर ने बीएसपी को चौकन्ना कर दिया क्योंकि उत्तर प्रदेश में बीते 25 सालों से पार्टी ही एकछत्र राज कर रही है.
मायावती ने सपा-बसपा गठबंधन में कांग्रेस के लिए सीटें छोड़ने से साफ मना कर दिया. उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि बीएसपी ने जितनी बाक भी कांग्रेस के साथ गठबंधन किया है पार्टी को नुकसान हुआ है. कांग्रेस अपने वोट ट्रांसफर नहीं करा पाती है.
उत्तर प्रदेश में दलित नेता के तौर पर खुद को स्थापित करने की कोशिश कर रहे चंद्रशेखर आजाद से प्रियंका गांधी ने मुलाकात की जो मायावती को नागवार गुजरी. मायावती नहीं चाहती हैं कि उनके अलावा भी कोई दलित नेता उत्तर प्रदेश में उभरे.
मायावती के खास रहे नसीमुद्दीन सिद्दकी को कांग्रेस ने अपने पाले में ले लिया और उन्हें बिजनौर से टिकट दे डाला. जवाब में मायावती ने भी सहारनपुर की रैली में मुस्लिमों से अपील कर डाली कि कांग्रेस के बजाए महागठबंधन को एकमुश्त वोट करें.
मध्य प्रदेश में मायावती ने कमलनाथ के दो विधायकों ने कमलनाथ सरकार को समर्थन दिया है लेकिन उनकी मांग पर किसी विधायक को मंत्री नहीं बनाया गया. इसके बाद लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने मायावती के मुताबिक सीटों पर समझौता नहीं किया. राजस्थान में भी यही हाल रहा.
मध्य प्रदेश के शिवपुरी-गुना लोकसभा सीट से बीएसपी प्रत्याशी लोकेंद्र सिंह चौहान कांग्रेस में शामिल हो गए हैं. कांग्रेस के इस कदम से मायावती का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया है और उन्होंने कमलनाथ सरकार से समर्थन वापसी की धमकी दे डाली है.
मायावती ने ट्विटर पर लिखा, 'सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग के मामले में कांग्रेस भी बीजेपी से कम नहीं. एमपी के गुना लोकसभा सीट पर बीएसपी उम्मीदवार को कांग्रेस ने डरा-धमकाकर जबर्दस्ती बैठा दिया है किन्तु बीएसपी अपने सिम्बल पर ही लड़कर इसका जवाब देगी व अब कांग्रेस सरकार को समर्थन जारी रखने पर भी पुनर्विचार करेगी.'
एक दूसरे ट्वीट में मायावती ने लिखा, 'साथ ही, यूपी में कांग्रेसी नेताओं का यह प्रचार कि बीजेपी भले ही जीत जाए किन्तु बसपा-सपा गठबंधन को नहीं जीतना चाहिए, यह कांग्रेस पार्टी के जातिवादी, संकीर्ण व दोगले चरित्र को दर्शाता है. अतः लोगों का यह मानना सही है कि बीजेपी को केवल हमारा गठबंधन ही हरा सकता है. लोग सावधान रहें.