सीआरपीएफ व 'राजकमल' की पहल, दिया कविताएं, गजलें सुनने का मौका

इस तरह की यह अनोखी पहल थी, जिसमें कुछ जाने माने लेखक के साथ-साथ सेवानिवृत्त पुलिस वालों ने भी भाग लिया.

सीआरपीएफ व 'राजकमल' की पहल, दिया कविताएं, गजलें सुनने का मौका

सीआरपीएफ व 'राजकमल' की पहल, दिया कविताएं, गजलें सुनने का मौका

केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) और राजकमल प्रकाशन ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र गुरुग्राम (हरियाणा) के कादरपुर स्थित सीआरपीएफ अकादमी में लेखक-पाठक-संवाद का आयोजन किया, जिसमें साहित्य प्रेमियों को कविता पाठ, कथा पाठ, शेरो-शायरी एवं गजलों का आनंद लेने का मौका मिला. साहित्य के क्षेत्र में इस तरह की यह अनोखी पहल थी, जिसमें कुछ जाने माने लेखक के साथ-साथ सेवानिवृत्त पुलिस वालों ने भी भाग लिया. तीन घंटे चले कार्यक्रम में हिंदी साहित्य की सभी विधाओं की उत्कृष्ट रचनाएं पेश की गईं और उन पर जमकर चर्चा हुई.

सीआरपीएफ के एडीजी राजेश प्रताप सिंह और राजकमल प्रकाशन समूह के प्रबंध निदेशक अशोक माहेश्वरी की अगुवाई में मैत्रेयी पुष्पा, दिनेश कुमार शुक्ल, अश्लोक श्रीवास्तव, राकेश कुमार, विनीत कुमार एवं क्षितिज रॉय जैसे जानेमाने लेखकों ने शिरकत की.

एडीजी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा, "हम बहुत पहले से इस तरह के कार्यक्रम अपने अकादमी में करने के इच्छुक थे. हमारा मकसद था कि हम हिंदी से ही शुरू करें, क्योंकि हिंदी हमारी मातृभाषा होने के बाद आज भी काफी उपेक्षित है और हिंदी के अलावा ऐसी कोई भाषा नहीं, जिससे हम अपनी भावनाओं को अच्छी तरह लोगों के समक्ष रख सकें. मैं इसके लिए राजकमल प्रकाशन समूह का धन्यवाद करना चाहूंगा."

कार्यक्रम के पहले सत्र में हिंदी के सुप्रसिद्ध कवि दिनेश कुमार शुक्ल द्वारा महान कवियों की कविताओं का पाठ किया गया. उन्होंने निराला की कविता 'जागो फिर एक बार', त्रिलोचन शास्त्री की कविता 'उस जनपद का कवि हूं जो भूखा, दूखा है' तथा महादेवी वर्मा की कविता 'मैं नीर भरी दुख की बदली' से लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया.

कार्यक्रम के दूसरे सत्र का नाम 'फाइटर कौन' रखा गया, जिसमें 'फाइटर की डायरी' किताब पर मैत्रेयी पुष्पा की विनीत कुमार से बातचीत हुई. मैत्रेयी ने बताया कि उन्हें यह उपन्यास लिखने की प्रेरणा कैसे मिली. उन्होंने बताया, "वो मधुबन पुलिस अकादमी करनाल में महिला पुलिसवालों के साथ कुछ समय रहीं. वहीं वो उन महिला पुलिसवालों से इतना घुलमिल गई थीं कि हम एक-दूसरे से अपने सुख-दुख साझा करते थे. तब उनकी सच्ची कहानी सुन के मुझे महसूस हुआ कि इन लड़कियों ने किस तरह विषम परिस्थितियों को झेलकर चाहे, वो उनके खुद के परिवार से मिले हो या समाज से, लड़कर, सहकर पुलिस में भर्ती होने का संकल्प किया. यही महिला पुलिस की लड़कियां इस किताब की नायिका हैं."

लेखिका ने ये भी कहा कि आज भी समाज में लड़कियों को नौकरी के मामले गृहिणी की तरह ही देखा जाता है. माता-पिता लड़के की नौकरी के लिए रिश्वत आदि देने को तैयार हो जाते हैं, मगर जब लड़की की नौकरी का मामला होता है तो थोड़ा सा हिचकते हैं. कार्यक्रम के तीसरे सत्र में राकेश कुमार ने 'एक घूंट चांदनी' उपन्यास से अंश पाठ किया. किताब के बारे में उन्होंने कहा, "यह कृति प्रेम, प्रेम की खोज और प्रेम के विस्तार की बड़ी कहानी है. यह खोए हुए प्रेम को ढूंढने और मिल गए प्यार को बचाए रखने का किस्सा है. अनंत प्यार को संजोए रखने की इंसानी जद्दोजहद की इस दास्तां से आप हर पल खुद को कनेक्ट होता हुआ महसूस कर सकते हैं."

विनीत कुमार ने अपने उपन्यास 'इश्क कोई न्यूज नहीं' का अंश पाठ किया. यह किताब न्यूजरूम में हत्या, दुष्कर्म, घोटाले, समाज को लगातार हाशिए धकेलने वाली खबरों पर आधारित है. किताब में कहा गया है कि लव, सेक्स, धोखा पर लॉयल्टी टेस्ट शो की आपाधापी के बीच भी कितना कुछ घट रहा होता है. किसी से क्रश, किसी की याद, कैंपस में बित गए दिनों का नॉस्टेल्जिया, भीतर से हरहराकर आती कितनी सारी खबरें, लेकिन टेलीविजन स्क्रीन के लिए ये सब किसी काम की नहीं. टेलीविजन के लिए सिर्फ वो ही खबरें हैं जो न्यूजरूम के बाहर से आती हैं, वो और उनकी खबरें नहीं जो इन सबसे जूझते हुए स्क्रीन पर अपनी हिस्सेदारी की ख्वाहिशें रखते हैं.

'इश्क कोई न्यूज नहीं' उन ख्वाहिशों का वर्चुअल संस्करण है, जो लप्रेक श्रृंखला की तीसरी किताब है. पहली दो किताबें जाने माने पत्रकार रवीश कुमार की 'इश्क में शहर होना' और गिरींद्र नाथ झा की 'इश्क में माटी सोना' आ चुकी है. लेखक क्षितिज रॉय ने अपने उपन्यास 'गंदी बात' से अंश पाठ किया. उनकी यह किताब पटना से दिल्ली आए हुए एक युवक और युवती की अन्ना हजारे आंदोलन के समय पनपी प्रेम कहानी है.

अपनी शायरी और गजलों से दिलों में खुशमिजाजी पैदा करने वाले आलोक श्रीवास्तव ने कार्यक्रम के अंतिम सत्र में गजलों से चार चांद लगा दिए. उन्होंने कबीर, गालिब, हजरत अमीर खुसरो पर गजलें सुनाईं. उनमें से एक 'तू जब राह से भटकेगा' मैं बोलूंगा मुझको कुछ भी खटकेगा, मैं बोलूंगा' और 'सखी पिया को मैं न देखूं, कैसे काटू रतियां' आदि थे. कार्यक्रम के अंत में राजकमल प्रकाशन समूह के प्रबंध निदेशक अशोक माहेश्वरी ने कहा, "इस तरह के संवाद लेखक और पाठक के बीच निरंतर होने चाहिए और हम हमेशा इस तरह के आयोजन करने के लिए तत्पर हैं."

न्‍यूज आईएएनएस से इनपुट



 

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)


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