Vikram Sarabhai-Kamla Chowdhry: महान वैज्ञानिक डॉक्टर विक्रम साराभाई वो व्यक्ति थे जिन्होंने भारत को अंतरिक्ष तक पहुंचाया, विज्ञान को समाज से जोड़ा और कई संस्थान खड़े करके देश को नई दिशा दी. लेकिन उनके जीवन का एक ऐसा पहलू भी है, जिसके बारे में बहुत कम लोगों को पता है. एक ऐसा रिश्ता जिसने न सिर्फ उनकी जिंदगी, बल्कि देश की शिक्षा का नक्शा भी बदल दिया. यह कहानी है विक्रम साराभाई और कमला चौधरी की.
विक्रम साराभाई का जन्म 1919 में अहमदाबाद के एक बड़े उद्योगपति परिवार में हुआ था. उनके पिता अम्बालाल साराभाई (Ambalal Sarabhai) देश के प्रमुख टेक्सटाइल उद्योगपति थे. घर का माहौल पढ़ाई, आजादी की लड़ाई और समाज सुधार की सोच से भरा हुआ था. इसी माहौल ने विक्रम को साइंस और समाज के प्रति जागरूक बनाया.
विक्रम ने कैंब्रिज यूनिवर्सिटी (इंग्लैंड) से नेचुरल साइंस में पढ़ाई की और बाद में वहीं से कॉस्मिक रे रिसर्च में पीएचडी की. द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान वे भारत लौट आए और बेंगलुरु के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस में नोबेल विजेता सी.वी. रमन (CV Raman) के साथ काम किया. 1947 में उन्होंने 'फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी' (PRL) की स्थापना की, जो आगे चलकर भारत के अंतरिक्ष मिशन की नींव बनी.
कमला चौधरी से मुलाकात
1950 के दशक में साराभाई ने अहमदाबाद में टेक्सटाइल सेक्टर को आधुनिक बनाने के लिए 'ATIRA' नाम की संस्था बनाई. यहीं उनकी मुलाकात हुई कमला चौधरी से. कमला अमेरिका की मिशिगन यूनिवर्सिटी से मनोविज्ञान में पढ़ाई कर चुकी थीं और भारत में समाज सुधार के कामों से जुड़ी थीं.
कमला की समझदारी, गंभीरता और समाज के लिए कुछ करने की सोच से विक्रम प्रभावित हुए. उन्होंने कमला को ATIRA में काम करने का प्रस्ताव दिया. वहीं से दोनों के बीच एक गहरी दोस्ती और भावनात्मक रिश्ता शुरू हुआ. हालांकि, विक्रम की शादी फेमस नृत्यांगना मृणालिनी साराभाई से हो चुकी थी, लेकिन कमला के साथ उनका संबंध सालों तक बना रहा.

कमला खुद विक्रम की पत्नी मृणालिनी की अच्छी दोस्त भी थीं. वे जानती थीं कि उनका रिश्ता एक नाज़ुक स्थिति में है. समय के साथ इस रिश्ते की गहराई उन्हें भीतर से खाने लगी. वो जानती थीं कि यह जुड़ाव, चाहे कितना भी सच्चा और सम्मानजनक क्यों न हो, उनके जीवन में एक उलझन बनता जा रहा है. शायद इसी वजह से कमला ने अहमदाबाद छोड़कर दिल्ली जाने का फैसला किया. लेकिन जैसा कि कई कहानियों में होता है, भाग्य के पास उनके लिए कुछ और ही लिखा था.
एक रिश्ता और एक सपनालेखक और मनोविश्लेषक सुधीर कक्कड़ (जो कमला के भांजे हैं) ने अपनी किताब 'A Book of Memory' में लिखा है कि विक्रम साराभाई कमला को खोना नहीं चाहते थे. वे जानते थे कि कमला सिर्फ उनके जीवन का हिस्सा नहीं थीं, बल्कि उनके कई सपनों की प्रेरणा भी थीं. इसी के चलते कमला जब अहमदाबाद छोड़कर दिल्ली जाना चाहती थीं, तब साराभाई ने उन्हें रोकने के लिए अहमदाबाद में ही एक मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट बनाने का सोचा. उसी समय भारत सरकार और फोर्ड फाउंडेशन देश में मैनेजमेंट शिक्षा को बढ़ावा देने की सोच रहे थे.
तब साराभाई ने सबको समझाया कि अहमदाबाद इस संस्थान के लिए सबसे सही जगह है. इस तरह 1961 में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट अहमदाबाद (IIM-A) की स्थापना हुई, भारत का दूसरा IIM.
कमला चौधरी इस संस्थान की पहली फैकल्टी बनीं और शुरुआती दौर में इसकी सोच, संस्कृति और दिशा तय करने में उनका बड़ा योगदान रहा.
विवाद और सच्चाईहालांकि, साराभाई की बेटी मल्लिका साराभाई ने इस कहानी के 'रोमांटिक' हिस्से से असहमति जताई. उनका कहना है कि IIM अहमदाबाद का निर्माण किसी निजी रिश्ते की वजह से नहीं, बल्कि उनके पिता के देश के लिए कुछ बड़ा करने की इच्छा की वजह से हुआ था. वे कहती हैं, 'पापा का सपना था कि भारत में ऐसी संस्थाएं बनें जो समाज को बेहतर दिशा दें, इसे सिर्फ एक प्रेम कहानी तक सीमित करना अनुचित होगा.'
अब, चाहे IIM अहमदाबाद की कहानी प्रेम की प्रेरणा से शुरू हुई हो या दूरदर्शी सोच से, इसमें कोई शक नहीं है कि विक्रम साराभाई और कमला चौधरी, दोनों ने मिलकर भारत में शिक्षा और प्रबंधन को नई दिशा दी. एक वैज्ञानिक का सपना और एक मनोवैज्ञानिक का समर्पण मिलकर एक ऐसी संस्था बना गए, जिसने देश को दुनिया के सामने एक नई पहचान दी. IIM अहमदाबाद आज भी इस बात का प्रतीक है कि जब बुद्धि और भावनाएं एक साथ चलती हैं, तो इतिहास बनता है.
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