
6 सितम्बर को सप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध मानने से इनकार कर दिया. सालों से अपने हक के लिए लड़ रहे इस समुदायों के लोगों में इस फैसले के बाद खुशी की लहर दौड़ पड़ी. लेकिन सिर्फ सेक्शन 377 को खत्म कर देने से ही समाज में बदलाव इतनी आसानी से आने वाला नहीं. बता दें, इंडोनेशिया के आसेह प्रांत में शरिया कानून चलता है. रूढ़िवादी समाजिक व्यवस्था वाले इस प्रांत की एक रीजेंसी ने अविवाहित जोड़ों को मेज साझा करने पर रोक लगा दी है. समाचार एजेंसी 'एफे' की रिपोर्ट के अनुसार, मानवाधिकार कार्यकर्ताताओं ने कहा कि बिरूएन रीजेंसी के नए काननू में समलैंगिकों की खातिरदारी पर रोक है इसके अलावा रात नौ बजे से महिलाओं के काम करने पर भी रोक है.
समलैंगिकता अपराध नहीं, जानिए क्या थी LGBTQ समुदाय से जुड़ी धारा-377
मेयर सैफानुर द्वारा हस्ताक्षर किए गए नए कानून में महिलाएं अगर रिश्तेदार के साथ आती हैं तो उनको उनकी समय सीमा को नजरंदाज किया जा सकता है.
30 अगस्त को मंजूरी प्रदान किए गए कानून के अनुच्छेद 10 के अनुसार, शरिया कानून तोड़ने वाले ग्राहकों को वहां आने पर रोक है. इस कानून के तहत प्रतिबंधित के दायरे में लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल या ट्रांसजेंडर ग्राहक आते हैं.
कानून के अनुच्छेद 13 में रेखांकित किया गया है कि रिश्तेदार के साथ अगर नहीं हो तो पुरुष और महिला के एक साथ एक मेज पर खाने पर प्रतिबंध है.
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अभिनेत्री और एनजीओ सुआरा हती पेरेमपुआन की संस्थापक नोवा एलिजा ने इसकी आलोचना की है. उन्होंने नगर पार्षद को पत्र लिखकर इस कानून को शरिया की गलत व्याख्या करार दिया है.
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