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शरदचंद्र पवार की पार्टी एनसीपी की नेता सुप्रिया सुले ने सोमवार को कहा कि जिस तरह से संस्थापक सदस्य से उसकी पार्टी को छीना गया है वो पूरी तरह से गलत है. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि पार्टी को उसका चिन्ह भी लौटाया जाना चाहिए. शरदचंद्र पवार की एनसीपी से विधायक सुप्रिया सुले ने कहा, ''जिस तरह से पार्टी को उसके संस्थापक सदस्य से छीना गया है वो बेहद गलत है. हमें अपनी पार्टी और इसके चिन्ह को वापस लेना चाहिए... देश में लोकतंत्र है और ये बहुत गलत है.''
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरदचंद्र पवार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी किए गए नोटिस पर पार्टी नेता जितेंद्र अवहाद ने कहा, "मुझे बहुत खुशी है कि सुप्रीम कोर्ट बिल्कुल स्पष्ट था कि वे इस देश में लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करना चाहते हैं... दसवीं अनुसूची स्पष्ट रूप से कहती है कि जब तक आप किसी राजनीतिक दल में विलय नहीं कर लेते, तब तक आपकी स्वतंत्र पहचान नहीं हो सकती... मेरे अनुसार, अजित पवार का खेमा शरद पवार को नष्ट और ध्वस्त करना चाहता है. वे शरद पवार को महाराष्ट्र की राजनीति से उखाड़ फेंकना चाहते हैं."
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को आदेश दिया कि भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) का अंतरिम आदेश, जिसने अनुभवी नेता शरद पवार को 'राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी - शरद चंद्र पवार' का उपयोग करने की अनुमति दी थी, अगले आदेश तक जारी रहेगा. उन्होंने कहा, "मैं सुप्रीम कोर्ट के फैसले और आदेश के लिए आभारी हूं कि चुनाव चिन्ह और पार्टी आठ दिनों के भीतर वापस कर दी जानी चाहिए."
जस्टिस सूर्यकांत और केवी विश्वनाथन की पीठ ने शरद पवार को चिन्ह आवंटन के लिए ईसीआई से संपर्क करने की भी अनुमति दी और कहा कि आवेदन दाखिल करने के एक सप्ताह के भीतर इसे आवंटित किया जाएगा.
अजित पवार गुट को आधिकारिक तौर पर असली एनसीपी के रूप में मान्यता देने और पार्टी के प्रतीकों के इस्तेमाल के चुनाव आयोग के फैसले को चुनौती देते हुए शरद पवार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था. 6 फरवरी को, पोल पैनल ने विधायी शाखा में बहुमत परीक्षण लागू करते हुए फैसला सुनाया था कि अजित पवार का गुट ही असली एनसीपी है और इस गुट को पार्टी के लिए 'घड़ी' चिन्ह का उपयोग करने की अनुमति दी.
अपने आदेश में, चुनाव आयोग ने कहा था कि महाराष्ट्र राज्य विधानसभा में एनसीपी विधायकों की कुल संख्या 81 थी और इसमें से अजित पवार ने अपने समर्थन में 57 विधायकों के हलफनामे सौंपे थे, जबकि शरद पवार के पास केवल 28 हलफनामे थे.
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