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This Article is From Nov 17, 2015

इंजीनियरिंग से लेकर हिन्तुत्व के पैरोकार तक... अशोक सिंघल का सफर

इंजीनियरिंग से लेकर हिन्तुत्व के पैरोकार तक... अशोक सिंघल का सफर
अशोक सिंघल (फाइल फोटो)
नई दिल्ली: मेटलर्जी इंजीनियर से हिन्दुत्व के मुद्दे को आगे बढ़ाने और राम मंदिर आंदोलन में प्रखर भूमिका निभाने वाले अशोक सिंघल 1980 के दशक के अंतिम वर्षों और बाद में राष्ट्रीय स्तर पर सुखिर्यों में रहे। उन्होंने बीजेपी के नेतृत्व वाले इस राजनीतिक आंदोलन में विश्व हिन्दू परिषद (वीएचपी) के अध्यक्ष के रूप में अहम भूमिका निभाई।

दक्षिणपंथी तेजतर्रार नेता सिंघल (89) ने अपना जीवन हिन्दुत्व के मुद्दे पर समर्पित किया। उन्होंने आक्रामक शैली अपनाते हुए राम जन्मभूमि और राम सेतु आंदोलनों के लिए लोगों को एकजुट करने में प्रमुख भूमिका निभाई।

उनके नेतृत्व में वीएचपी ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चाएं बटोरीं और इस संगठन से समर्थकों को जोड़ा और विदेश में कार्यालय स्थापित किए। वीएचपी को अपने अभियान के लिए भारत के बाहर से बहुत योगदान मिला।

सिंघल का 'कार सेवक' अभियान में भी योगदान महत्वपूर्ण था। इसी अभियान के चलते छह दिसंबर 1992 को अयोध्या में 16वीं सदी की बाबरी मस्जिद ढहाई गई।

आगरा में दो अक्टूबर 1926 को जन्मे सिंघल ने साल 1950 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के 'इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलाजी' से मेटलर्जिकल इंजीनियरिंग में स्नातक की डिग्री हासिल की थी।

वह साल 1942 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए थे, लेकिन स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद वह पूर्णकालिक प्रचारक बने। उन्होंने उत्तर प्रदेश में कई स्थानों पर काम किया और दिल्ली तथा हरियाणा के प्रांत प्रचारक बने।

साल 1980 में उन्हें वीएचपी में जिम्मेदारी देते हुए इसका संयुक्त महासचिव बनाया गया। साल 1984 में वह इसके महासचिव बने और बाद में इसके कार्यकारी अध्यक्ष का पद सौंपा गया। इस पद पर वह दिसंबर 2011 तक रहे।

वह जीवनभर आरएसएस की विचारधारा से प्रेरित रहे और संघ परिवार के प्रमुख सदस्य रहे। बीएचपी नेता सिंघल को अपना 'मार्गदर्शक' मानते थे, क्योंकि उन्होंने अपने जीवनकाल में कई आंदोलनों का नेतृत्व किया।

सिंघल ने आपातकाल के खिलाफ उत्तर प्रदेश में आंदोलन तथा गायों की रक्षा के लिए 'गौ रक्षा आंदोलन' शुरू करने में अहम योगदान दिया। सिंघल वीएचपी में सक्रिय रहे और अंत तक इसके संरक्षक रहे। अस्पताल में भर्ती होने से कुछ दिन पहले सिंघल ने वीएचपी के कार्यकलाप देखने के लिए विभिन्न देशों का 30 दिवसीय दौरा किया था।

साल 1980 में वीएचपी के लिए काम करना शुरू करने वाले सिंघल तमिलनाडु में 1981 में मीनाक्षीपुरम धर्मांतरण के बाद उस समय सक्रिय हुए जब वीएचपी ने खास तौर पर दलितों के लिए 200 मंदिर बनवाए और दावा किया कि इसके बाद धर्मांतरण रुक गया।

सिंघल ने दिल्ली में साल 1984 में वीएचपी की पहली 'धर्मसंसद' के प्रमुख आयोजन की जिम्मेदारी संभाली जिसमें हिन्दू धर्म मजबूत करने पर चर्चा में सैकड़ों साधुओं और हिन्दू संतों ने भाग लिया।

यहीं पर अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर पर दावा फिर से हासिल करने के आंदोलन का जन्म हुआ और जल्द ही सिंघल राम जन्मभूमि आंदोलन के मुख्य सदस्य के रूप में उभरे। आरएसएस प्रचारक होने के नाते वह आजीवन अविवाहित रहे।

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