असम समझौते के तहत नागरिकता अधिनियम में धारा 6ए को चुनौती के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि ऐसे ऐतिहासिक कारण थे, जिनकी वजह से धारा 6ए को शामिल किया गया. अगर संसद केवल अवैध आप्रवासियों के एक समूह को माफी दे देती तो स्थिति अलग होती. धारा 6ए उस समय लागू की गई थी जब एक अलग इतिहास था और बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका थी. हम बांग्लादेश जितना ही युद्ध का हिस्सा थे. यह उन अत्याचारों के लिए था जो उस समय पूर्वी बंगाल की आबादी पर किए जा रहे थे. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा है कि कितने लोगों को असम समझौते के बाद नागरिकता अधिनियम में पेश की गई धारा 6ए का लाभ मिला.
सुप्रीम कोर्ट ने ये भी पूछा कि अगर बहुत कम लोगों को इसका लाभ मिला तो यह एक स्पष्ट संकेतक है कि बाकी सभी अवैध अप्रवासी हैं. CJI ने केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा, “जब धारा 6A व्यावहारिक रूप से लागू थी, तो कितने लोगों ने इस प्रावधान के अनुसरण में नागरिकता ली? 6ए लागू है लेकिन व्यावहारिक ऑपरेशन 16 जुलाई 2013 के आसपास समाप्त हो गया इससे कितने लोगों को लाभ हुआ?”
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6ए, जो असम समझौते के तहत आने वाले अप्रवासियों को भारतीय नागरिकता देने से संबंधित है, आंशिक रूप से 1971 की बांग्लादेश मुक्ति के बाद पूर्वी बंगाल की आबादी पर किए गए अत्याचारों को दूर करने के लिए पेश की गई थी. इसलिए, इसकी तुलना आम तौर पर अवैध आप्रवासियों के लिए माफी योजना से नहीं की जा सकती.
अदालत ने कहा कि उक्त प्रावधान के कारण आप्रवासियों की आबादी में वृद्धि हुई है. भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत,जस्टिस एमएम सुंदरेश, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की संविधान पीठ नागरिकता अधिनियम की धारा 6 ए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है.
नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए के अनुसार, जो लोग 1 जनवरी, 1966 और 25 मार्च, 1971 के बीच भारत में आए और असम में रह रहे हैं, उन्हें खुद को नागरिक के रूप में पंजीकृत करने की अनुमति दी जाएगी.
मंगलवार को CJI ने टिप्पणी की कि इस धारा की वैधता इसके अधिनियमन के बाद उत्पन्न हुए राजनीतिक और अन्य घटनाक्रमों से निर्धारित नहीं की जा सकती. हम उस चीज़ पर विचार कर रहे हैं जो समय के साथ अटकी हुई है. हम असम समझौते के बाद जो हुआ उसके आधार पर धारा की वैधता का फैसला नहीं कर सकते.
ऑल असम अहोम एसोसिएशन और अन्य याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने दलील दी कि धारा 6ए अभी भी अपने आप में पूरी तरह से खराब है. उन्होंने कहा कि हमने दिखाया है कि संशोधन अपने पैरों पर खड़ा नहीं है.
कानून का समाधान नहीं करने के परिणामस्वरूप, इसे पूरी तरह से खारिज कर दिया गया है और इसे एक ढाल के रूप में इस्तेमाल किया गया है.
मंगलवार को नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई का पहला दिन था. इस मामले के नतीजे का राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) सूची पर बड़ा असर पड़ेगा. इस मामले में सुनवाई बुधवार को भी जारी रहेगी.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं