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This Article is From Jan 15, 2020

CAA के तहत शरणार्थियों को नागरिकता देने को लेकर यूपी सरकार की मुहिम पर उठे सवाल! आखिर नियम तय हुए बगैर ही कैसे...

यूपी सरकार के इस दावे पर NDTV ने जब अपनी पड़ताल की तो कई चौकाने वाली जानकारी सामने आई. पता चला कि यूपी सरकार ने नागरिकता कानून को लेकर नियम बनने से पहले ही इन शरणार्थियों की पहचान कर ली है.

योगी सरकार के दावों पर उठे सवाल

नई दिल्ली:

देश में नागरिकता कानून के लागू होने के बाद यूपी की योगी सरकार ने अपने यहां 37 हजार शरणार्थियों की पहचान का दावा करते हुए उन्हें नागरिकता देने की बात कही थी. राज्य सरकार की तरफ से जारी बयान में कहा गया था कि 21 जिलों में ऐसे 37 हजार शरणार्थियों की पहचान की गई है जिन्हें इस कानून के तहत नागरिकता देने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी. यूपी सरकार के इस दावे पर NDTV ने जब अपनी पड़ताल की तो कई चौकाने वाली जानकारी सामने आई. पता चला कि यूपी सरकार ने नागरिकता कानून को लेकर नियम बनने से पहले ही इन शरणार्थियों की पहचान कर ली है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि सरकार ने किस आधार पर इन लोगों की पहचान की है. हमारी पड़ताल में पता चला कि यूपी सरकार ने शरणार्थियों की लिस्ट बिना तारीख, बिना निशान और बिना दस्तखत वाले दस्तावेजों के आधार पर तैयार की है.

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बताया यह जा रहा है कि यह लिस्ट बनाते समय सरकार की तरफ से इन लोगों से प्रवासी होने या धार्मिक उत्पीड़न का कोई सबूत नहीं मांगा गया है. इसलिए सवाल उठ रहा है कि क्या सरकार ने नागरिकता देने को लेकर जो लिस्ट तैयार की है उसमें जल्दबाजी की गई है?.

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NDTV ने अपनी पड़ताल में ऐसे कुछ लोगों से बात भी की जिन्हें प्रवासी बताया जा रहा है. NDTV से बातचीत में एक शख्स ने कहा कि हमारे पास धार्मिक रूप से प्रताड़ित किए जाने का कोई सबूत नहीं है. हम यहां लंबे समय से रह रहे हैं और हमारे पास अब यहां का राशन कार्ड भी है. वहीं एक बुजुर्ग ने कहा कि मुझे यहां रहते हुए 50 साल हो चुके हैं, अब हम यह सबूत कैसे दिखाएंगे की हमारे साथ वहां रहते हुए अत्याचार हुआ है. इस मामले को लेकर यूपी सरकार की तरफ से सफाई भी आई है. यूपी सरकार ने अपनी सफाई में कहा है कि सीएए लिस्ट अभी एक अनौपचारिक कवायद है. और लाभार्थियों की सूची अभी दिल्ली नहीं भेजी गई है. उधर, पीआईबी के दावे के मुताबिक किसी भी विदेशी को अपने आप नागरिकता नहीं मिलेगी. जो लोग जांच के बाद सरकार द्वारा बनाए गए पैमानों पर खड़े उतरेंगे उन्हें ही दी जाएगी नागरिकता. 

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बता दें कि कुछ समय पहले उत्तर प्रदेश के मंत्री और सरकार के प्रवक्ता श्रीकांत शर्मा ने NDTV से कहा था कि हम इसमें कोई जल्दबाज़ी नहीं कर रहे हैं.अभी सिर्फ शुरुआत हुई है. जब कानून अधिसूचित हो जाता है, तभी हमें आगे बढ़ना होता है.सही कहा न?". श्रीकांत शर्मा ने यह भी कहा, "यह जारी रहने वाली प्रक्रिया है, हम आंकड़ों को अपडेट करते रहेंगे... सभी जिलाधिकारियों से सर्वे करवाने और सूची को अपडेट करते रहने के लिए कहा गया है... हम इस सूची को केंद्रीय गृह मंत्रालय को भेजने की भी प्रक्रिया शुरू कर रहे हैं..."

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जिन लोगों की पहचान की गई है, उनमें एक हिस्सा पीलीभीत में बसे लोगों का है. प्रदेश की राजधानी लखनऊ से लगभग 260 किलोमीटर दूर बसा पीलीभीत जिला उत्तराखंड तथा भारत की नेपाल से सटी सीमा के करीब है.जिले के शीर्ष सरकारी अधिकारी वैभव श्रीवास्तव ने शुक्रवार दोपहर को स्थानीय पत्रकारों से कहा था कि 'शुरुआती सर्वे' के तहत बांग्लादेश (अतीत में पूर्वी पाकिस्तान) से आए 37,000 शरणार्थियों की पहचान कर ली गई है, और राज्य सरकार को नाम भेज दिए गए हैं. वैभव श्रीवास्तव के अनुसार, "शुरुआती जांच से पचा चला है कि ये लोग अपने देश में अत्याचार का शिकार होने की वजह से पीलीभीत आकर बसे थे..."

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इस बात को लेकर कोई स्पष्टीकरण नहीं मिल पाया है कि राज्य सरकार द्वारा बताए गए आंकड़ों में फर्क क्यों है.पीलीभीत निवासी कालिबाद हलदर ने कहा था कि मैं खुश हूं कि सरकार ने हमारे पक्ष में इस पर फैसला किया. इससे मेरे जैसे लोगों को उम्मीद बंधी है." कालिबाद हलदर ने बताया था कि उनका परिवार 1960 के दशक में तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान से आया था, और महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में रहने के बाद 1984 में वे पीलीभीत में आकर बस गए थे.

उत्तर प्रदेश भी उन राज्यों में शामिल है, जिनमें नागरिकता संशोधन कानून को लेकर हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए. पिछले माह पुलिस तथा प्रदर्शनकारियों के बीच झड़पों में 21 लोगों की मौत हुई, 300 से ज़्यादा पुलिसकर्मी ज़ख्मी हुए. लेकिन केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने स्पष्ट रूप से कहा है कि कानून को वापस नहीं लिया जाएगा.

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नागरिकता संशोधन कानून में पहली बार धर्म को नागरिकता का पैमाना बनाया गया है. केंद्र सरकार का कहना है कि इस कानून का मकसद तीन मुस्लिम-बहुल देशों पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए छह अल्पसंख्यक समुदायों (जिनमें मुस्लिम शामिल नहीं हैं) के उन लोगों के प्राकृतीकरण की प्रक्रिया को गति प्रदान करना है, जिन्होंने अपने देश में अत्याचारों का शिकार होने के बाद भारत में शरण मांगी है. आलोचकों का कहना है कि यह कानून राष्ट्रीय नागरिक पंजी (NRC) के साथ जोड़कर देखे जाने पर मुस्लिमों के खिलाफ है.

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