
- शुभांकर मिश्रा ने अपने शो 'कचहरी' में प्राइवेट स्कूलों की बढ़ती फीस के मुद्दे पर बात की.
- शुभांकर मिश्रा ने बच्चो को मिल रही प्राइवेट स्कूलों की थर्ड क्लास एजुकेशन के मुद्दे पर बात की.
- उन्होंने सवाल उठाए कि 2 से 3 लाख रुपये की फीस के बाद बच्चों को 10 से 15 हजार की नौकरी क्यों मिल रही है?
एनडीटीवी इंडिया के फेमस शो ‘कचहरी' में शुभांकर मिश्रा ने प्राइवेट स्कूलों की बढ़ती फीस और थर्ड क्लास एजुकेशन के मुद्दे पर बात की . जैसा आप जानते हैं कि कुछ प्राइवेट स्कूलों ने आज शिक्षा को एक प्रोडक्ट बना दिया है. इसकी एक कीमत तय कर दी है. प्राइवेट स्कूलों की फीस हर साल 10 से 15 पर्सेंट बढ़ रही है, इसे झेल पाना आम आदमी की लिमिट से बाहर होता जा रहा है.
भारत में 25 करोड़ बच्चे स्कूल में पढ़ते हैं
लाखों रुपया खर्च करने के बाद भी बच्चों को ठीक एजुकेशन नहीं मिल पा रही है. पहले जहां जात के नाम पर भेदभाव होता था आज गरीबी के नाम पर भेदभाव हो रहा है. शिक्षा पर सभी वर्गों के बच्चों का हक है, लेकिन आज के हालातों को देखकर लग रहा है कि ये अमीरों का स्टेट्स सिंबल बन चुकी है. रिपोर्ट्स के अनुसार भारत में 25 करोड़ बच्चे स्कूल में पढ़ते हैं और ये मुद्दा भारत के भविष्य से सीधा जुड़ा हुआ है.
सरकारी स्कूलों में इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी
आपको ये जानकार हैरानी होगी कि एक जूनियर इंजीनियर की सालभर की तनख्वाह एक साल की फीस में ही चली जाती है. वहीं दूसरी तरफ सरकारी स्कूलों में फीस तो नहीं पर इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी है. प्राइवेट स्कूल आज शॉपिंग मॉल के जैसे बन कर रह गए हैं, जिसकी जितनी ज्यादा ब्रांडिंग होती है वो उतना पॉपुलर माना जाता है.
1.75 लाख करोड़ की शिक्षा इंडस्ट्री
2 से 3 लाख रुपये की फीस के बाद बच्चों को 10 से 15 हजार की नौकरी मिल रही है. सवाल तो बनते हैं कि सरकारी स्कूल में क्यों टीचर, किताबें और इमारत नहीं है. 1.75 लाख करोड़ की शिक्षा इंडस्ट्री बन चुकी है. राइट टू एजुकेशन पॉलिसी के तहत देश के हर बच्चे को शिक्षा का हक है, पर ऐसा होता दिख नहीं रहा है.
अभिवावकों का भरोसा सरकारी स्कूलों पर हुआ कम
साल 1978 में 74% बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ते थे, केवल 4% ही बच्चे प्राइवेट स्कूल में शिक्षा लेते थे. वहीं, आज 50% बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे हैं, 35% बच्चे प्राइवेट स्कूलों में हैं. 2015 में हुए सर्वे के अनुसार 73% अभिवावकों ने माना कि सरकारी स्कूलों के मुकाबले प्राइवेट स्कूलों में बेहतर माहौल है. इन आंकड़ों से पता चल रहा है कि देश के अभिवावकों का सरकारी स्कूलों पर से भरोसा कम हो रहा है. हालांकि देश के केंद्रीय और नवोदय विद्यालयों में सुधार हुआ है.
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