प्रतीकात्मक चित्र
नई दिल्ली:
आपराधिक मामलों में दोषी करार दिए गए नेता आगे चुनाव लड़ पाएंगे या नहीं इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट जल्द ही सुनवाई करेगा. कोर्ट ने इस मसले पर गंभीर बताया है. इस मामले को लेकर चीफ जस्टिस रंजन गोगई की अध्यक्षता वाली पीठ ने भाजपा नेता व याचिकाकर्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय से कहा कि वह पूर्व में दाखिल अपनी याचिका की मुख्य मांग से न भटकें. ध्यान हो कि जनप्रतिनिधि अधिनियम की धारा 8(3) में कहा गया है कि अगर किसी आपराधिक मामले में किसी को दो वर्ष कैद से अधिक की सजा होती है तो वह अगले छह वर्ष तक चुनाव नहीं लड़ सकता. जबकि उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कहा था कि आपराधिक मामले में दोषी ठहराए जाने वाले नेताओं पर आजीवन चुनाव लडने पर पाबंदी लगा दी जानी चाहिए. याचिका में तर्क दिया गया था कि अगर किसी सरकारी अधिकारी आपराधिक मामले में दोषी ठहराया जाता है तो उसकी सेवा ताउम्र के लिए खत्म हो जाती है.
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ऐसे में नेताओं को प्राथमिकता क्यों होनी चाहिए? इस सुनवाई केदौरान पीठ इस मसले पर विचार करने का निर्णय लेने से पहले यह जानना चाहता था कि सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश का क्या हुआ जिसमें दागी नेताओं के खिलाफ दर्ज मुकदमों का निपटारा एक वर्ष में पूरा करने का निर्देश दिया गया था. पीठ ने अब इस मसले को गंभीर बताते हुए इस पर विचार करने का निर्णय लिया है. इस मामले में अब सुप्रीम कोर्ट चार दिसंबर को विचार करेगा.
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वहीं सुनवाई के दौरान अमिक्स क्यूरी विजय हंसारिया ने कहा कि दागी सांसद व विधायकों केखिलाफ दर्ज आपराधिक मुकदमे से निपटने के लिए स्पेशल कोर्ट बनाने से बेहतर यह होगा कि हर जिले में एक सत्र न्यायालय और एक मजिस्ट्रेट कोर्ट को विशेष तौर ऐसे मामलों के निपटारे लिए सूचीबद्ध कर दिया जाए. जिससे कि निर्धारित समय के भीतर मुकदमे का निपटारा संभव हो सके. दागी सांसद व विधायकों केखिलाफ दर्ज आपराधिक मुकदमे से निपटने के लिए 70 स्पेशल कोर्ट बनाने की जरूरत है.
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इस पर केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरकार का ऐसा मानना है कि जहां 65 से कम मुकदमे दर्ज हैं वहां किसी नियमित कोर्ट को ऐसे मुकदमों का निपटारा करने की जिम्मेदारी दे दी जानी चाहिए. याचिका में एडीआर की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा गया है कि सांसद व विधायकों के खिलाफ 13680 आपराधिक मुकदमे लंबित हैं.
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ऐसे में नेताओं को प्राथमिकता क्यों होनी चाहिए? इस सुनवाई केदौरान पीठ इस मसले पर विचार करने का निर्णय लेने से पहले यह जानना चाहता था कि सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश का क्या हुआ जिसमें दागी नेताओं के खिलाफ दर्ज मुकदमों का निपटारा एक वर्ष में पूरा करने का निर्देश दिया गया था. पीठ ने अब इस मसले को गंभीर बताते हुए इस पर विचार करने का निर्णय लिया है. इस मामले में अब सुप्रीम कोर्ट चार दिसंबर को विचार करेगा.
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वहीं सुनवाई के दौरान अमिक्स क्यूरी विजय हंसारिया ने कहा कि दागी सांसद व विधायकों केखिलाफ दर्ज आपराधिक मुकदमे से निपटने के लिए स्पेशल कोर्ट बनाने से बेहतर यह होगा कि हर जिले में एक सत्र न्यायालय और एक मजिस्ट्रेट कोर्ट को विशेष तौर ऐसे मामलों के निपटारे लिए सूचीबद्ध कर दिया जाए. जिससे कि निर्धारित समय के भीतर मुकदमे का निपटारा संभव हो सके. दागी सांसद व विधायकों केखिलाफ दर्ज आपराधिक मुकदमे से निपटने के लिए 70 स्पेशल कोर्ट बनाने की जरूरत है.
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इस पर केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरकार का ऐसा मानना है कि जहां 65 से कम मुकदमे दर्ज हैं वहां किसी नियमित कोर्ट को ऐसे मुकदमों का निपटारा करने की जिम्मेदारी दे दी जानी चाहिए. याचिका में एडीआर की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा गया है कि सांसद व विधायकों के खिलाफ 13680 आपराधिक मुकदमे लंबित हैं.
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