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समाज का अभिशाप, कानून नाकाफी...दहेज कुप्रथा पर सख्त निर्देश देते हुए सुप्रीम कोर्ट

पीठ ने दहेज हत्या के 24 साल पुराने मामले में अपना फैसला सुनाते हुए केंद्र और राज्यों को सभी स्तरों पर शैक्षिक पाठ्यक्रम में आवश्यक बदलावों पर विचार करने का निर्देश दिया, साथ ही इस संवैधानिक स्थिति को मजबूत करने का भी निर्देश दिया कि विवाह के दोनों पक्ष एक दूसरे के बराबर हैं और कोई भी दूसरे के अधीन नहीं है.

समाज का अभिशाप, कानून नाकाफी...दहेज कुप्रथा पर सख्त निर्देश देते हुए सुप्रीम कोर्ट
  • सुप्रीम कोर्ट ने दहेज प्रथा को संवैधानिक और सामाजिक रूप से समाप्त करने की आवश्यकता को अत्यंत महत्वपूर्ण बताया
  • इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दहेज निषेध कानून अप्रभावी है और दहेज प्रथा आज भी व्यापक रूप से फैली हुई है
  • सुप्रीम कोर्ट ने स्कूलों में विवाह में समानता का संदेश देने वाले पाठ्यक्रम में बदलाव करने के निर्देश दिए हैं
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सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक मामले की सुनवाई के दौरान टिप्पणी की कि दहेज प्रथा का उन्मूलन एक अत्यावश्यक संवैधानिक और सामाजिक आवश्यकता है. साथ ही रेखांकित किया कि मौजूदा कानून ‘अप्रभावी' और ‘दुरुपयोग' दोनों से ग्रस्त हैं, और यह बुराई अब भी व्यापक रूप से प्रचलित है. कोर्ट ने दहेज को समाज में गहरी जड़ें जमाए एक अभिशाप बताते हुए इसके उन्मूलन के लिए व्यापक दिशानिर्देश जारी किए है. अदालत ने कहा कि केवल कानून पर्याप्त नहीं है, बल्कि सामाजिक सोच में बदलाव जरूरी है. भावी पीढ़ी को विवाह में समानता और गरिमा के संवैधानिक मूल्यों के प्रति संवेदनशील बनाने की आवश्यकता है.

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मामले की पृष्ठभूमि

यह निर्देश उस मामले में आया जिसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दहेज मृत्यु और क्रूरता के आरोप में बरी कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का आदेश रद्द करते हुए कहा कि महज 20 वर्ष की एक युवती को इसलिए जान गंवानी पड़ी क्योंकि उसके माता-पिता दहेज की मांगें पूरी नहीं कर सके. पीठ ने अपनी टिप्पणी में कहा कि एक जवान लड़की, जिसकी उम्र मुश्किल से 20 साल थी, उसे दुनिया से एक बहुत ही भयानक और दर्दनाक मौत के ज़रिए भेज दिया गया.

उसका यह दुखद अंत सिर्फ इसलिए हुआ क्योंकि उसके माता-पिता के पास शादी में उसके ससुराल वालों की ज़रूरतों या लालच को पूरा करने के लिए पैसे और साधन नहीं थे. एक कलर टीवी, एक मोटरसाइकिल और 15,000 रुपये, बस इतनी ही उसकी कीमत समझी गई.

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सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख निर्देश

  • शैक्षणिक पाठ्यक्रम में बदलाव: केंद्र और राज्यों को निर्देश दिया गया कि स्कूल-कॉलेज स्तर पर पाठ्यक्रम में ऐसे बदलाव किए जाएं, जिनसे यह स्पष्ट संदेश जाए कि विवाह में दोनों पक्ष समान हैं और कोई भी दूसरे के अधीन नहीं है.
  • दहेज निषेध अधिकारियों की नियुक्ति: सभी राज्यों में दहेज निषेध अधिकारियों की प्रभावी नियुक्ति सुनिश्चित की जाए. उनके नाम, फोन नंबर और ई-मेल जैसी जानकारी स्थानीय स्तर पर व्यापक रूप से प्रसारित की जाए.
  • पुलिस और न्यायिक अधिकारियों का प्रशिक्षण: दहेज मृत्यु और क्रूरता के मामलों में सामाजिक-मनोवैज्ञानिक पहलुओं को समझने के लिए पुलिस और न्यायिक अधिकारियों को नियमित प्रशिक्षण दिया जाए, ताकि वास्तविक मामलों और झूठे/दुरुपयोग वाले मामलों में फर्क किया जा सके.
  • लंबित मामलों का त्वरित निपटारा: सभी हाईकोर्ट्स को निर्देश दिया गया कि IPC की धारा 304-B (दहेज मृत्यु) और 498-A (दहेज प्रताड़ना) से जुड़े लंबित मामलों की समीक्षा कर शीघ्र निपटारे के लिए कदम उठाएं.
  • जमीनी स्तर पर जागरूकता: जिला प्रशासन और जिला विधिक सेवा प्राधिकरणों को सिविल सोसायटी और सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर नियमित जागरूकता कार्यक्रम और कार्यशालाएं आयोजित करने के निर्देश दिए गए.

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मामले का विवरण

नासरीन की शादी अजमल बेग से हुई थी. आरोप था कि शादी के बाद पति और उसके परिवार ने रंगीन टीवी, मोटरसाइकिल और ₹15,000 की लगातार मांग की. वर्ष 2001 में नासरीन पर केरोसिन डालकर उसे जला दिया गया, जिससे उसकी मौत हो गई. ट्रायल कोर्ट ने पति और सास को IPC की धारा 304-B, 498-A और दहेज निषेध अधिनियम के तहत दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा दी थी. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2003 में दोनों को बरी कर दिया.

राज्य सरकार की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का फैसला पलटते हुए पति को उम्रकैद की सजा बहाल की. 94 वर्ष की सास को वृद्धावस्था के कारण जेल भेजने से छूट दी गई. अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि दहेज की मांग शादी से पहले हो या बाद में कानून में कोई भेद नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने आदेश की प्रति सभी हाईकोर्ट्स के मुख्य न्यायाधीशों और राज्यों के मुख्य सचिवों को भेजने का निर्देश दिया. मामले में अनुपालन रिपोर्ट चार सप्ताह बाद दाखिल की जाएगी.

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