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तपती गर्मी, चारे की कमी और सूखे का खतरा अब दक्षिणी केरल के अनंतपुर क्षेत्र में कई डेयरी किसानों को सताने लगा है। अनंतपुर में पिछले 30 सालों से रह रहे अनंतकृष्णन कन्नप्पन की माने तो इस बार गर्मी की मार से बचने के लिए डेयरी किसान अपने पशुओं को बेच रहे हैं। ऐसा पहली बार हुआ है कि पानी और चारे के अभाव के कारण किसानों को ऐसा कदम उठाना पड़ रहा है। वे कम दामों में अपने पशुओं को बेचने पर मजबूर हैं।
वहीं, केरल पशु चिकित्सा, पशु विज्ञान विश्वविद्यालय और राज्य सरकार के पशुपालन विभाग के शोधकर्ताओं की एक टीम अब वेचूर और कासरगोड जैसे पशुओं को बढ़ावा दे रही है। टीम की मानें तो इस प्रकार की स्थानीय किस्मों की प्रजातियों में गर्मी बर्दास्त करने की क्षमता औरों से अधिक होती है और ये जल्दी बीमार भी नहीं पड़ते।
पशु प्रजनन और जेनेटिक्स के विशेषज्ञ ईएम मोहम्मद की माने तो अधिक उपज वाले मवेशी उमस भरी गर्मी के दिनों में बेहोश हो सकते हैं या फिर मर भी सकते हैं, लेकिन बौनी गाय (ड्वॉर्फ काऊ) एक ऐसी नस्ल के पशु होते हैं, जिनमें गर्मी बर्दास्त करने की क्षमता अधिक होती है। ड्वॉर्फ काऊ को जो किसान पाल रहे हैं उनका कहना है कि इस बौनी नस्ल वाली गाय का आहार बहुत ही कम है और कम पानी में भी ये अपना गुजारा आसानी से कर लेते हैं। विशेषज्ञ की मानें तो छोटे पैमाने वाले किसानों को ऐसे महज एक या दो गायों की जरूरत है, जो उनके परिवारों की जरूरतों को आसानी से पूरा कर सकता है।
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार पूरे केरल में कुल 23 लाख मवेशी हैं, जिसमें से 6.5 प्रतिशत 'ड्वॉर्फ' किस्म के पशु शामिल हैं। लेकिन, एक मुद्दा ज्यादा खर्च का है। मतलब एक ड्वॉर्फ नस्ल की कीमत एक बड़े नस्ल वाली गाय के बराबर होती है। जो लगभग 20,000 रुपए की होती है। जब बड़ी नस्ल वाली गाय स्वस्थ और तंदुरुस्त होती है तो वे ज्यादा दूध देती है और यही वजह है कि किसानों को बड़ी नस्ल वाली गाय ज्यादा पसंद आती है।
ड्वॉर्फ मिल्क काफी महंगे होते हैं। इसलिए जिन लोगों की आर्थिक स्थिति अच्छी है, वो ड्वॉर्फ मिल्क का ही सेवन करते हैं, क्योंकि ये काफी पौष्टिक होता है। यही नहीं, हाल ही में गुजरात में ऐसे दो ड्वॉर्फ केरल से लाए गए हैं, जबकि पंजाब के सीएम प्रकाश सिंह बादल ने चंडीगढ़ स्थित एक फार्म के लिए ऐसे ही 6 ड्वॉर्फ को मंगवाया है।
वहीं, केरल पशु चिकित्सा, पशु विज्ञान विश्वविद्यालय और राज्य सरकार के पशुपालन विभाग के शोधकर्ताओं की एक टीम अब वेचूर और कासरगोड जैसे पशुओं को बढ़ावा दे रही है। टीम की मानें तो इस प्रकार की स्थानीय किस्मों की प्रजातियों में गर्मी बर्दास्त करने की क्षमता औरों से अधिक होती है और ये जल्दी बीमार भी नहीं पड़ते।
पशु प्रजनन और जेनेटिक्स के विशेषज्ञ ईएम मोहम्मद की माने तो अधिक उपज वाले मवेशी उमस भरी गर्मी के दिनों में बेहोश हो सकते हैं या फिर मर भी सकते हैं, लेकिन बौनी गाय (ड्वॉर्फ काऊ) एक ऐसी नस्ल के पशु होते हैं, जिनमें गर्मी बर्दास्त करने की क्षमता अधिक होती है। ड्वॉर्फ काऊ को जो किसान पाल रहे हैं उनका कहना है कि इस बौनी नस्ल वाली गाय का आहार बहुत ही कम है और कम पानी में भी ये अपना गुजारा आसानी से कर लेते हैं। विशेषज्ञ की मानें तो छोटे पैमाने वाले किसानों को ऐसे महज एक या दो गायों की जरूरत है, जो उनके परिवारों की जरूरतों को आसानी से पूरा कर सकता है।
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार पूरे केरल में कुल 23 लाख मवेशी हैं, जिसमें से 6.5 प्रतिशत 'ड्वॉर्फ' किस्म के पशु शामिल हैं। लेकिन, एक मुद्दा ज्यादा खर्च का है। मतलब एक ड्वॉर्फ नस्ल की कीमत एक बड़े नस्ल वाली गाय के बराबर होती है। जो लगभग 20,000 रुपए की होती है। जब बड़ी नस्ल वाली गाय स्वस्थ और तंदुरुस्त होती है तो वे ज्यादा दूध देती है और यही वजह है कि किसानों को बड़ी नस्ल वाली गाय ज्यादा पसंद आती है।
ड्वॉर्फ मिल्क काफी महंगे होते हैं। इसलिए जिन लोगों की आर्थिक स्थिति अच्छी है, वो ड्वॉर्फ मिल्क का ही सेवन करते हैं, क्योंकि ये काफी पौष्टिक होता है। यही नहीं, हाल ही में गुजरात में ऐसे दो ड्वॉर्फ केरल से लाए गए हैं, जबकि पंजाब के सीएम प्रकाश सिंह बादल ने चंडीगढ़ स्थित एक फार्म के लिए ऐसे ही 6 ड्वॉर्फ को मंगवाया है।