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This Article is From Jan 24, 2018

सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ केस : सुनवाई की मीडिया रिपोर्टिंग पर लगी पाबंदी पर आज हाई कोर्ट सुनाएगी फैसला

सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ मुकदमे की सुनवाई की मीडिया रिपोर्टिंग पर लगी पाबंदी पर बॉम्बे हाई कोर्ट आज अपना फैसला सुनायेगी. मंगलवार को अदालत ने तकरीबन 2 घंटे सभी पक्षों की दलीलें सुनीं.

सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ केस : सुनवाई की मीडिया रिपोर्टिंग पर लगी पाबंदी पर आज हाई कोर्ट सुनाएगी फैसला
सोहराबुद्दीन केस : सुनवाई की मीडिया रिपोर्टिंग पर लगी पाबंदी पर आज फैसला (प्रतीकात्मक फोटो)
मुंबई: सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ मुकदमे की सुनवाई की मीडिया रिपोर्टिंग पर लगी पाबंदी पर बॉम्बे हाई कोर्ट आज अपना फैसला  सुनायेगी. मंगलवार को अदालत ने तकरीबन 2 घंटे सभी पक्षों की दलीलें सुनीं. गौरतलब है कि मुकदमा सुन रही सीबीआई की विशेष अदालत ने 29 नवंबर 2017 को अपने एक आदेश में मुकदमे की मीडिया रिपोर्टिंग पर पाबंदी लगा दी थी. अदालत ने ये आदेश मामले में एक आरोपी पुलिस इंस्पेक्टर की अर्जी पर दिया.

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मुंबई के अलग-अलग टीवी चैनलों और अख़बारों और वेब न्यूज़ पोर्टल में काम करने वाले 9 पत्रकारों ने बॉम्बे हाई कोर्ट में याचिका दायरकर उस आदेश को तुरंत रद्द करने की मांग की. याचिका में दलील दी गई है कि मीडिया रिपोर्टिंग पर पाबंदी का विशेष अदालत का आदेश अवैधानिक है क्योंकि सीआरपीसी की धारा 327 के तहत अदालती कार्रवाई सबके लिए खुली होनी चाहिए. मंगलवार को सुनवाई के दौरान पत्रकारों की तरफ से वरिष्ठ वकील आबाद पोंडा और अभिनव चंद्रचूड़ ने अपनी दलीलें पेश कीं. आबाद पोंडा ने अपनी जिरह में कहा कि निचली अदालत को ये अधिकार नहीं है कि वो मीडिया रिपोर्टिंग पर पाबंदी लगा सके जब तक कि मामला इन- कैमरा ना सुना जा रहा हो. सोहाराबुदीन फर्जी मुठभेड़ मामले में ऐसा कुछ भी नहीं है, फिर अदालत ने मीडिया रिपोर्टिंग पर तो पाबंदी लगा दी है लेकिन सुनवाई के दौरान अदालत में जाने पर कोई रोक नहीं है. वहीं अभिनव चंद्रचूड़ ने दलील दी कि मीडिया रिपोर्टिंग पर पाबंदी की मांग वाली अर्जी में कोई ऐसा तथ्य नहीं पेश किया गया जिसमें गवाह या वकील पर मीडिया रिपोर्टिंग की वजह से कोई खतरा पैदा हुआ हो.

मामले में बृहनमुंबई यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट ने भी याचिका दायर कर मीडिया रिपोर्टिंग पर पाबंदी की मुखलाफ़त की है. मंगलवार को सुनवाई के दौरान बी यूजे की तरफ से पेश वकील मिहिर देसाई ने दलील दी कि लिखना और बोलना मीडिया का अधिकार है और क्या हो रहा है, ये जानना जनता का अधिकार है. इस लिहाज से आरोपियों द्वारा मीडिया रिपोर्टिंग पर पाबंदी की अर्जी कानून के कसौटी पर खरी नहीं उतरती है. दूसरी तरफ सोहाराबुदीन फर्जी मुठभेड़ मुकदमे में आरोपी के वकील ने आसाराम बापू बलात्कार केस में गवाह की हत्या और और मुंबई में वकील शाहिद आज़मी की हत्या का हवाला देते हुए मामले में कई राजनेता और बड़े पुलिस वालों पर आरोप होने की बात कही. हालांकि सुनवाई कर रहीं जज रेवती मोहिते डेरे ने कहा, गवाहों की सुरक्षा का ख्याल रखा जा सकता है. उनकी पहचान नही बताई जा सकती है. खास बात है कि अभियोजन पक्ष ने गवाहों की सुरक्षा का कोई मुद्दा नहीं उठाया है. आप के तर्क के हिसाब से तो सभी संवेदनशील मुकदमों की रिपोर्टिंग पर पाबंदी लगनी चाहिए.

एक अन्य आरोपी के वकील राजेश बिंद्रा ने अदालत को बताया कि सोहाराबुदीन का अंडरवर्ल्ड कनेक्शन था. हमे धमकी भरे फोन आते हैं. मीडिया रिपोर्टिंग से देश की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है. जज ने कहा सिस्टम पर भरोसा रखिये. सोहाराबुदीन फर्जी मुठभेड़ केस का मुकदमा मुंबई के सत्र न्यायालय में सीबीआई की विशेष अदालत में चल रहा है. आरोप है कि साल 2005 में हुई फर्जी मुठभेड़ में गुजरात और राजस्थान की पुलिस ने सोहराबुदीन की हत्या की बाद में उसकी पत्नी कौसर बी की भी हत्या कर उसे दफना दिया.

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साल भर बाद फर्जी मुठभेड़ के चश्मदीद तुलसीराम प्रजापति की भी फर्जी मुठभेड़ में मौत दिखाई गई. मामले में गुजरात के तत्कालीन गृहमंत्री अमित शाह और राजस्थान के भी एक मंत्री के साथ कई बड़े पुलिस अधिकारियों के शामिल होने और गुजरात मे निष्पक्ष मुकदमा ना हो पाने की आशंका के चलते सीबीआई की मांग पर सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर मुकदमा मुंबई में हस्तातंरित कर दिया गया. अब तक अमित शाह, गुलाब चंद कटारिया जैसे नेता और डी जी वंजारा जैसे दबंग कई दूसरे पुलिस वालों पर से आरोप खारिज हो चुके हैं लेकिन अब भी 25 के करीब पुलिस वाले मामले में आरोपी हैं.

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