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This Article is From Jan 08, 2015

चाईनीज मांझे का विरोध कर रहे बनारस के छोटे छोटे बच्चे

वाराणसी:

चाईना के सामानों को लेकर विरोध स्वर समय-समय पर सुनाई पड़ता रहा है। इसमें कई बार सियासी दल भी अपनी आवाज मिलाते रहे हैं, लेकिन मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में इन दिनों चाइनीज मांझे के नाम से आ रहे मांझे का विरोध हो रहा है और वो भी और कोई नहीं बल्कि, छोटे-छोटे बच्चे विरोध कर रहे हैं जिनसे इनकी पतंगे हवा में परवाज करती हैं।

पिछले कुछ वर्षों से बाजार में एक नया मांझा आया है जिसे चाइनीज मांझा कहा जाता है। ये मांझा मज़बूत होता है, साथ ही ये बहुत सस्ता भी होता है। इसके न टूटने और धारदार होने की वजह से आये दिन दुर्घटना हो रही है। 

आप सब जानते हैं कि पतंगबाजी में सबसे ज़्यादा मजा पतंग काटने और पेंच लड़ने में आता है। पेंच के लिए मजबूत मांझे की ज़रूरत होती है। अपने देश में इसके लिए देशी तरीके से बने मांझे और सद्दी (धागे) का इस्तेमाल होता है। ये मांझा सबसे ज़्यादा बरेली में बनता है जहां से पूरे देश में जाता है इनके अपने बनाने वालों के नाम पर इसके रेट तय होते हैं जैसे जाफरी मांझा, रोहित मांझा, शाहिद वाहिद मांझा, जिलानी मांझा, ये मांझा 800 रुपये परेता से लेकर 200 रुपये परेता तक होता हैं।

 

एक परेता जिसे कहीं-कहीं लटाई या चरखी भी कहा जाता है इसमें छह पुल्ली धागा आता है। देशी मांझा जितने ऊंचे दाम का होता है उतना अच्छा माना जाता है, लेकिन ये इतना भी मज़बूत नहीं होता कि किसी की गर्दन, उंगली या पैर काट दे। जबकि पिछले छह सालों से बाजार में चाइनीज मांझा आया जो दिल्ली से किलो के भाव में आता है और इसका रेट बेहद सस्ता होता है, यानि 300 रुपये किलो एक किलो में दो परेता मांझा होता है। मतलब देशी मांझे 700 की तुलना में 150 रुपये में ही एक पारेता आ जाएगा और इसकी मजबूती ऐसी होती है कि ये जल्दी टूटता नहीं बल्कि शरीर के किसी अंगों से अगर खिंच जाए तो उसे काट देता है।   

 

यही वजह है कि इस मांझे के विरोध में वो बच्चे ज़्यादा हैं जो इस मांझे का शिकार बने हैं और आए दिन चाइनीज मंझे से हो रहे हादसे ने उन्हें उसके खिलाफ आवाज बुलंद करने पर मजबूर कर दिया।विरोध कर रहे इन्हीं बच्चों में सात साल का संस्कार सिंह है जो अपनी गर्दन में कटे का निशान दिखा कर ये बताता है कि कैसे वो जब खेल रहा था तो इस चाइनीज मांझे का शिकार हो गया।

संस्कार अपनी तूतली भाषा में बताता है कि "हम खेल रहे थे बैट बाल हमारा बॉल उधर गया। सब बच्चे लोग गुड्डी उड़ा रहे थे, हम उधर दौड़ते-दौड़ते गए तो मेरे गाल में फंस गया हम और उधर गए बॉल उठाने लगे तो खून निकलने लगा। चाइनीज मांझे का ये दर्द संस्कार के लिए ऐसा था को वो अपने हमउम्र और उससे बड़े बच्चों के इस मुहीम में जुट गया।

ये लोग पिछले 28 दिसंबर से हर दिन ऐसे ही बनारस के अलग-अलग इलाके में जनता हिताय समिति के बैनर तले इस मांझे के खिलाफ नुक्कड़ नाटक करते हैं, जुलूस निकालते हैं और हाथ में तख़्तिया लेकर लोगों और बच्चों के साथ पतंग के दुकानदारों को इसे न बेचने के लिए आगाह करते हैं।

बच्चों के इस टीम के लीडर राज गुप्ता हैं, जो कहते हैं कि हम लोग नाटक का मंचन कर इस बात का सन्देश दे रहे हैं, आम जनमानस को कि चाइनीज मांझा बंद करें क्योंकि आये दिन घटना हो रही है, अगर जनता इसी तरह चुप रहेगी तो ब्लैक में बेचने वाले इन दुकानदारों का मन उसी तरह बढ़ा रहेगा जैसे एक बच्चे का मन बढ़ा रहता है अपने बाप से पैसा मांगने में।

गौरतलब है कि पतंगबाजी का शौक पूरी दुनिया में बहुत पुराना है। बाजार में हर बड़ी हस्ती या घटना पर पतंगे आ जाती हैं। इन दिनों भी बनारस के बाजार में अगर मोदी और ओबामा की पतंग परवाज भर रही है तो अखिलेश यादव के संग मोदी की पतंग भी पेंच लड़ाने के लिए तैयार है। और इसी पेंच के चक्कर में चाइनीज धागे से आए दिन दुर्घटना हो रही है जिससे आदमी ही नहीं पक्षी भी घायल हो रहे हैं। ऐसे में इन बच्चों की ये मुहीम भले ही छोटी हो पर इनका उद्देश्य बहुत बड़ा है।

 

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