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This Article is From Apr 28, 2020

सुप्रीम कोर्ट ने कहा- नागरिक अदालती फैसलों की आलोचना कर सकते हैं, लेकिन न्यायाधीशों की मंशा पर सवाल खड़ा करना गलत

उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि नागरिक अदालती फैसलों की आलोचना कर सकते हैं, लेकिन किसी को न्यायाधीशों की मंशा पर सवाल उठाने का हक नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा- नागरिक अदालती फैसलों की आलोचना कर सकते हैं, लेकिन न्यायाधीशों की मंशा पर सवाल खड़ा करना गलत
सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:

उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि नागरिक अदालती फैसलों की आलोचना कर सकते हैं, लेकिन किसी को न्यायाधीशों की मंशा पर सवाल उठाने का हक नहीं है. शीर्ष अदालत ने इस बात पर भी जोर दिया कि न्यायाधीशों को धमकाने की कोशिशों से सख्ती से निपटना होगा. न्यायालय ने अपने दो वर्तमान न्यायाधीशों के खिलाफ अपमानजनक आरोप लगाने के लिए दो वकीलों समेत तीन लोगों को अवमानना का दोषी ठहराया और कहा कि न्यायाधीशों को धमकाने की कोशिश करने वाले वकीलों के लिए बेबुनियाद सहानुभूति नहीं हो सकती. पीठ ने विजय कुरले (राज्य अध्यक्ष, महाराष्ट्र और गोवा, इंडियन बार एसोसिएशन), राशिद खान पठान (राष्ट्रीय सचिव, मानवाधिकार सुरक्षा परिषद) और नीलेश ओझा (राष्ट्रीय अध्यक्ष, इंडियन बार एसोसिएशन) को अवमानना का दोषी ठहराया है.

इन तीनों लोगों के सजा पर एक मई को सुनवाई होगी. न्यायालय ने अपने दो वर्तमान न्यायाधीशों के खिलाफ अपमानजनक आरोप लगाने के लिए दो वकीलों समेत तीन लोगों को अवमानना का दोषी ठहराया और कहा कि न्यायाधीशों को धमकाने की कोशिश करने वाले वकीलों के लिए बेबुनियाद सहानुभूति नहीं हो सकती.शीर्ष अदालत ने कहा कि न्यायपालिका और उसके फैसलों समेत किसी भी संस्थान की सद्भावनापूर्ण और सकारात्मक आलोचना का हमेशा स्वागत है और इसे अदालत की अवमानना नहीं कहा जा सकता.

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