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This Article is From Dec 25, 2011

वयोवृद्ध रंगकर्मी सत्यदेव दुबे का निधन

मशहूर नाटककार एवं निर्देशक सत्यदेव दुबे का रविवार को मुम्बई में निधन हो गया। वह कई महीनों से बीमार थे।
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मुम्बई: मशहूर नाटककार एवं निर्देशक सत्यदेव दुबे का रविवार को मुम्बई में निधन हो गया। वह कई महीनों से बीमार थे। उनके परिवार के सूत्रों ने यह जानकारी दी। वह 75 वर्ष के थे। उनके निधन से रंगमंच को अपूरर्णीय क्षति पहुंची है। रंगमंच से जुड़े एक सूत्र ने बताया मिर्गी के दौरे कारण दुबे कोमा में चले हए थे और वह सितम्बर से अस्पताल में भर्ती थे। उनका निधन करीब 12:30 बजे हुआ। उनके पारिवारिक मित्र विनोद थरानी ने कहा, "वह कोमा में जाने के बाद से सितम्बर से अस्पताल में थे। उनका अंतिम संस्कार दादर शवदाह गृह में शाम को होगा।" दुबे 'पगला घोड़ा', 'आधे अधूरे' और 'एवम इंद्रजीत' जैसे नाटकों के लिए प्रसिद्ध थे लेकिन उन्हें प्रसिद्धी 'अंधा युग' ने दिलाई। उनका जन्म छत्तीसगढ़ के शहर बिलासपुर में 1936 में हुआ था। दुबे मुम्बई क्रिकेटर बनने आए थे लेकिन वह इब्राहिम अल्काजी द्वारा संचालित थिएटर में शामिल हो गए। अल्काजी के दिल्ली स्थित राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के प्रमुख बनने के बाद वह थिएटर का संचालन करने लगे। उन्होंने गिरीश कर्नाड के पहले नाटक 'ययाति' का निर्माण किया। इसके अलावा 'हयावदना' प्रमुख हैं। उन्हें धर्मवीर भारती के रेडियो के लिखे नाटक 'अंधा युग' को रंगमंच पर उतारने का श्रेय दिया जाता है। दुबे ने दो लघु फिल्मों 'अपरिचय के विंध्याचल' और 'टंग इन चीक' का भी निर्माण किया और मराठी फिल्म 'शांताताई' का निर्देशन किया। दुबे को 1971 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। दुबे को श्याम बेनेगेल की फिल्म 'भूमिका' की उत्कृष्ट पटकथा के लिए 1971 में राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और 1980 में 'जुनून' के संवाद के लिए फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

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