New Delhi:
उच्चतम न्यायालय ने पाकिस्तान की जेल में पिछले 21 साल से बंद भारतीय कैदी सरबजीत सिंह की याचिका पर बुधवार को केंद्र से अपना रुख बताने को कहा है। सरबजीत ने इस याचिका में केंद्र सरकार को अपनी रिहाई और देश वापसी के कदम उठाने का निर्देश देने की मांग की थी। सरबजीत सिंह को पाकिस्तान में आतंकवादी गतिविधि में कथित भूमिका को लेकर 21 साल पहले बंद किया गया था। उसे मौत की सजा सुनाई गयी थी। उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति बी. सुदर्शन रेड्डी और न्यायमूर्ति सुरिंदर सिंह निज्जर की पीठ ने सरबजीत द्वारा अपनी बहन दलबीर कौर के माध्यम से दाखिल याचिका पर विदेश मंत्रालय और केंद्रीय गृह सचिव को नोटिस जारी किये। कौर ने कहा, केंद्र सरकार उसकी रिहाई के लिए उचित कदम नहीं उठा पाई है। कौर के मुताबिक विदेश मंत्रालय और गृह मंत्रालय ने अनेक कोशिशों के बावजूद उनके पत्रों का जवाब तक नहीं दिया। कौर ने अदालत से सरकार को लाहौर की कोटलखपत केंद्रीय जेल से सरबजीत की रिहाई के लिए तत्काल और जरूरी कदम उठाने का निर्देश देने की मांग की थी। उन्होंने कहा, नागरिकों के मूलभूत अधिकारों को सुनिश्चित करना और पाकिस्तान सरकार द्वारा अवैध तरीके से बंद सरबजीत की जल्द रिहाई के लिए उचित कदम उठाने की जिम्मेदारी भारत सरकार की है। दलबीर कौर ने अपनी याचिका में यह आरोप भी लगाया कि सरबजीत और पाकिस्तान में अवैध तरीके से बंद अन्य भारतीय नागरिकों की रिहाई के लिए सरकार की तरफ से काफी कम प्रयास किये गये जबकि उनमें से अनेक लोग दोषी ठहराये जाने के बाद अपनी कैद की अवधि पूरी कर चुके हैं। कौर ने दावा किया, पाकिस्तान की अदालतांे ने गलत तरह से सरबजीत को दोषी ठहराया और गलत पहचान के चलते मौत की सजा सुनाई। पाकिस्तान की पुलिस ने सरबजीत को लाहौर और मुल्तान में सिलसिलेवार बम विस्फोटों में कथित तौर पर शामिल होने के मामले में 28 अगस्त 1990 को गिरफ्तार किया था। लाहौर की आतंकवाद निरोधी अदालत ने अक्तूबर 1991 में उसे मौत की सजा सुनाई। लाहौर उच्च न्यायालय ने और बाद में पाकिस्तान की शीर्ष अदालत ने 2009 में मौत की सजा को बरकरार रखा। हालांकि पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति की तरफ से सरबजीत को माफी दे दी गयी। सरबजीत की बहन ने शीर्ष अदालत में अपनी याचिका में कहा, पाकिस्तान में 28 जुलाई 1990 को घटी कथित घटना के वक्त सरबजीत मौजूद नहीं था। उन्होंने गलत पहचान के कारण अपने भाई के शिकार बनने की दलील दी।