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This Article is From Oct 09, 2011

संघ ने गुटबाजी पर भाजपा को दी नसीहत

नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेताओं को नसीहत देते हुए कहा है कि खेमेबाजी किसी भी पार्टी संगठन को कमजोर करती है। उस दल में यदि सत्ता स्वार्थो के लिए अपने अहम व गुट को लेकर प्रमुख नेता एक दूसरे की टांग खिंचाई में ही ऊर्जा खपाएंगे तो उन उद्देश्यों की ओर नहीं बढ़ा जा सकता, जिसके लिए वह दल अस्तित्व में आया। संघ के मुखपत्र पांचजन्य के ताजा अंक में छपे संपादकीय में दरअसल भाजपा तथा उसके शीर्ष नेताओं को यह नसीहत दी गई है। यह संपादकीय ऐसे समय में छपा है जब भाजपा के शीर्ष नेता लालकृष्ण आडवाणी सुशासन व स्वच्छ राजनीति के मुद्दे पर देश भर में यात्रा करने वाले हैं और हाल ही में दिल्ली में सम्पन्न हुई भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में आडवाणी और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच टकराव की खबरें सुर्खियों में रहीं। भाजपा में मची आपसी खींचतान की ओर इशारा करते हुए संपादकीय में लिखा गया, "दल को परस्पर विवादों व अंतर्द्वंद्व से ऊपर उठकर पार्टी संगठन को अहमियत देते हुए उसे मजबूत करना पड़ेगा। लेकिन समर्पित कार्यकर्ताओं की उपेक्षा कर नेताओं की गणेश परिक्रमा करने वाले लोंगों को महत्व दिए जाने से किसी भी दल का संगठनात्मक ढांचा मजबूत नहीं हो सकता।" संपादकीय में कहा गया कि नेताओं की खेमेबाजी किसी भी पार्टी संगठन को कमजोर करती है। उस दल में यदि सत्ता स्वार्थो के लिए अपने अहम व गुट को लेकर प्रमुख नेता एक दूसरे की टांग खिंचाई में ही ऊर्जा खपाएंगे तो उन उद्देश्यों की ओर नहीं बढ़ा जा सकता, जिसके लिए वह दल अस्तित्व में आया। संपादकीय में लिखा गया है, "किसी भी दल के लिए कांग्रेस का विकल्प बनने का मतलब सत्ता के लिए अनैतिक गठजोड़, येन केन प्रकारेण चुनाव जीतना और कांग्रेसनीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार को सत्ताच्युत कर स्वयं सिंहासनरूढ़ होना नहीं है।" इसके मुताबिक, "देश के समक्ष गंभीर संकट का आधार बने मुद्दों पर कोई समझौता न करते हुए अपने संघर्ष से राष्ट्रहित व जनहित की रक्षा करना उस राजनीतिक दल की प्राथमिकता होनी चाहिए। उसकी इस विश्वसनीयता से ही जनता उसके साथ खड़ी होगी और सत्तालोलुप गठजोड़ को उखाड़ फेंकेगी।" संपादकीय में आगे लिखा गया, "केवल सत्ता की कामना से ऐसा राजनीतिक संघर्ष नहीं किया जा सकता, इसके लिए मूल्य आधारित शुचितापूर्ण राजनीतिक सोच आवश्यक है। अवसरवादी व सुविधा की राजनीति इसमें सबसे बड़ी बाधा है।"

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