
प्रतीकात्मक तस्वीर
नई दिल्ली:
विश्व के शीर्ष 200 विश्वविद्यालयों में देश के महज दो शिक्षण संस्थान आईआईटी दिल्ली और दिल्ली विश्वविद्यालय ही स्थान बनाने में कामयाब हो सके हैं. एक सर्वेक्षण में यह जानकारी सामने आयी है. उद्योग संगठन एसोचैम और यस इंस्टीट्यूट के साझा अध्ययन में कहा गया है कि शीर्ष वैश्विक प्रचलन से सीख लेना अब देश के लिए आवश्यक हो गया है. इस अध्ययन में अमेरिका के 49, ब्रिटेन के 30, जर्मनी के 11 तथा चीन एवं ऑस्ट्रेलिया के 8-8 संस्थानों को जगह मिली है.
अध्ययन में कहा गया, ‘मेधावी प्रतिभाएं अध्ययन- शोध के लिए विकसित देशों में चली जाती हैं और अन्य देशों में बौद्धिक एवं आर्थिक मूल्यों का योगदान देती हैं. एक आकलन के अनुसार छह लाख भारतीय विद्यार्थी विदेश में पढ़ रहे हैं और उन देशों में 20 अरब डॉलर सालाना से अधिक खर्च कर रहे हैं.’
आईआईएम अहमदाबाद ने मैनेजमेंट के पीजी कोर्स की फीस बढ़ाकर 22 लाख की
अध्ययन के अनुसार, महज 16 प्रतिशत भारतीय कंपनियां संस्थान के भीतर ही प्रशिक्षण देती हैं जबकि चीन में यह80 प्रतिशत है. इसमें कहा गया कि भारतीय स्नातकों के बेहद छोटे हिस्से को रोजगार के लायक माना जाता है. राष्ट्रीय रोजगार रिपोर्ट2013 के अनुसार, विज्ञान- वाणिज्य समेत सभी शैक्षणिक वर्गों में रोजगार की योग्यता 25 प्रतिशत से भी कम है.
रिपोर्ट में कहा गया कि भारतीय उच्च शिक्षा जगत रोजगार के अल्प स्तर, शोध की कमी तथा नवाचार एवं उद्यमिता की सीमित संभावनाओं जैसी समस्याओं से जूझ रहा है.
उसने कहा, ‘इससे उबरने के लिए उच्च शिक्षा प्रणाली को उभरती आर्थिक वास्तविकताओं तथा उद्योग जगत की जरूरतों के अनुकूल बनाने के साथ ही सुसंगठित एवं भविष्य आधारित शैक्षणिक रूपरेखा तैयार करना आवश्यक है.’
VIDEO: 60 शिक्षण संस्थानों को UGC की आजादी, JNU और BHU भी शामिल
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
अध्ययन में कहा गया, ‘मेधावी प्रतिभाएं अध्ययन- शोध के लिए विकसित देशों में चली जाती हैं और अन्य देशों में बौद्धिक एवं आर्थिक मूल्यों का योगदान देती हैं. एक आकलन के अनुसार छह लाख भारतीय विद्यार्थी विदेश में पढ़ रहे हैं और उन देशों में 20 अरब डॉलर सालाना से अधिक खर्च कर रहे हैं.’
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अध्ययन के अनुसार, महज 16 प्रतिशत भारतीय कंपनियां संस्थान के भीतर ही प्रशिक्षण देती हैं जबकि चीन में यह80 प्रतिशत है. इसमें कहा गया कि भारतीय स्नातकों के बेहद छोटे हिस्से को रोजगार के लायक माना जाता है. राष्ट्रीय रोजगार रिपोर्ट2013 के अनुसार, विज्ञान- वाणिज्य समेत सभी शैक्षणिक वर्गों में रोजगार की योग्यता 25 प्रतिशत से भी कम है.
रिपोर्ट में कहा गया कि भारतीय उच्च शिक्षा जगत रोजगार के अल्प स्तर, शोध की कमी तथा नवाचार एवं उद्यमिता की सीमित संभावनाओं जैसी समस्याओं से जूझ रहा है.
उसने कहा, ‘इससे उबरने के लिए उच्च शिक्षा प्रणाली को उभरती आर्थिक वास्तविकताओं तथा उद्योग जगत की जरूरतों के अनुकूल बनाने के साथ ही सुसंगठित एवं भविष्य आधारित शैक्षणिक रूपरेखा तैयार करना आवश्यक है.’
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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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