विज्ञापन
This Article is From Jan 16, 2015

दिल्ली की महिला वोटर, किसके साथ?

नई दिल्ली:

दिल्ली विधानसभा चुनाव की सरगर्मियां चरम पर है, अंगुलियों पर गिनकर 20-22 दिन बचे हैं, जब दिल्ली की कमान किसके हाथ में आएगी, यह इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों में बंद हो जाएगा।

इस लड़ाई को और दिलचस्प बनाने में जितना हाथ दिल्ली के स्थापित नेताओं का है, कमोबेश उतनी ही भागीदारी इस बार के चुनाव में कुछ नामचीन महिलाओं की भी नज़र आ रही है। किरण बेदी के बाद जयाप्रदा और शाज़िया इल्मी के भी बीजेपी में शामिल होने की ख़बरें तेज़ हैं।

अगर दिल्ली की मुख्यमंत्री के तौर पर कोई महिला शपथ लेती हैं तो ये अपने आप में एक अभूतपूर्व घटना होगी, क्योंकि इससे पहले अगर अरविंद केजरीवाल के 49 दिन के अल्पशासन काल को छोड़ दें तो लगातार 15 साल के लंबे समय तक दिल्ली की कुर्सी पर शीला दीक्षित बैठी रहीं। फिर से ये कमान, किसी महिला के हाथ में जाना ज़ाहिर है दिल्ली के मिजाज़ को भी बयाँ करेगा।

मेट्रो के महिला कोच में 'आप' का पोस्टर
7 फरवरी को जब दिल्ली में वोटिंग होगी तब दिल्ली में कुल 1,30,85,251 वोट डालेंगे, इनमें से 72,60,633 पुरुष और 58,24,618 महिला वोटर होंगी। इस बार 1.72 लाख नए वोटर भी शामिल होंगे तो ज़ाहिर है उनमें भी एक बड़ी संख्या महिलाओं की होगी। ऐसे में हमने सोचा कि पढ़ी-लिखी महिलाओं की एक बड़ी आबादी रोज़ाना दिल्ली का दिल कहे जानेवाले दिल्ली-मेट्रो में सफर करती है तो क्यों ना हम उनके बीच जाएं और ये जानने की कोशिश करें कि इस वक्त़ उनके मन में किस नेता के लिए ख़ास जगह है?

दिल्ली मेट्रो के वैशाली से मंडी हाउस जाने वाली ट्रेन के महिला कंपार्टमेंट में कदम रखते ही मेरी नज़र पड़ी, बीजेपी के नारंगी और हरे रंग के पोस्टर पर, जिसपर हमेशा की तरह मुस्कुराते हुए मोदी नज़र आ रहे हैं, 'चलो चलें मोदी के साथ' के नारे के साथ। मैंने दो युवा लड़कियों पूजा और नेहा (जो फिज़िकली चैलेंजड बच्चों की स्पेशल एजुकेशनिस्ट हैं) से अनौपचारिक बातचीत शुरु की और पूछा कि दिल्ली का मुख्यमंत्री कैसा होना चाहिए? जिसपर पूजा ने कहा कि, ऐसा व्यक्ति जो अच्छा काम कर सके। दोनों लड़कियों ने बताया कि नौकरीशुदा होने के कारण उनके लिए सबसे अह्म मुद्दा सुरक्षा का है ताकि वे किसी भी वक्त़ बगैर किसी बाधा के कहीँ भी आ-जा सके।

दोनों लड़कियों ने दो अह्म बात कही वे ये कि केजरीवाल बहुत ईमानदार आदमी हैं और काम भी करेंगे ऐसा उन्हें भरोसा है, लेकिन जिस तरह उन्होंने पिछली बार इस्तीफ़ा दिया था उसके बाद वे उन्हें दोबारा चांस देने के मूड में नहीं है। इन लड़कियों ने कहा कि राजनीति कोई आंगन में खेले जाने वाल स्टैपू यानि कित-कित का खेल नहीं है कि जब चाहा छोड़ कर चले गए। शीला दीक्षित या कांग्रेस इनके दिमाग में कहीं नहीं है, और मोदी के काम से ये प्रभावित हैं। हालांकि जब मैंने पूछा कि मोदी का कोई एक फैसला बताएं जो इन्हें बहुत अच्छा लगा हो तो दोनों बता नहीं पायी।  
 शुभ्रा अपनी दोस्तों के साथ, मेट्रो में

फिर मैंने दूसरे रूट की ट्रेन पकड़ी जहाँ पूरे कंपार्टमेंट में केजरीवाल के पोस्टर्स लगे हैं। इन पोस्टर्स में केजरीवाल अगले पाँच सालों में दिल्ली में हर जगह सीसीटीवी कैमरा, मोबाईल फोन पर सुरक्षा बटना और बसों व मेट्रो में सिक्योरिटी मार्शल्स तैनात करने का वादा कर रहे हैं। यहाँ मैंने बातचीत शुरु की शुभ्रा से। शुभ्रा एक मार्केटिंग फर्म में काम करती हैं, मैंने इनसे पूछा कि ये जो पोस्टर्स लगे हैं क्या इससे आपकी किसी नेता या पार्टी के प्रति सोच में कोई बदलाव या समझ डेवेलप होती है?

शुभ्रा का जवाब था- बिल्कुल फर्क पड़ता है, उदाहरण के तौर पर जब हम कपड़े खरीदने के लिए बाज़ार जाते हैं तो वहीं पर कुछ एक्ससरीज़ भी खरीद लेते हैं, हम जो देखते हैं वही पहले हमारी सोच का हिस्सा होता है फिर हमारे फैसलों का। शुभ्रा को भी केजरीवाल से शिकायत है लेकिन कहती हैं कि वे एक बार उन्हें फिर से मौका देना चाहेंगी..क्योंकि उनको लगता है कि वे महिलाओं, ग़रीबों, आम जनता और ख़ासकर बच्चों के शिक्षा की दिशा में बेहतर काम करेंगे।

डिफेंस कॉलोनी के नेहरू मेडिकल कॉलेज होमियोपैथिक डॉक्टर के तौर पर काम कर रही, ऋतिका कहती हैं कि इन पोस्टरों का असर उनपर पड़ता है जो कम पढ़े-लिखे हैं। हम जैसे लोग जो मल्टीपल मीडियम ऑफ कम्यूनिकेशंस से जुड़े हुए हैं उन्हें अपना निर्णय लेने के लिए इन पोस्टरों की ज़रुरत नहीं है। हालाँकि ऋतिका ने भी माना कि केजरीवाल ईमानदार आदमी हैं लेकिन अब उन्हें उनपर भरोसा नहीं रहा, और केंद्र सरकार काफी अच्छा काम कर रही है। प्रधानमंत्री मोदी के कारण हमारे भीतर आत्मविश्वास जगा है।

दिल्ली मेट्रो का महिला कोच
मैंने अपनी ये यात्रा दूसरे दिन यानि आज भी जारी रखी, और तब तक चुनावी मैदान में किरण बेदी का आगमन हो चुका था। पेशे से चार्टड अकाउंटेंट रजनी और सूचना और प्रौद्योगिकी मंत्रालय में कार्यरत नीता के मुताबिक केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद सरकारी दफ्तरों के काम-काज में काफी सुधार आया है। पहले अधिकारी आते ही नहीं थे, अब सब समय पर आते हैं और काम भी करते हैं। इन दोनों का कहना था कि केजरीवाल अच्छे व्यक्ति हैं और उन्होंने काम भी किया था, लेकिन चूंकि उनकी सरकार कॉंग्रेस के समर्थन पर थी तो हो सकता है कि वे किसी दबाव में रहे हों, मोदी सरकार के साथ ऐसा नहीं है, और अब जबकि परिदृश्य में किरण बेदी भी आ गई हैं तो हमारे लिए उनपर भरोसा करना ज्य़ादा आसान हैं, क्योंकि उनमें वो सारे गुण हैं जो केजरीवाल में है....लेकिन उनका एक महिला होना हमें स्वाभाविक तौर पर उनके करीब ले जाता है।

गुरु तेगबहादुर नगर की ऋचा कहती हैं कि वो केजरीवाल को बहुत पसंद करती हैं लेकिन मोदी सरकार के आने के बाद पेट्रोल-डीज़ल की कीमतों में कमी आयी है, महँगाई घटी है और महिलाओं की सुरक्षा पर भी ध्यान दिया जा रहा है ऐसे में वो बीजेपी को मौका देना चाहेंगी। क्योंकि केजरीवाल राजनीति में बच्चे हैं।
 मेट्रो के महिला कोच में महिलाएं

चलते-चलते मैंने शास्त्रीनगर की सरबजीत की तरफ़ देखा तो वे और उनके साथ खड़ी उनकी दो और दोस्त ने एक साथ चिल्लाते हुए कहा कि, मैडम बेदी ही हमारी पहली पसंद है...अगर वो नहीं होतीं तो केजरीवाल होते लेकिन अब जब बेदी बीजेपी की कैंडिडेट हैं तो हमें लगता है कि अगर हम केजरीवाल को वोट देंगे तो वो वेस्ट हो जाएगा और हम अपने वोट को वेस्ट नहीं करना चाहते।

अपनी मंज़िल तक पहुंचते-पहुंचते मुझे ये तो समझ आ ही गया था कि प्रधानमंत्री मोदी या बीजेपी ने जो मास्टर स्ट्रोक खेला है, उससे चुनाव नतीजों पर कितना असर पड़ेगा ये तो आने वाला समय ही बताएगा लेकिन दिल्ली की महिला वोटरों का दिल और दिमाग बदलने की कवायाद धीरे-धीरे ही सही पर शुरु तो हो ही गई है।  
 

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
दिल्ली विधानसभा चुनाव 2015, नरेंद्र मोदी, अरविंद केजरीवाल, किरण बेदी, दिल्ली मेट्रो, Delhi Assembly Elections, Narendra Modi, Arvind Kejrival, Kiran Bedi, Delhi Metro
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com