
डॉ. राजेंद्र प्रसाद (Rajendra Prasad) नेहरू के मना करने के बावजूद सोमनाथ गए.
Quick Take
Summary is AI generated, newsroom reviewed.
डॉ. राजेंद्र प्रसाद की कांग्रेस संगठन में अच्छी पकड़ थी
साथ ही वे जमीन से जुड़े हुए नेता माने जाते थे
इसी की बदौलत वे देश के पहले राष्ट्रपति बने
यह भी पढ़ें : सरदार वल्लभभाई पटेल का वह कदम, और नेहरू ने कहा- मैं अपनी उपयोगिता खो चुका हूं
जब नेहरू ने डॉ. राजेंद्र प्रसाद को सोमनाथ जाने से रोका
पहले राजेंद्र प्रसाद (Rajendra Prasad) का नाम राष्ट्रपति पद के लिए आगे करने और इसके कुछ दिनों बाद ही धुर दक्षिणपंथी पुरुषोत्तम दास टंडन का नाम कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए आगे बढ़ाने के बाद नेहरू और पटेल में मतभेद गहरा गए. दोनों मौकों पर सरदार पटेल का पलड़ा भारी रहा. हालांकि अगस्त 1950 में कांग्रेस की अध्यक्षी का चुनाव हुआ और 4 महीनों के अंदर ही सरदार पटेल का निधन हो गया. अब कांग्रेस के अंदर और बाहर, दोनों जगह नेहरू को टक्कर देने वाला पटेल के कद का शायद ही कोई बचा था. हां...पटेल के दो 'खास', डॉ. राजेंद्र प्रसाद (Dr. Rajendra Prasad) और पुरुषोत्तम दास टंडन अब भी मैदान में थे और नेहरू से उनका मतभेद जारी रहा. साल भर के अंदर ही खासकर पंडित नेहरू और डॉ. प्रसाद (Rajendra Prasad) के बीच मतभेद सतह पर आ गए. इसके पीछे था सोमनाथ मंदिर. कभी अपनी संपदा और ऐश्वर्य के लिए ख़्यात सोमनाथ मंदिर में जब 1947 में सरदार पटेल (Vallabhbhai Patel) पहुंचे तो इसकी हालत देखकर उन्हें बहुत निराशा हुई. इसके बाद उन्होंने सोमनाथ के जीर्णोद्धार का निर्णय लिया और अपने सहयोगी केएम मुंशी को इसकी जिम्मेदारी सौंप दी. 1951 में जब मंदिर का पुननिर्माण पूरा हुआ तो खुद सरदार वल्लभभाई पटेल इसके उद्घाटन समारोह में शामिल होने के लिए मौजूद नहीं थे. राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद (Rajendra Prasad) को मंदिर के उद्घाटन करने का न्योता दिया गया और उन्होंने इसे स्वीकार भी कर लिया, लेकिन जवाहरलाल नेहरू को यह पसंद नहीं आया.
यह भी पढ़ें : Birthday Special: चीन से हार के बाद जवाहरलाल नेहरू ने क्या कहा था?
पंडित नेहरू का तर्क और राजेंद्र प्रसाद का जवाब
जवाहरलाल नेहरू मानते थे कि जनसेवकों को कभी भी आस्था या पूजा स्थलों से अपने आपको नहीं जोड़ना चाहिए. जबकि डॉ. राजेंद्र प्रसाद (Rajendra Prasad) की राय थी कि सभी धर्मों को बराबरी और आदर का दर्जा दिया जाना चाहिए. पंडित नेहरू (Jawaharlal Nehru) का तर्क था कि बंटवारे के बाद जिस तरह का माहौल बना था, उसमें सोमनाथ में विशाल मंदिर बनाने पर जोर देने का यह उचित समय नहीं था. विख्यात इतिहासकार रामचंद्र गुहा अपनी किताब 'इंडिया आफ्टर गांधी' में लिखते हैं कि नेहरू ने प्रसाद को सलाह दी ''वे सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन समारोह में न जाएं, इसके दुर्भाग्यवश कई मतलब निकाले जाएंगे''. डॉ. राजेंद्र प्रसाद (Rajendra Prasad) ने नेहरू की सलाह नहीं मानी और वे सोमनाथ गए. बकौल रामचंद्र गुहा, राजेंद्र प्रसाद ने सोमनाथ में कहा 'मैं एक हिंदू हूं, लेकिन सारे धर्मों का आदर करता हूं. कई मौकों पर चर्च, मस्जिद, दरगाह और गुरुद्वारा भी जाता रहता हूं'.
यह भी पढ़ें : इस राष्ट्रपति ने अनोखी परंपरा कायम की, जिसे अब तक तोड़ा नहीं जा सका
VIDEO: क्या हम सरदार पटेल की विचारों की ऊंचाई भी छू पाएंगे?
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं