मुंबई:
पिछले कुछ सालों से संगीत जगत की हस्तियां रायल्टी को लेकर काफी दौड़ भाग कर रही हैं। संगीतकार और गीतकार म्यूजिक कंपनियों से रायल्टी के रूप में अपना हक मांग रहे हैं। इनमें जावेद अख़्तर और सोनू निगम जैसी हस्तियां शामिल हैं। दूसरी तरफ म्यूजिक कंपनियों के अपने तर्क हैं। इन सबके बीच कई संस्थाएं हैं, जो कॉपीराइट की हिफाजत या संगीत को इस्तेमाल करने वालों को लाइसेंस देती हैं और वहां से पैसे इकट्ठे करती हैं। इनमें पीपीएल और आईपीआरएस का नाम शामिल है।
होटल, रेस्टोरेंट, शो या अन्य व्यावसायिक रूप में गानों के इस्तेमाल के लिए पीपीएल और आईपीआरएस की ओर से लाइसेंस दिया जाता है। देखा जा रहा है कि पीपीएल और आईपीआरएस का खुलेआम उल्लंघन हो रहा है। न जाने कितने लोग बिना लाइसेंस लिए ही संगीत का उपयोग कर रहे हैं। इससे यह संस्थाएं हताश हैं। इस मुद्दे को लेकर कई मामले अदालत में पहुंचे हैं। बिना लाइसेंस के संगीत का उपयोग करने वालों के मुताबिक संगीत के प्रचार-प्रसार के लिए पैसे देना जरूरी नहीं। पीपीएल और आईपीआरएस कॉपीराइट सोसायटी पहले थीं। इन्होंने कॉपीराइट कानून में हुए बदलाव के बाद नए सिरे से रजिस्ट्रेशन कराने के लिए आवेदन नहीं किया है, इसलिए अब उन्हें पैसा देने की जरूरत नहीं है।
दूसरी तरफ पीपीएल और आईपीआरएस के मुताबिक उन्होंने खुद को कॉपीराइट सोसायटी के रूप में रजिस्टर्ड नहीं कराया है, मगर अब प्राइवेट कंपनी के रूप में अपने कार्य को अंजाम दे रही हैं। पहले यह संस्थाएं ‘कापीराइट एक्ट’ के सेक्शन/धारा 33 के तहत काम कर रही थीं और अब सेक्शन/धारा 30 के तहत काम कर रही हैं। बहरहाल, इन संस्थाओं का कारपोरेट ढांचा भले ही बदला हो, मगर सच्चाई यही है कि पीपीएल और आईपीआरएस आज भी कुछ श्रेणी के संगीत की मालिक हैं।
हाल ही में आईपीआरएस द्वारा दायर एक याचिका पर चंडीगढ़ की अदालत ने आदेश दिया है कि कॉपीराइट एक्ट की धारा 30 के तहत आईपीआरएस संगीत व साहित्यिक कृतियों की मालिक है और इनके लाइसेंस जारी कर सकती है। अदालत ने आयोजकों को आदेश दिया कि सार्वजनिक स्थानों पर संगीत बजाने के लिए वह आईपीआरएस से लाइसेंस हासिल करें। इसी तरह पीपीएल की याचिका पर भी आदेश आया है कि धारा 30 के तहत संगीत बजाने के लिए पीपीएल लाइसेंस देगी।
हाल ही में गोल्डन ग्रेट्स ऑर्केस्ट्रा के मालिक कौशिक कोठारी के खिलाफ कॉपीराइट कानून का उल्लंघन करने के जुर्म में दिल्ली हाई कोर्ट ने अंतरिम आदेश पारित किया है, पर वह कानून को मानने को तैयार ही नहीं हैं। इन सब पचड़ों की वजह से आईपीआरएस का गलत प्रचार भी हो रहा है, जिसकी वजह से यह संस्थाएं परेशान हैं। मजेदार बात यह है कि कौशिक खुद भी एक वकील हैं।
कानून के उल्लंघन के दर्जनों मुकदमे देश की अलग-अलग अदालतों में पड़े हैं। हर किसी के अपने तर्क हैं और समाधान के लिए हर कोई अपनी-अपनी लड़ाई लड़ रहा है।
होटल, रेस्टोरेंट, शो या अन्य व्यावसायिक रूप में गानों के इस्तेमाल के लिए पीपीएल और आईपीआरएस की ओर से लाइसेंस दिया जाता है। देखा जा रहा है कि पीपीएल और आईपीआरएस का खुलेआम उल्लंघन हो रहा है। न जाने कितने लोग बिना लाइसेंस लिए ही संगीत का उपयोग कर रहे हैं। इससे यह संस्थाएं हताश हैं। इस मुद्दे को लेकर कई मामले अदालत में पहुंचे हैं। बिना लाइसेंस के संगीत का उपयोग करने वालों के मुताबिक संगीत के प्रचार-प्रसार के लिए पैसे देना जरूरी नहीं। पीपीएल और आईपीआरएस कॉपीराइट सोसायटी पहले थीं। इन्होंने कॉपीराइट कानून में हुए बदलाव के बाद नए सिरे से रजिस्ट्रेशन कराने के लिए आवेदन नहीं किया है, इसलिए अब उन्हें पैसा देने की जरूरत नहीं है।
दूसरी तरफ पीपीएल और आईपीआरएस के मुताबिक उन्होंने खुद को कॉपीराइट सोसायटी के रूप में रजिस्टर्ड नहीं कराया है, मगर अब प्राइवेट कंपनी के रूप में अपने कार्य को अंजाम दे रही हैं। पहले यह संस्थाएं ‘कापीराइट एक्ट’ के सेक्शन/धारा 33 के तहत काम कर रही थीं और अब सेक्शन/धारा 30 के तहत काम कर रही हैं। बहरहाल, इन संस्थाओं का कारपोरेट ढांचा भले ही बदला हो, मगर सच्चाई यही है कि पीपीएल और आईपीआरएस आज भी कुछ श्रेणी के संगीत की मालिक हैं।
हाल ही में आईपीआरएस द्वारा दायर एक याचिका पर चंडीगढ़ की अदालत ने आदेश दिया है कि कॉपीराइट एक्ट की धारा 30 के तहत आईपीआरएस संगीत व साहित्यिक कृतियों की मालिक है और इनके लाइसेंस जारी कर सकती है। अदालत ने आयोजकों को आदेश दिया कि सार्वजनिक स्थानों पर संगीत बजाने के लिए वह आईपीआरएस से लाइसेंस हासिल करें। इसी तरह पीपीएल की याचिका पर भी आदेश आया है कि धारा 30 के तहत संगीत बजाने के लिए पीपीएल लाइसेंस देगी।
हाल ही में गोल्डन ग्रेट्स ऑर्केस्ट्रा के मालिक कौशिक कोठारी के खिलाफ कॉपीराइट कानून का उल्लंघन करने के जुर्म में दिल्ली हाई कोर्ट ने अंतरिम आदेश पारित किया है, पर वह कानून को मानने को तैयार ही नहीं हैं। इन सब पचड़ों की वजह से आईपीआरएस का गलत प्रचार भी हो रहा है, जिसकी वजह से यह संस्थाएं परेशान हैं। मजेदार बात यह है कि कौशिक खुद भी एक वकील हैं।
कानून के उल्लंघन के दर्जनों मुकदमे देश की अलग-अलग अदालतों में पड़े हैं। हर किसी के अपने तर्क हैं और समाधान के लिए हर कोई अपनी-अपनी लड़ाई लड़ रहा है।
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