रायपुर:
छत्तीसगढ़ के प्रमुख लोकायुक्त ने टिप्पणी की है कि देश में कोई भी सरकारी योजना भ्रष्टाचार रहित नहीं है। विधानसभा में मुख्यमंत्री रमन सिंह द्वारा पेश छत्तीगसढ़ लोक आयोग के नवम वार्षिक प्रतिवेदन में राज्य के प्रमुख लोकायुक्त न्यायमूर्ति एलसी भादू ने टिप्पणी की है कि भारत में उद्योग, साधन संपन्नता, आर्थिक उन्नति में वृद्धि के साथ ही भ्रष्टाचार में भी बढ़ोतरी हुई है। भ्रष्टाचार के विरोध में लगातार कार्रवाई के बाद भी यह समस्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है।
भादू ने कहा है कि वर्ष 2011 में केंद्र स्तर पर एवं राज्य स्तर पर भ्रष्टाचार, अकर्मण्यता, पद दुरुपयोग आदि के असंख्य मामले सामने आए हैं। उदारहरण स्वरूप 2जी स्पेक्ट्रम, एशियाई खेलों के आयोजन में भ्रष्टाचार एवं विभिन्न प्रकार के खनन पट्टे जारी करने में, राजकीय भूमि आवंटन, जनहित में भारत सरकार और राज्य सरकार द्वारा जो योजनाएं जैसे मनरेगा, प्रधानमंत्री सड़क योजना तथा वन क्षेत्र की सभी योजनाओं में भ्रष्टाचार के मामले भी प्रकाश में आए हैं।
यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि इस समय कोई भी सरकारी योजना भ्रष्टाचार रहित नहीं है। उन्होंने कहा है कि भ्रष्टाचार रोकने के लिए राज्यों में लोकायुक्त का गठन किया गया है, लेकिन लोकायुक्त अधिनियमों में समुचित प्रभावशाली प्रावधान नहीं होने, लोकायुक्त संगठनों को वांछित सुविधाएं, अधोसंरचना और जांच करने वाली एजेंसियां उपलब्ध नहीं कराने के कारण जनता की आशा के अनुरूप लोकायुक्त संगठन भी प्रभावी रूप से कार्य करने में असमर्थ रहे हैं।
भादू ने अपनी टिप्पणी में कहा है कि जब भ्रष्टाचार ने विकराल रूप धारण कर लिया तो जनसेवक अन्ना हजारे लोकपाल के गठन के लिए आवाज उठाई और अपनी मांग के समर्थन में भूख हड़ताल पर बैठे तो अनायास ही भारत के कोने कोने से इसके समर्थन में विभिन्न प्रकार के प्रदर्शन उपवास इत्यादि का जन सैलाब उमड़ पड़ा। इसकी गंभीरता का आंकलन कर केंद्र सरकार द्वारा लोकपाल बिल का प्रारूप बनाने के लिए अधिसूचना जारी कर एक संयुक्त समिति का गठन किया गया।
भादू ने कहा है कि यह निर्विवाद है कि लोकायुक्त संस्था जिस उद्देश्य से गठित की गई थी उसकी पूर्ति जनता की आशा के अनुरूप करने में सक्षम नहीं रही है। लोकायुक्त अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार सक्षम प्राधिकारी संबंधित लोक सेवक के खिलाफ तीन माह में कार्रवाई कर अवगत कराने का प्रावधान किया गया है, लेकिन लोकायुक्त की अनुशंसा पर वष्रों तक समुचित कार्रवाई नहीं की जाती है, क्योंकि कार्रवाई उसी विभाग के अधिकारियों द्वारा की जाती है। इसलिए विभाग के अधिकारी लोक सेवक को दंडित करने के बजाय बचाने का प्रयास करते हैं।
प्रमुख लोकायुक्त ने कहा है कि वर्तमान लोकायुक्त अधिनियमों में अनुभव के आधार पर खामियों को देखते हुए ही नए लोकपाल अधिनियम का जो प्रारूप तैयार किया जा रहा है उसमें लोकपाल को यह अधिकार दिया जा रहा है कि लोकपाल द्वारा जांच करने के बाद लोकसेवक के खिलाफ भ्रष्टाचार स्थापित होने पर लोकपाल द्वारा ही दंड तथा सक्षम प्राधिकारी के लिए यह आवश्यक होगा कि लोकायुक्त द्वारा पारित आदेश का पालन करें एवं पालन नहीं करने पर सक्षम प्राधिकारी पर भी उसी प्रकार का दंड का प्रावधान किया जा रहा है।
इसलिए राज्य सरकार को भी लोकपाल विधेयक के प्रारूप में किए जा रहे प्रावधानों के अनुसार ही लोकायुक्त अधिनियम का भी प्रारूप तैयार कर अधिनियमित किया जाना चाहिए।
भादू ने कहा है कि वर्ष 2011 में केंद्र स्तर पर एवं राज्य स्तर पर भ्रष्टाचार, अकर्मण्यता, पद दुरुपयोग आदि के असंख्य मामले सामने आए हैं। उदारहरण स्वरूप 2जी स्पेक्ट्रम, एशियाई खेलों के आयोजन में भ्रष्टाचार एवं विभिन्न प्रकार के खनन पट्टे जारी करने में, राजकीय भूमि आवंटन, जनहित में भारत सरकार और राज्य सरकार द्वारा जो योजनाएं जैसे मनरेगा, प्रधानमंत्री सड़क योजना तथा वन क्षेत्र की सभी योजनाओं में भ्रष्टाचार के मामले भी प्रकाश में आए हैं।
यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि इस समय कोई भी सरकारी योजना भ्रष्टाचार रहित नहीं है। उन्होंने कहा है कि भ्रष्टाचार रोकने के लिए राज्यों में लोकायुक्त का गठन किया गया है, लेकिन लोकायुक्त अधिनियमों में समुचित प्रभावशाली प्रावधान नहीं होने, लोकायुक्त संगठनों को वांछित सुविधाएं, अधोसंरचना और जांच करने वाली एजेंसियां उपलब्ध नहीं कराने के कारण जनता की आशा के अनुरूप लोकायुक्त संगठन भी प्रभावी रूप से कार्य करने में असमर्थ रहे हैं।
भादू ने अपनी टिप्पणी में कहा है कि जब भ्रष्टाचार ने विकराल रूप धारण कर लिया तो जनसेवक अन्ना हजारे लोकपाल के गठन के लिए आवाज उठाई और अपनी मांग के समर्थन में भूख हड़ताल पर बैठे तो अनायास ही भारत के कोने कोने से इसके समर्थन में विभिन्न प्रकार के प्रदर्शन उपवास इत्यादि का जन सैलाब उमड़ पड़ा। इसकी गंभीरता का आंकलन कर केंद्र सरकार द्वारा लोकपाल बिल का प्रारूप बनाने के लिए अधिसूचना जारी कर एक संयुक्त समिति का गठन किया गया।
भादू ने कहा है कि यह निर्विवाद है कि लोकायुक्त संस्था जिस उद्देश्य से गठित की गई थी उसकी पूर्ति जनता की आशा के अनुरूप करने में सक्षम नहीं रही है। लोकायुक्त अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार सक्षम प्राधिकारी संबंधित लोक सेवक के खिलाफ तीन माह में कार्रवाई कर अवगत कराने का प्रावधान किया गया है, लेकिन लोकायुक्त की अनुशंसा पर वष्रों तक समुचित कार्रवाई नहीं की जाती है, क्योंकि कार्रवाई उसी विभाग के अधिकारियों द्वारा की जाती है। इसलिए विभाग के अधिकारी लोक सेवक को दंडित करने के बजाय बचाने का प्रयास करते हैं।
प्रमुख लोकायुक्त ने कहा है कि वर्तमान लोकायुक्त अधिनियमों में अनुभव के आधार पर खामियों को देखते हुए ही नए लोकपाल अधिनियम का जो प्रारूप तैयार किया जा रहा है उसमें लोकपाल को यह अधिकार दिया जा रहा है कि लोकपाल द्वारा जांच करने के बाद लोकसेवक के खिलाफ भ्रष्टाचार स्थापित होने पर लोकपाल द्वारा ही दंड तथा सक्षम प्राधिकारी के लिए यह आवश्यक होगा कि लोकायुक्त द्वारा पारित आदेश का पालन करें एवं पालन नहीं करने पर सक्षम प्राधिकारी पर भी उसी प्रकार का दंड का प्रावधान किया जा रहा है।
इसलिए राज्य सरकार को भी लोकपाल विधेयक के प्रारूप में किए जा रहे प्रावधानों के अनुसार ही लोकायुक्त अधिनियम का भी प्रारूप तैयार कर अधिनियमित किया जाना चाहिए।
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