15 मार्च 1950 को केंद्रीय मंत्रिमंडल के प्रस्ताव के ज़रिए बना योजना आयोग अब इतिहास का हिस्सा बन गया है। मोदी सरकार ने इसकी जगह नीति आयोग बना दिया है। हालांकि ये बताना ज़रूरी है कि यहां नीति का मतलब अंग्रेजी के पॉलिसी शब्द से नहीं है। बल्कि ये नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफ़ॉर्मिंग इंडिया का संक्षिप्तीकरण है। ये एक थिंक टैंक होगा।
ये राज्य और केंद्र सरकार के संबंधों की इबारत नए सिरे से लिखने की कोशिश है। प्रधानमंत्री बनने से पहले नरेंद्र मोदी 12 साल गुजरात के मुख्यमंत्री रहे। उन्हें इस बात से हमेशा शिकायत रही कि मुख्यमंत्रियों को हाथ फैलाते हुए योजना आयोग के सामने हर साल आना होता है। वो सहकारी संघवाद यानि राज्यों को साथ लेकर चलने वाले मॉडल की बात करते हैं। इसीलिए 15 अगस्त को लाल किले से भाषण में उन्होंने योजना आयोग को खत्म करने का ऐलान किया था।
तब दो दिन पहले ही केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में योजना आयोग को खत्म करने का फैसला हो गया था। इसकी जगह बनने वाली संस्था के गठन के लिए मोदी ने राज्यों से सलाह मशविरा शुरू किया।
दिसंबर के पहले हफ्ते में मुख्यमंत्रियों और उप-राज्यपालों की बैठक बुलाई गई। जिसमें कांग्रेस शासित और कुछ अन्य विपक्षी दलों के शासन वाले राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने इसका विरोध किया। लेकिन मोटे तौर पर सहमति बन गई।
अब मोदी सरकार ने नए साल की शुरुआत नीति आयोग के गठन के ऐलान के साथ की है। इसके लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल में प्रस्ताव पारित किया गया है। इसमें महात्मा गांधी, बाबा साहब अंबेडकर, दीन दयाल उपाध्याय और स्वामी विवेकानंद के उद्बोधनों का जिक्र किया गया है। पूरा फोकस इस बात पर है कि किस तरह विकास की प्रक्रिया में नीति आयोग एक बड़ी भूमिका निभाएगा।
नीति आयोग के अध्यक्ष प्रधानमंत्री होंगे। इसकी गवर्निंग कौंसिल में सभी राज्यों के मुख्यमंत्री और केंद्र शासित प्रदेशों के उपराज्यपाल होंगे। क्षेत्रीय परिषदों का भी प्रावधान है जिन्हें ज़रूरत पड़ने पर बनाया जाएगा। इसमें उस क्षेत्र के मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल शामिल होंगे। संस्था में एक उपाध्यक्ष और सीईओ होगा जिसकी नियुक्ति प्रधानमंत्री करेंगे। कुछ स्थाई सदस्य होंगे। जबकि दो अस्थाई सदस्य होंगे जिन्हें संस्थानों से रोटेशन आधार पर लिया जाएगा। चार केंद्रीय मंत्री पदेन सदस्य होंगे। अलग-अलग विषयों में माहिर लोग इस संस्था के आमंत्रित सदस्य बनाए जाएंगे।
मोदी सरकार का मानना है कि पिछले 65 वर्षों में आर्थिक परिस्थितियां तेज़ी से बदली हैं। भारत अब उभरती अर्थ-व्यवस्था नहीं बल्कि वैश्विक अर्थ-व्यवस्था में एक बड़ी भूमिका निभाने की तैयारी में है। ऐसे में पचास के दशक में सोवियत संघ के ढांचे पर बनी ऐसी संस्थाओं की कोई उपयोगिता नहीं है, जो पश्चिमी सोच के आधार पर भारत में चलाई जा रही हों। बदली परिस्थितियों में भारत की प्राथमिकताओं के हिसाब से संस्था का गठन जरूरी हो गया था जिसकी भूमिका सलाहकार के रूप में अधिक हो। इसीलिए नीति आयोग का गठन किया गया है।
सरकार का कहना है कि नीति आयोग अंतरमंत्रालय और केंद्र-राज्य सहयोग से नीतियों के धीमे क्रियान्वयन को खत्म करेगा। ये राष्ट्रीय विकास की प्राथमिकताओं की साझा सोच बनाएगा और ये मान कर चलेगा कि मजबूत राज्यों से मजबूत देश बनेगा। ये आयोग गांव स्तर पर विश्वसनीय योजनाएं बना कर उन्हें सरकार में ऊंचे स्तर तक पहुंचाएगा। ये समाज के उन तबकों पर खासतौर से ध्यान देगा जिनके बारे में ये आशंका है कि आर्थिक तरक्की का उन्हें भरपूर फायदा नहीं मिल रहा है।
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