नई दिल्ली:
2005 से दीपिका शाह एक कमज़ोर लीवर के साथ जी रही थीं लेकिन फिर 2014 में उनके डॉक्टर ने बताया कि उन्हें जल्द से जल्द लीवर प्रत्यारोपण करवाना होगा. डॉक्टर ने बताया कि शाह के परिवार के पास इस काम को करने के दो तरीके हैं - या तो परिवार में से ही किसी के लीवर का प्रत्यारोपण कर दिया जाए या फिर दीपिका का नाम Cadaver Liver Transplant Recipient लिस्ट में दर्ज करवा दिया जाए.
डॉक्टरों ने परिवार को दोनों ही विकल्पों के बारे में विस्तार से समझाया. एक तरफ तो लंबी लिस्ट से जूझना होगा क्योंकि इसकी कोई गारंटी नहीं होती कि कोई भी अंग कितने दिनों के भीतर मिल जाएगा. दूसरी तरफ अपने ही परिवार में किसी से अंगदान करवाने के कई खतरे और डर होते हैं.
दीपिका के पति रमेश शाह बताते हैं 'मैं डरा हुआ था, बहुत ज्यादा. मैं फैसला नहीं ले पा रहा था. मैं परिवार के अंदर ही ट्रांसप्लांट नहीं करवाना चाहता था. इससे मुझे दोनों ही तरफ से नुकसान होता.' शाह को यह फैसला लेने में एक साल लग गया कि वह ट्रांसप्लांट करवाना चाहते हैं या नहीं.
शाह बताते हैं 'मेरी पत्नी एक सामान्य जीवन जी रही है. मुझे लगा दवाइयों ने उस पर अपना काम कर दिया है. लेकिन मन ही मन मैं जानता था कि मुझे अंग प्रत्यर्पण का बड़ा फैसला जल्द ही लेना पड़ेगा. लेकिन उस वक्त मैं तैयार नहीं था.' लेकिन जब परिवार ने देखा कि दीपिका शाह की हालत खराब होती जा रही है तो उन्होंने फैसला लेने का मन बना लिया. आखिरकार 2015 में शाह और उनके परिवार ने ट्रांसप्लांट रिसीपियंट लिस्ट में दीपिका का नाम दर्ज करवा दिया.
दीपिका के पति बताते हैं 'पहली बार मैंने अपनी पत्नी की आंखों में उम्मीद देखी जब उसने उस लिस्ट में अपना हस्ताक्षर किया.' 2015 से दीपिका शाह का नाम काफी वक्त तक वेटिंग लिस्ट में रहा. अक्टूबर 2016 में आखिरकार उनका सफल लीवर ट्रांसप्लांट हुआ. वह अभी भी अस्पताल की देखरेख में ही हैं. उम्मीद है कि वह अगले हफ्ते तक घर लौट आएंगी.
डॉक्टरों ने परिवार को दोनों ही विकल्पों के बारे में विस्तार से समझाया. एक तरफ तो लंबी लिस्ट से जूझना होगा क्योंकि इसकी कोई गारंटी नहीं होती कि कोई भी अंग कितने दिनों के भीतर मिल जाएगा. दूसरी तरफ अपने ही परिवार में किसी से अंगदान करवाने के कई खतरे और डर होते हैं.
दीपिका के पति रमेश शाह बताते हैं 'मैं डरा हुआ था, बहुत ज्यादा. मैं फैसला नहीं ले पा रहा था. मैं परिवार के अंदर ही ट्रांसप्लांट नहीं करवाना चाहता था. इससे मुझे दोनों ही तरफ से नुकसान होता.' शाह को यह फैसला लेने में एक साल लग गया कि वह ट्रांसप्लांट करवाना चाहते हैं या नहीं.
शाह बताते हैं 'मेरी पत्नी एक सामान्य जीवन जी रही है. मुझे लगा दवाइयों ने उस पर अपना काम कर दिया है. लेकिन मन ही मन मैं जानता था कि मुझे अंग प्रत्यर्पण का बड़ा फैसला जल्द ही लेना पड़ेगा. लेकिन उस वक्त मैं तैयार नहीं था.' लेकिन जब परिवार ने देखा कि दीपिका शाह की हालत खराब होती जा रही है तो उन्होंने फैसला लेने का मन बना लिया. आखिरकार 2015 में शाह और उनके परिवार ने ट्रांसप्लांट रिसीपियंट लिस्ट में दीपिका का नाम दर्ज करवा दिया.
दीपिका के पति बताते हैं 'पहली बार मैंने अपनी पत्नी की आंखों में उम्मीद देखी जब उसने उस लिस्ट में अपना हस्ताक्षर किया.' 2015 से दीपिका शाह का नाम काफी वक्त तक वेटिंग लिस्ट में रहा. अक्टूबर 2016 में आखिरकार उनका सफल लीवर ट्रांसप्लांट हुआ. वह अभी भी अस्पताल की देखरेख में ही हैं. उम्मीद है कि वह अगले हफ्ते तक घर लौट आएंगी.
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