विज्ञापन

मायावती की ये तीसरी 'कसम' टूटेगी या बच जाएगी? जानिए पिछली कसमें क्या थीं

मायावती ने फैसला किया है कि वो कभी भी क्षेत्रीय दलों से कोई गठबंधन नहीं करेंगी. उनका कहना है कि उनके वोट तो ट्रांसफ़र हो जाते हैं, लेकिन सहयोगी पार्टी का वोट उन्हें नहीं मिलता.

मायावती की ये तीसरी 'कसम' टूटेगी या बच जाएगी? जानिए पिछली कसमें क्या थीं
लखनऊ:

आज से करीब सोलह साल पहले बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने एक कसम खायी थी. तब वो उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री थीं. बीएसपी की बड़ी रैली के दौरान मंच से उन्होंने एक बड़ा ऐलान किया था. 'बहनजी' ने कहा था कि उनका उत्तराधिकारी उनके परिवार का नहीं होगा. बीएसपी के समर्थक मायावती को सम्मान से 'बहनजी' कहते हैं. तब मायावती ने कहा था कि जो भी उनके बाद पार्टी संभालेगा वो उम्र में उनसे पंद्रह-बीस साल छोटा होगा.

बीएसपी चीफ मायावती ने तब ये भी बताया था कि उनका राजनैतिक वारिस उनकी ही जाति का होगा. उन्होंने मंच से ये कहकर चौंका दिया था कि उन्होंने उसका नाम लिखकर एक लिफ़ाफे में रख दिया है. ये बात साल 2008 की है. तब देश भर से बीएसपी के नेता और कार्यकर्ता लखनऊ के रमा बाई मैदान में जुटे थे.

हालांकि मायावती ने अपनी ये कसम पिछले साल तोड़ दी थी. उन्होंने अपने छोटे भाई आनंद के बेटे आकाश आनंद को पार्टी का नेशनल कॉर्डिनेटर बनाया. तब मायावती ने उन्हें अपना राजनैतिक उत्तराधिकारी भी घोषित कर दिया था. इस तरह से मायावती ने पंद्रह साल पहले जो कहा था, उससे वो पलट गईं.

Latest and Breaking News on NDTV

परिवारवाद का विरोध करने वाली मायावती ने आख़िरकार अपने परिवार पर ही भरोसा किया. इसी साल लोकसभा चुनाव में बीएसपी का खाता तक नहीं खुला. चुनाव प्रचार के बीच में ही उन्होंने आकाश आनंद को इमेच्योर बता दिया, फिर उन्होंने कहा कि आकाश उनके राजनैतिक वारिस बनने के काबिल नहीं है, लेकिन फिर जून महीने में उन्होंने फिर से आकाश आनंद को सारी ज़िम्मेदारी दे दी. अब आकाश आनंद ही मायावती के आंख और कान बने हुए हैं.

मायावती की पहली कसम थी मुलायम सिंह यादव से कभी भी हाथ नहीं मिलाने की. गेस्ट हाउस कांड विवाद के बाद ये फ़ैसला हुआ था. ये तब हुआ था जब बीएसपी संस्थापक काशीराम ने मुलायम सिंह की सरकार से समर्थन वापस ले लिया था और मुलायम की सरकार गिर गई थी. फिर मायावती मुख्यमंत्री बनीं.

गेस्ट हाउस कांड के बाद मुलायम और मायावती एक दूसरे के कट्टर विरोधी बन गए. मायावती ने तब क़सम खाई थी कि वे कभी समाजवादी पार्टी से कोई संबंध नहीं रखेंगी. ये बात 1995 की है. ठीक 24 साल बाद मायावती ने बीएसपी समर्थकों से किया ये वादा भी तोड़ दिया. अखिलेश यादव से उन्होंने लोकसभा चुनाव के लिए 2019 में गठबंधन किया. तब बीएसपी को 10 और समाजवादी पार्टी को 5 सीटें मिली थीं.

Latest and Breaking News on NDTV
'बहनजी' ने तरह-तरह के प्रयोग कर लिए, या फिर यूं कहें कि हर दांव आज़मा लिया, लेकिन सब फेल रहा. हरियाणा के चुनाव में बीएसपी अपना खाता तक नहीं खोल पाई, जबकि मायावती ने इंडियन नेशनल लोकदल से गठबंधन भी किया था. बीएसपी ने पंजाब चुनाव में शिरोमणि अकाली दल से समझौता किया था. वहां भी पार्टी का प्रदर्शन ख़राब रहा.

अब मायावती ने फ़ैसला किया है कि वो कभी भी क्षेत्रीय दलों से कोई गठबंधन नहीं करेंगी. उनका कहना है कि उनके वोट तो ट्रांसफ़र हो जाते हैं, लेकिन सहयोगी पार्टी का वोट उन्हें नहीं मिलता. पता नहीं मायावती अब अपनी इस तीसरी कसम पर कब तक टिकी रहती हैं.

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com