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This Article is From Apr 01, 2016

महाराष्ट्र : सूखे से जूझते मराठवाड़ा में अब पानी के लिए टैंकर ही इकलौता जरिया

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महाराष्ट्र : सूखे से जूझते मराठवाड़ा में अब पानी के लिए टैंकर ही इकलौता जरिया
प्रतीकात्मक फोटो
नई दिल्ली: मराठवाड़ा के बीड़ जिले में पिछले चार साल से बारिश न के बराबर हुई है। पानी का संकट इतना गहरा चुका है कि सैकड़ों किसान अब जानवरों के लिए तैयार विशेष कैंप में रहने को मजबूर हो गए हैं।

पानी हासिल करने के लिए होती है होड़
मराठवाड़ा के बीड़ जिले के खुंटेफल गांव में पानी का टैंकर जैसे ही पहुंचता है, गांव के लोगों में पानी भरने की होड़ लग जाती है। यह कहानी मराठवाड़ा इलाके के हजारों गांवों में हर रोज दोहराई जा रही है। पानी के छोटे-बड़े बांध और तालाब सूखते जा रहे हैं और टैंकर ही पानी का इकलौता जरिया बन गए हैं।

तीन वर्षों से अल्प वर्षा के कारण गहराया संकट
प्रशासन दावा कर रहा है कि हालात काबू में करने की पूरी कोशिश की जा रही है। बीड़ के जिलाधिकारी नवलकिशोर राम कहते हैं, "जिले में औसत बारिश का स्तर 660 मिलीमीटर रहा है। तीन वर्षों से अच्छी बारिश नहीं हुई है। यही कारण है कि इस इलाके में पानी का संकट बना हुआ है।"

प्रमुख जलाशयों में पानी समाप्त
सेन्ट्रल वाटर कमीशन के मुताबिक मराठवाड़ा इलाके के तीन सबसे बड़े जलाशयों में पानी का स्तर खतरे से काफी नीचे पहुंच चुका है। 31 मार्च को मराठवाड़ा इलाके के जायकवाड़ी बांध में स्टोरेज लेवेल डैम की लाइव स्टोरेज कैपेसिटी के शून्य फीसदी तक गिर गया। यानी यह जलाशय अब किसी काम का नहीं रहा। दूसरे जलाशयों की हालत भी काफी खराब हो चुकी है। येलडारी डैम में स्टोरेज लेवेल डैम की लाइव स्टोरेज कैपेसिटी का 4 फीसदी और इसापुर डैम में स्टोरेज लेवेल डैम की लाइव स्टोरेज कैपेसिटी का सिर्फ 14 फीसदी रह गया है।

उधर ग्रामीण विकास मंत्री बीरेन्द्र सिंह ने कहा है कि महाराष्ट्र के सूखा-प्रभावित इलाकों में मनरेगा के तहत अब सरकार ने 100 दिन के बजाय 150 दिन का रोजगार देने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है।

दक्षिण-पश्चिमी मॉनसून अब भी दो महीने दूर है। जाहिर है मराठवाड़ा में पानी का संकट आने वाले दिनों में और गहराता जाएगा।

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