22 जुलाई को लापता हुआ था वायुसेना का विमान (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
भारतीय समुद्र में लापता विमान की खोज के लिए अब तक के सबसे गहन अभियान में अब तक मिली नाकामी के बावजूद अब आशा जगी है कि 22 जुलाई को लापता हुए वायुसेना के विमान का किसी भी तरह का मलबा समुद्र में तैरता मिल सकेगा. हालांकि अभियान की निगरानी कर रहे नौसेना के वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि अभियान एक नए चरण में पहुंच गया है जिसके तहत अब समुद्र के तल में विमान के अवशेषों को ढूंढने की कोशिश की जा रही है.
वायुसेना के परिवहन विमान An-32 पर 29 लोग सवार थे, जब इसने खराब मौसम के बावजूद चेन्नई से पोर्ट ब्लेयर के लिए उड़ान भरी थी और थोड़ी ही देर बाद आपदा का कोई सिग्नल दिए बिना ही गायब हो गया.
पिछले करीब 3 हफ्तों में विमानों ने 1000 घंटे से ज्यादा की उड़ान भरी है. एक समय तो लापता विमान की तलाश में 28 जहाज और एक पनडुब्बी को भी लगाया गया था. इस दौरान बंगाल की खाड़ी के जिस बड़े इलाके में तलाशी अभियान चलाया जा रहा है, वहां से 24 इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसमिशनों का पता लगाया गया लेकिन इनमें से कोई भी लापता विमान के इमरजेंसी बीकन से मिलने वाला सिग्नल नहीं था.
उच्च तकनीक से लैस दो जहाज, नेशनल इंस्टीट्यूट और ओशन टेक्नोलॉजी का सागर निधि और जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया का समुद्र रत्नाकर अब इस खोज अभियान में मुख्य भूमिका निभा रहे हैं. दोनों ही जहाज मल्टी बीम इको साउंडर्स से लैस हैं जो समुद्र की तलहटी पर मौजूद दो मीटर तक के आकार की किसी भी वस्तु का पता लगा सकते हैं. इन दोनों जहाजों में लगे सोनार उपकरण इस तरह डिजाइन किए गए हैं कि समुद्र की सतह से 150 मीटर की गहराई तक की चीजों का पता लगा सकते हैं. अगर किसी चीज का पता चलता है तो जहाज पर तैनात रिमोट कंट्रोल से चलने वाले रोवर समुद्र की सतह पर (जिस इलाके में विमान लापता हुआ है वहां समुद्र की औसत गहराई 3500 मीटर है) जाकर जहाज के मलबे के टुकड़ों को ऊपर ला सकते हैं. जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के जहाज समुद्र रत्नाकर ने 4 दिन पहले ही अभियान शुरू किया है
लापता विमान के कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर को ढूंढना इस अभियान की प्राथमिकता होगी ताकि जांचकर्ता इस बात का पता लगा सकें कि हादसे के ठीक पहले आखिर कॉकपिट में चल क्या रहा था.
वायुसेना के परिवहन विमान An-32 पर 29 लोग सवार थे, जब इसने खराब मौसम के बावजूद चेन्नई से पोर्ट ब्लेयर के लिए उड़ान भरी थी और थोड़ी ही देर बाद आपदा का कोई सिग्नल दिए बिना ही गायब हो गया.
पिछले करीब 3 हफ्तों में विमानों ने 1000 घंटे से ज्यादा की उड़ान भरी है. एक समय तो लापता विमान की तलाश में 28 जहाज और एक पनडुब्बी को भी लगाया गया था. इस दौरान बंगाल की खाड़ी के जिस बड़े इलाके में तलाशी अभियान चलाया जा रहा है, वहां से 24 इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसमिशनों का पता लगाया गया लेकिन इनमें से कोई भी लापता विमान के इमरजेंसी बीकन से मिलने वाला सिग्नल नहीं था.
नेशनल इंस्टीट्यूट और ओशन टेक्नोलॉजी का जहाज सागर निधि (फाइल फोटो)
उच्च तकनीक से लैस दो जहाज, नेशनल इंस्टीट्यूट और ओशन टेक्नोलॉजी का सागर निधि और जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया का समुद्र रत्नाकर अब इस खोज अभियान में मुख्य भूमिका निभा रहे हैं. दोनों ही जहाज मल्टी बीम इको साउंडर्स से लैस हैं जो समुद्र की तलहटी पर मौजूद दो मीटर तक के आकार की किसी भी वस्तु का पता लगा सकते हैं. इन दोनों जहाजों में लगे सोनार उपकरण इस तरह डिजाइन किए गए हैं कि समुद्र की सतह से 150 मीटर की गहराई तक की चीजों का पता लगा सकते हैं. अगर किसी चीज का पता चलता है तो जहाज पर तैनात रिमोट कंट्रोल से चलने वाले रोवर समुद्र की सतह पर (जिस इलाके में विमान लापता हुआ है वहां समुद्र की औसत गहराई 3500 मीटर है) जाकर जहाज के मलबे के टुकड़ों को ऊपर ला सकते हैं.
लापता विमान के कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर को ढूंढना इस अभियान की प्राथमिकता होगी ताकि जांचकर्ता इस बात का पता लगा सकें कि हादसे के ठीक पहले आखिर कॉकपिट में चल क्या रहा था.
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