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This Article is From Jan 09, 2024

Analysis : INDIA गठबंधन में सीट शेयरिंग की डगर कितनी कठिन? 25 साल के आंकड़ों से समझिए

इंडिया गठबंधन के लिए सीट बंटवारा महाराष्ट्र, बिहार, पंजाब, दिल्ली और बंगाल में कठिन माना जा रहा है. इन राज्यों में कई दल गठबंधन में हैं. साथ ही कुछ ऐसे दल भी है जो पहली बार गठबंधन के तहत चुनाव में उतर रहे हैं.

Analysis : INDIA गठबंधन में सीट शेयरिंग की डगर कितनी कठिन? 25 साल के आंकड़ों से समझिए
नई दिल्ली:

लोकसभा चुनाव 2024 (Lok sabha election 2024) को लेकर पक्ष और विपक्ष में सीट बंटवारे को लेकर माथापच्ची जारी है. भारतीय जनता पार्टी को सत्ता से हटाने के लिए 28 दलों ने मिलकर INDIA गठबंधन का गठन किया है. कई दौर की बातचीत और बैठकों के बाद लगभग तमाम विपक्षी दल एक मंच पर तो आ गए हैं लेकिन कई राज्यों में उनके लिए सीट बंटवारा बेहद कठिन होने जा रहा है. मजबूत गठबंधन के निर्माण के बाद सभी घटक दल गठबंधन के तहत अधिक से अधिक सीट हासिल करना चाहते हैं. गौरतलब है कि कई ऐसे दल एक मंच पर साथ आए हैं जिनके बीच पहले कभी गठबंधन नहीं हुए थे. साथ ही AAP जैसे कुछ ऐसे भी दल हैं जिन्होंने कभी भी गठबंधन के तहत चुनाव ही नहीं लड़ा है. 

जानकारों ने इंडिया गठबंधन को लेकर आशंका जतायी है कि इन दलों के बीच सीट बंटवारे को लेकर बातचीत आसान नहीं होगी. हम आपको पिछले 25 साल में हुए 5 लोकसभा चुनावों के आंकड़ों के आधार पर बताने जा रहे हैं कि पांच प्रमुख राज्य महाराष्ट्र, बिहार, बंगाल,  दिल्ली और पंजाब में वोटिंग का क्या ट्रेंड रहा है. इस गठबंधन में कौन से दल किस राज्य में मजबूत दिख रहे हैं.

महाराष्ट्र में कांग्रेस, एनसीपी के ग्राफ में लगातार हुई है गिरावट

महाराष्ट्र में लोकसभा की 48 सीटें हैं.  अगर पिछले 5 चुनावों की बात की जाए तो कांग्रेस पार्टी के प्रदर्शन में गिरावट देखने को मिली है. 1999 के चुनाव में कांग्रेस को जहां 10 सीटों पर जीत मिली वहीं 2004 में 13 ,2009 में 17 सीटों पर जीत मिली लेकिन 2014 और 2019 में कांग्रेस को महज 2 और 1 सीटों से संतोष करना पड़ा. वही हालात एनसीपी के भी देखने को मिले हैं. एनसीपी के सीटों में भी साल 2009 के चुनाव के बाद से भारी गिरावट हुई है. शिवसेना को 2009 के बाद से अच्छी सफलता मिली है. लेकिन इन दोनों ही चुनावों में शिवसेना बीजेपी गठबंधन का हिस्सा रहा था. तीनों ही दलों ने मिलकर अब तक किसी भी विधानसभा या लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ा है. हालांकि एनसीपी और शिवसेना में टूट के कारण राजनीतिक हालात में काफी परिवर्तन देखने को मिल सकते हैं.

तमाम डेटा के आधार पर वरिष्ठ पत्रकार मयंक कुमार मिश्रा का मानना है कि वोट शेयर और विधानसभा के प्रदर्शनों को भी अगर आधार बनाया जाए तो तीनों ही दलों में शिवसेना का पलड़ा भारी जान पड़ता है.
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बिहार में सीट बंटवारे का कैसे होगा समाधान? 

बिहार में अगर पिछले 5 लोकसभा चुनाव के रिकॉर्ड को देखा जाए तो जदयू के आंकड़ों में उतार चढ़ाव देखने को मिले हैं. 1999, 2009 और 2019 में पार्टी ने शानदार प्रदर्शन किया था वहीं 2004 और 2014 में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था. राजद का प्रदर्शन 2004 के अलावा सभी चुनावों में अच्छा नहीं रहा है. वही हालात कांग्रेस के भी रहे हैं. हालांकि विधानसभा चुनावों के आंकड़ों और वोट शेयर को अगर देखा जाए तो राजद सबसे बड़ी दल के तौर पर देखी जा सकती है. हालांकि राजद, जदयू और कांग्रेस के एक मंच पर आने के कारण काफी बदलाव हो सकते हैं. 

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 पंजाब में कांग्रेस का रहा है दबदबा, लेकिन क्या AAP मानेगी? 

पंजाब में राजनीतिक हालात पिछले 2 चुनावों में काफी बदल गए हैं. 1999 से लेकर 2009 तक जहां कांग्रेस का मुख्य मुकाबला अकाली दल के साथ होता रहा था और कांग्रेस को अच्छी सफलता भी मिलती थी लेकिन 2014 के चुनाव में पहली बार हिस्सा लेते हुए आम आदमी पार्टी ने 4 सीटों पर जीत दर्ज कर ली. हालांकि 2019 के चुनाव में आप को महज एक सीट मिली और कांग्रेस ने फिर वापसी करते हुए 8 सीटों पर कब्जा कर लिया. राज्य में लोकसभा की 13 सीटें हैं. हालांकि आंकड़ों के आधार पर माना जा रहा है कि 6 सीटों पर कांग्रेस की मजबूत पकड़ रही है.

पंजाब की राजनीतिक आंकड़ों के आधार पर मंयक मिश्रा का कहना है कि हालांकि पंजाब में अभी आप की सरकार है इस वजह से संभव है कि कांग्रेस और AAP में 7 और 6 सीटों पर सहमति बन जाए.  
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दिल्ली का क्या है समीकरण? 

2004 और 2009 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने शानदार प्रदर्शन किया था. पार्टी को 6 और 7 सीटों पर जीत मिली थी. हालांकि 1999, 2014 और 2019 के चुनावों में कांग्रेस को एक भी सीटों पर जीत नहीं मिली थी. 2014 में आम आदमी पार्टी के एंट्री के बाद आप को भी दिल्ली में एक भी सीट पर जीत नहीं मिली. हालांकि राजनीति के जानकारों का मानना है कि आम आदमी पार्टी और कांग्रेस में यहां 4 और 3 के आधार पर सीटों का बंटवारा हो सकता है. हालांकि विधानसभा के पिछले 2 चुनावों में कांग्रेस के मतों में भारी गिरावट देखने को मिली है.

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बंगाल में ममता और कांग्रेस में बनेगी बात? 

बंगाल में पिछले 5 चुनावों में से अतिम तीन में टीएमसी ने शानदार प्रदर्शन किया है. 2004 में हार के बाद से टीएमसी ने 2009 और 2014 में जहां 19 और 34 सीटों पर जीत दर्ज की वहीं 2019 में भी उसे 22 सीटें मिले. टीएमसी का गठन कांग्रेस से अलग होकर ही हुआ था. कांग्रेस के आंकड़े हर चुनाव में अधिकतम 6 और कम से कम 2 पर रहे हैं. बंगाल में कांग्रेस पिछले कुछ समय से वामदलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ती रही है. इस बार कांग्रेस की मांग 5 सीटों की है लेकिन डेटा के आधार पर कांग्रेस को अधिकतम 4 सीटों के मिलने का अनुमान लगाया जा सकता है.  वोट परसेंट और विधानसभा के आंकड़ों के आधार पर यह माना जा सकता है कि बंगाल में टीएमसी कांग्रेस की तुलना में बेहद मजबूत है. 

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