प्रतीकात्मक चित्र
नई दिल्ली:
राजधानी दिल्ली के AIIMS हॉस्पिटल में अपनी तरह का एक अनोखे मामले सामने आया है। एम्स में डॉक्टरों ने एक 10 साल की बच्ची को 26 साल के युवा का हार्ट ट्रांसप्लांट किया है। यह बच्ची 'एंड स्टेज हार्ट फेलियर' से पीड़ित थी। अब बच्ची की हालत में तेजी से सुधार हो रहा है।
भारत में एम्स ने देश का पहला हार्ट ट्रांसप्लांट किया था। पिछले 20 सालों में अब तक करीब 35 ऐसे ट्रांसप्लांट हो चुके हैं, लेकिन, बच्ची में दिल ट्रांसप्लांट करने का यह पहला मामला है।
टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी खबर के मुताबिक, 10 साल की यह बच्ची कोलकाता से है और पिछले साल दिसंबर में इसे कंप्लीट हार्ट फेलियर की शिकायत के साथ ऐडमिट किया गया था। उसके दिल की मसल्स कमजोर पड़ चुकी थीं और वह पीलिया से भी पीड़ित थी। तमाम दवाओं के बावजूद हालात में सुधार नहीं हो रहा था और उसके बचने की कोई उम्मीद लगती नहीं थी।
कार्डियोलॉजिस्ट का कहना है कि वयस्क का दिल 53एमएम (एंड डायस्टोलिक डायमेंशन) का था, जोकि किसी बच्चे के दिल का करीब करीब डबल साइज है। लेकिन फिर भी सर्जन्स ने बच्ची की छाती में इसे फिट कर दिया। बच्ची का बीमार दिल सूज चुका था और लगभग इतनी ही जगह घेर रहा था। डोनर और बच्ची की कैविटी मिलाने के बाद ऑपरेशन करने वाले डॉक्टर ने बच्ची का दिल छाती से रिमूव कर दिया।
डॉक्टरों का कहना है कि पहले तो बच्ची को ट्रांसप्लांट वाली लिस्ट में रखा ही नहीं गया था क्योंकि वह बहुत ज्यादा बीमार थी और वह ट्रांसप्लांट का कठिन प्रोसेस झेल भी पाएगी या नहीं, इसे लेकर तमाम तरह के शक शुबहा थे। इसके अलावा एक बच्चे के दिल में किसी मृतक डोनर का दिल लगाना बकौल डॉक्टर्स, एकदम दुर्लभ बात थी। इन सबके बावजूद बच्ची को इस ट्रांसप्लांट के लिए इसलिए चुना गया, क्योंकि इस मृतक डोनर के दिल के लिए कोई मैचिंग रिसीपेंट मिल ही नहीं रहा था।
डॉक्टरों का कहना है कि न सिर्फ हार्ट के साइज का इश्यू इस पूरे ट्रांसप्लांट के आड़े आ सकता था बल्कि बच्ची का पीलियाग्रसित होना भी एक बड़ी बाधा था। डॉक्टरों को डर था कि कहीं ऐसा न हो कि बच्ची ट्रांसप्लांट के बाद दी जाने वाली दवाएं न झेल पाए और ट्रांसप्लांट पूरी तरह से कामयाब न हो पाए..। ऐसे में डॉक्टरों ने दवाओं की डोज शुरू में काफी कम रखी।
भारत में एम्स ने देश का पहला हार्ट ट्रांसप्लांट किया था। पिछले 20 सालों में अब तक करीब 35 ऐसे ट्रांसप्लांट हो चुके हैं, लेकिन, बच्ची में दिल ट्रांसप्लांट करने का यह पहला मामला है।
टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी खबर के मुताबिक, 10 साल की यह बच्ची कोलकाता से है और पिछले साल दिसंबर में इसे कंप्लीट हार्ट फेलियर की शिकायत के साथ ऐडमिट किया गया था। उसके दिल की मसल्स कमजोर पड़ चुकी थीं और वह पीलिया से भी पीड़ित थी। तमाम दवाओं के बावजूद हालात में सुधार नहीं हो रहा था और उसके बचने की कोई उम्मीद लगती नहीं थी।
कार्डियोलॉजिस्ट का कहना है कि वयस्क का दिल 53एमएम (एंड डायस्टोलिक डायमेंशन) का था, जोकि किसी बच्चे के दिल का करीब करीब डबल साइज है। लेकिन फिर भी सर्जन्स ने बच्ची की छाती में इसे फिट कर दिया। बच्ची का बीमार दिल सूज चुका था और लगभग इतनी ही जगह घेर रहा था। डोनर और बच्ची की कैविटी मिलाने के बाद ऑपरेशन करने वाले डॉक्टर ने बच्ची का दिल छाती से रिमूव कर दिया।
डॉक्टरों का कहना है कि पहले तो बच्ची को ट्रांसप्लांट वाली लिस्ट में रखा ही नहीं गया था क्योंकि वह बहुत ज्यादा बीमार थी और वह ट्रांसप्लांट का कठिन प्रोसेस झेल भी पाएगी या नहीं, इसे लेकर तमाम तरह के शक शुबहा थे। इसके अलावा एक बच्चे के दिल में किसी मृतक डोनर का दिल लगाना बकौल डॉक्टर्स, एकदम दुर्लभ बात थी। इन सबके बावजूद बच्ची को इस ट्रांसप्लांट के लिए इसलिए चुना गया, क्योंकि इस मृतक डोनर के दिल के लिए कोई मैचिंग रिसीपेंट मिल ही नहीं रहा था।
डॉक्टरों का कहना है कि न सिर्फ हार्ट के साइज का इश्यू इस पूरे ट्रांसप्लांट के आड़े आ सकता था बल्कि बच्ची का पीलियाग्रसित होना भी एक बड़ी बाधा था। डॉक्टरों को डर था कि कहीं ऐसा न हो कि बच्ची ट्रांसप्लांट के बाद दी जाने वाली दवाएं न झेल पाए और ट्रांसप्लांट पूरी तरह से कामयाब न हो पाए..। ऐसे में डॉक्टरों ने दवाओं की डोज शुरू में काफी कम रखी।
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