नई दिल्ली:
नक्सलियों ने एक चिट्ठी लिखकर निर्दोषों, जैसे काफिले में शामिल ड्राइवर, कंडक्टर, कांग्रेस के छोटे नेताओं की हत्या के लिए माफी मांगी है।
यह चिट्ठी बीबीसी को भेजी गई है। चिट्ठी के साथ-साथ रिकॉर्ड कराए गए बयान में माओवादियों ने कहा है कि कांग्रेस के काफिले पर हुए हमले में वाहनों के ड्राइवर, खलासी और कांग्रेस के निचले स्तर के नेताओं की मौत हुई है। उसके लिए हमें खेद है।
नक्सलियों ने कहा है कि उनका निशाना महेन्द्र कर्मा थे और यह हमला सलवा जुडूम चलाने की वजह से किया गया था। माओवादियों ने बयान में कहा गया है कि महेन्द्र कर्मा का परिवार भूस्वामी होने के साथ-साथ आदिवासियों का अमानवीय शोषक और उत्पीड़क रहा है।
माओवादियों की चिट्ठी में आरोप लगाया गया है कि सलवा जुडूम के दौरान सैकड़ों महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया। साथ ही उसमें दावा किया गया है कि सलवा जुडूम के गुंडों और सरकारी सशस्त्र बलों ने एक हजार से ज्यादा आदिवासियों की हत्या की।
माओवादियों के बयान में कहा गया है कि रमन सिंह और महेन्द्र कर्मा के बीच कितना अच्छा तालमेल रहा, इसे समझने के लिए एक तथ्य काफी है कि मीडिया में कर्मा को रमन मंत्रिमंडल का सोलहवां मंत्री कहा जाने लगा था।
नक्सलियों के जोनल कमेटी के प्रवक्ता गुड्सा उसेंडी ने कहा कि कि राज्य के पूर्व गृहराज्य मंत्री रह चुके छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष नंदकुमार पटेल जनता पर दमनचक्र चलाने में आगे रहे थे। उसेंडी ने कहा कि पटेल के समय में ही बस्तर क्षेत्र में पहली बार अर्द्ध−सैनिक बलों की तैनाती की गई थी।
विद्याचरण शुक्ल पर हुए हमले के बारे में माओवादियों ने कहा कि केन्द्रीय मंत्रिमंडल में रहने वाले विद्याचरण ने साम्राज्यवादियों, पूंजीपतियों और ज़मीनदारों के वफादार प्रतिनिधि के रूप में शोषणकारी नीतियों को बनाने और लागू करने में सक्रिय भागीदारी निभाई।
अपने इस बयान में माओवादियों ने कहा है कि दमन की नीतियों को लागू करने में कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी की समान भागीदारी है और इसलिए संगठन ने कांग्रेस के बड़े नेताओं को निशाने पर लिया है।
उसेंडी ने कहा कि 1996 में बस्तर में छठी अनुसूची में लागू करने की मांग से एक बड़ा आंदोलन चला था, हालांकि उस आंदोलन का नेतृत्व मुख्य रूप से भाकपा ने किया था लेकिन भाकपा−माले ने भी उसमें सक्रिय भूमिका निभाई थी।
यह चिट्ठी बीबीसी को भेजी गई है। चिट्ठी के साथ-साथ रिकॉर्ड कराए गए बयान में माओवादियों ने कहा है कि कांग्रेस के काफिले पर हुए हमले में वाहनों के ड्राइवर, खलासी और कांग्रेस के निचले स्तर के नेताओं की मौत हुई है। उसके लिए हमें खेद है।
नक्सलियों ने कहा है कि उनका निशाना महेन्द्र कर्मा थे और यह हमला सलवा जुडूम चलाने की वजह से किया गया था। माओवादियों ने बयान में कहा गया है कि महेन्द्र कर्मा का परिवार भूस्वामी होने के साथ-साथ आदिवासियों का अमानवीय शोषक और उत्पीड़क रहा है।
माओवादियों की चिट्ठी में आरोप लगाया गया है कि सलवा जुडूम के दौरान सैकड़ों महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया। साथ ही उसमें दावा किया गया है कि सलवा जुडूम के गुंडों और सरकारी सशस्त्र बलों ने एक हजार से ज्यादा आदिवासियों की हत्या की।
माओवादियों के बयान में कहा गया है कि रमन सिंह और महेन्द्र कर्मा के बीच कितना अच्छा तालमेल रहा, इसे समझने के लिए एक तथ्य काफी है कि मीडिया में कर्मा को रमन मंत्रिमंडल का सोलहवां मंत्री कहा जाने लगा था।
नक्सलियों के जोनल कमेटी के प्रवक्ता गुड्सा उसेंडी ने कहा कि कि राज्य के पूर्व गृहराज्य मंत्री रह चुके छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष नंदकुमार पटेल जनता पर दमनचक्र चलाने में आगे रहे थे। उसेंडी ने कहा कि पटेल के समय में ही बस्तर क्षेत्र में पहली बार अर्द्ध−सैनिक बलों की तैनाती की गई थी।
विद्याचरण शुक्ल पर हुए हमले के बारे में माओवादियों ने कहा कि केन्द्रीय मंत्रिमंडल में रहने वाले विद्याचरण ने साम्राज्यवादियों, पूंजीपतियों और ज़मीनदारों के वफादार प्रतिनिधि के रूप में शोषणकारी नीतियों को बनाने और लागू करने में सक्रिय भागीदारी निभाई।
अपने इस बयान में माओवादियों ने कहा है कि दमन की नीतियों को लागू करने में कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी की समान भागीदारी है और इसलिए संगठन ने कांग्रेस के बड़े नेताओं को निशाने पर लिया है।
उसेंडी ने कहा कि 1996 में बस्तर में छठी अनुसूची में लागू करने की मांग से एक बड़ा आंदोलन चला था, हालांकि उस आंदोलन का नेतृत्व मुख्य रूप से भाकपा ने किया था लेकिन भाकपा−माले ने भी उसमें सक्रिय भूमिका निभाई थी।
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