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मातोश्री में उद्धव और राज की मुलाकात कितनी खास? BJP या शिंदे किसकी बढे़गी मुश्किलें, समझें मायने

उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे 5 जुलाई को हिंदी विरोध को लेकर साथ आए थे. उस वक्‍त उद्धव ठाकरे ने ऐलान किया था कि साथ आए हैं, साथ रहने के लिए. तभी से दोनों के बीच राजनीतिक गठबंधन के कयास लग रहे हैं, लेकिन राज ठाकरे फूंक-फूंककर अपने कदम आगे बढ़ा रहे हैं.

मातोश्री में उद्धव और राज की मुलाकात कितनी खास? BJP या शिंदे किसकी बढे़गी मुश्किलें, समझें मायने
  • राज ठाकरे ने उद्धव ठाकरे के जन्मदिन पर 13 सालों बाद मातोश्री जाकर बधाई दी, जिसे लेकर अटकलें लग रही हैं.
  • दोनों नेता अलग-अलग पार्टियों के प्रमुख हैं और बीते लगभग दो दशकों से एक-दूसरे के राजनीतिक प्रतिद्वंदी रहे हैं.
  • बीएमसी चुनाव से पहले यदि दोनों के बीच गठजोड़ होता है तो यह चुनावी समीकरणों को प्रभावित कर सकता है.
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मुंबई :

उद्धव ठाकरे के जन्मदिन पर राज ठाकरे बधाई देने के लिए मातोश्री पहुंचे. राज ठाकरे सार्वजनिक रूप से 13 सालों के बाद मातोश्री पहुंचे हैं. हम जब तक इसे भाइयों की मुलाकात के तौर पर देखते हैं तो यह सामान्‍य है, लेकिन जब हम उद्धव ठाकरे को शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) और राज ठाकरे को महाराष्‍ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख के रूप में देखते हैं तो कई राजनीतिक दलों की नींद उड़ जाती है, खासतौर पर बीएमसी चुनाव से पहले दोनों के बीच गठबंधन की अटकलों ने कई दलों की धड़कनों को बढ़ा दिया है.

उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे एक-एक राजनीतिक दलों के मुखिया हैं. दोनों 20 सालों से एक दूसरे के प्रतिद्वंद्वी रहे हैं. राज ठाकरे 2012 में बाला साहब ठाकरे के निधन के वक्‍त मातोश्री गए थे और उन्‍हें उस वक्‍त काफी तनाव का सामना करना पड़ा था. शिवसैनिक राज ठाकरे को देखकर भड़क गए थे और उनके सामने नारेबाजी की गई थी. इससे पहले, उद्धव ठाकरे के सीने में दर्द के बाद उन्‍हें लीलावती अस्‍पताल में भर्ती कराया गया था. उस वक्‍त बाला साहेब ने घबराकर उन्‍हें फोन किया था और मदद मांगी थी. तब राज ठाकरे लीलावती अस्‍पताल पहुंचे थे, जहां पर उद्धव ठाकरे की एंजियोग्राफी हुई थी. अस्‍पताल से छुट्टी मिलने के बाद राज ठाकरे ने कार को खुद ड्राइव किया था और उद्धव ठाकरे को घर तक पहुंचाया था.

निकाले जा रहे राजनीतिक मायने

2012 के बाद सार्वजनिक तौर पर यह पहली बार है जब राज ठाकरे मातोश्री गए हैं. उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे दोनों ही दो राजनीतिक पार्टियों के प्रमुख हैं. महाराष्‍ट्र की राजनीति के बड़े चेहरे हैं और एक-दूसरे के खिलाफ राजनीति करते रहे हैं. ऐसे में उनके मातोश्री जाने के राजनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं.

दोनों 5 जुलाई को हिंदी विरोध को लेकर भी एक साथ आए थे. उस वक्‍त उद्धव ठाकरे ने ऐलान किया था कि साथ आए हैं, साथ रहने के लिए. तभी से दोनों के बीच राजनीतिक गठबंधन के कयास लग रहे हैं, लेकिन राज ठाकरे फूंक-फूंककर अपने कदम आगे बढ़ा रहे हैं. उनकी ओर से ऐसा कोई संकेत नहीं दिया जा रहा है. नासिक में आयोजित कार्यकर्ता सम्‍मेलन में राज ठाकरे ने ऑफ द रिकॉर्ड कहा कि राजनीतिक गठबंधन होगा, यह कहना जल्‍दबाजी होगी.

मिलकर लड़ेंगे बीएमसी चुनाव?

अब राज ठाकरे मातोश्री पहुंचे हैं और दोनों भाई करीब आ रहे हैं. ऐसे में सियासी अटकलें तेज हैं और कयास लग रहे हैं कि यह करीबी सियासी करीबी में भी बदल सकती है. साथ ही हो सकता है कि बीएमसी चुनावों को लेकर दोनों के बीच गठजोड़ हो जाए और दोनों मिलकर बीएमसी का चुनाव लड़े.

ऐसे में सवाल होता है कि क्‍या इसका भाजपा को सियासी नुकसान होगा. मराठी वोट एक साथ आते हैं, उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के वोटर एक साथ आते हैं तो इसका चुनावी गणित पर किस तरह का असर पड़ेगा और इसमें एकनाथ शिंदे का क्‍या होगा.

उद्धव-राज साथ आए तो करेंगे कमाल?

उद्धव ठाकरे की शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के लिए बीएमसी चुनावों में जीत हासिल करना बेहद जरूरी है, क्‍योंकि बाल ठाकरे के विरासत पर उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे दोनों ही अपनी दावेदारी जता रहे हैं, लेकिन विधानसभा चुनावों में एकनाथ शिंदे की पार्टी ने उद्धव ठाकरे की पार्टी की अपेक्षा ज्‍यादा सीटें और ज्‍यादा प्रतिशत मत हासिल किए थे. ऐसे में शिंदे का बालासाहेब की विरासत पर अधिकार का दावा बीएमसी चुनाव में अच्‍छे प्रदर्शन से पुख्‍ता ही होगा. साथ ही यह यदि बीएमसी चुनाव में भी उद्धव ठाकरे की पार्टी हार जाती है तो यह उन्‍हें वर्तमान स्थिति से भी पीछे धकेल देगा.

वहीं भाजपा बीएमसी में एकनाथ शिंदे के साथ मिलकर अच्‍छा प्रदर्शन करती है तो यह महाराष्‍ट्र की राजनीति में उसकी जमीन को बेहद मजबूत ही करेगा. हालांकि उद्धव और राज ठाकरे के साथ आने से मराठी वोटों के एकनाथ शिंदे की अपेक्षा दोनों भाइयों की झोली में जाने की अटकलें लगाई जा रही हैं. साथ ही भाजपा के खिलाफ दम भर रही उद्धव ठाकरे की पार्टी को मुस्लिमों का वोट भी मिल सकता है. बीएमसी चुनाव में मुस्लिम आबादी का वोट भी अहम होता है. ऐसे में यह भाजपा के लिए मुश्किल खड़ी कर सकता है. 

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