
आज के दौर में योग और योगासन बहुत से लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन चुका है. महिलाएं हों या पुरुष या फिर बच्चे, सभी इसके फायदों से प्रेरित होकर अपनी जिंदगी में उतारने लगे हैं. लेकिन क्या आप 'प्रथम अंतरिक्ष योगी' के बारे में जानते हैं? कभी आपने सोचा है कि जीरो ग्रैविटी में योगासन करना कैसा होता होगा? जहां पर न हवा होती है, न गुरुत्वाकर्षण, वहां पर योग किया जाए तो क्या होगा? आज अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर हम आपको दुनिया के प्रथम अंतरिक्ष योगी के बारे में बताएंगे. ये हैं राकेश शर्मा. वही राकेश शर्मा, जिनके नाम भारत का पहला अंतरिक्ष यात्री होने का खिताब दर्ज है. राकेश शर्मा ने एनडीटीवी इंडिया से खास बातचीत में बताया कि जब उन्होंने अंतरिक्ष में योगासन किया तो क्या हुआ था.
राकेश शर्मा आज से करीब 41 साल पहले 3 अप्रैल 1984 को सोवियत संघ के सोयूज टी-11 रॉकेट में बैठकर अंतरिक्ष में गए थे और सैल्यूट 7 स्पेस स्टेशन पहुंचे थे. एनडीटीवी के साइंस एडिटर पल्लव बागला से बातचीत में राकेश शर्मा ने अपने अंतरिक्ष योगी बनने के सफर के बारे में विस्तार से चर्चा की थी. राकेश शर्मा ने बताया कि स्पेस में खुद को फिट रखना काफी मुश्किल होता है. वहां ग्रैविटी नहीं होती. ऐसे में शारीरिक रूप से काफी सक्रियता नहीं हो पाती. इसके लिए अंतरिक्ष यात्री तरह-तरह के उपाय करते हैं.
विंग कमांडर राकेश शर्मा ने बताया कि मैंने और रवीश सर ने लॉन्च से तीन-चार महीने पहले से इसकी तैयारी शुरू कर दी थी. (रवीश मल्होत्रा उस मिशन पर राकेश शर्मा के बैकअप थे). मैंने रूसी तरीके से ट्रेनिंग लेना बंद कर दिया था. इसके पीछे सोच ये थी कि हम देखना चाहते थे कि बाकी अंतरिक्ष यात्रियों के मुकाबले हम योगासन के जरिए खुद को किस तरह फिट रख सकते हैं और कितना. हम उड़ान के सभी चरणों जैसे कि लॉन्च से पहले, अंतरिक्ष में और पृथ्वी पर वापस आने के बाद के लिए खुद को तैयार करना चाहते थे.
वायुसेना के पायलट रहे राकेश शर्मा ने आगे बताया कि अंतरिक्ष की जीरो ग्रैविटी में योगासन करने का बिल्कुल अलग अनुभव रहा था. इससे हमने कई सबक भी सीखे. पृथ्वी पर जब आप योगासन करते हैं तो ग्रैविटी आपको बैलेंस कर लेती है. लेकिन अंतरिक्ष में यह सब नहीं था. इसके लिए हमने इलास्टिक की रस्सी से हार्नेस तैयार किया ताकि ग्रैविटी जैसा फील किया जा सके. लेकिन उसके साथ भी योगासन करना आसान नहीं था.
राकेश शर्मा ने आगे कहा कि वैसे अगर योग का कोई जानकार अंतरिक्ष में मुझे योगासन करते हुए देखता तो निराश हो जाता और सोचता कि मैं ये कैसा योग कर रहा हूं. लेकिन इससे हमने ये सबक सीखा कि अगर अंतरिक्ष में योगासन करना है तो ज्यादा बढ़िया हार्नेस ले जाना चाहिए.
क्या गगनयान मिशन के लिए चुने गए चार अंतरिक्ष यात्रियों के प्लान में भी योगासन को शामिल किया जाना चाहिए? इस सवाल पर राकेश शर्मा का कहना था कि जब हमने अंतरिक्ष में योगासन किया था, तब से लेकर अब बहुत वक्त बीत चुका है. लेकिन एक चीज जो नहीं बदली है, वो है मानव का शरीर विज्ञान. ऐसे में मुझे लगता है कि यह अब भी प्रासंगिक होगा. हालांकि इसका फैसला उन्हें ही करने दीजिए. मेरा मानना है कि शुरुआती कुछ उड़ानों के लिए ये ज्यादा जरूरी है कि सिस्टम को परखा जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि पूरे मिशन के दौरान वह भरोसेमंद बना रहे. ये प्रयोग तो बाद के चरणों में भी हो सकते हैं.
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