फर्जी डिग्री मामले में गिरफ्तार दिल्ली के पूर्व कानून मंत्री जितेंद्र सिंह तोमर को फिलहाल साकेत की सत्र अदालत से कोई राहत नहीं मिली है। कोर्ट ने उनकी अंतरिम जमानत पर सुनवाई 16 जून तक के लिए टाल दी है। कोर्ट ने पुलिस को कहा है कि वो इस मामले की सघन जांच करे। जांच एजेंसी अपनी जांच केवल डिग्री और मार्कशीट तक सीमित ना रखे, बल्कि कालेज की फीस, हाजिरी रजिस्टर और परीक्षा फार्म समेत तमाम दस्तावेज की भी छानबीन करे, क्योंकि पहले दस्तावेजी प्रक्रिया होती है। इसके बाद ही डिग्री मिलती है।
दरअसल, जितेंद्र तोमर ने सत्र अदालत में दो याचिका दाखिल की थी। एक अर्जी में तोमर की गिरफ्तारी को गैरकानूनी बताते हुए चुनौती दी गई थी, जबकि दूसरी में जमानत मांगी गई थी।
डॉक्यूमेंट्स पास नहीं है, अभी आदेश देना ठीक नहीं होगा : जज
मामले की सुनवाई कर रहे एडिशनल सेशन जज संजीव जैन ने कहा कि 'इस वक्त न तो जांच अधिकारी मौजूद है और न ही पुलिस के पास इस केस से संबंधित फाइल है, क्योंकि जांच अधिकारी आरोपी के साथ यूपी और बिहार में है। ऐसे में इस वक्त मामले में कोई टिप्पणी या फिर कोई आदेश देना ठीक नहीं होगा। फिलहाल वो अंतरिम जमानत याचिका पर ही सुनवाई कर सकते हैं। लिहाजा, मामले की सुनवाई 16 को होगी।'
पुलिस ने बचाव का वक्त तक नहीं दिया: वकील
कोर्ट में सुनवाई के दौरान तोमर की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील रमेश गुप्ता ने कहा कि पुलिस ने तोमर को अपने बचाव का वक्त नहीं दिया। वो इस मामले में अग्रिम जमानत तक नहीं ले पाए। वो दिल्ली के कानून मंत्री थे। ये कोई लूट या डकैती का मामला नहीं था। इसके अलावा पुलिस के पास केस डायरी भी नहीं है, जो सीधे-सीधे सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन है।
दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल फिर आमने-सामने
जितेंद्र तोमर के मामले में एक बार फिर दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल आमने-सामने है। इस केस में पुलिस ने सरकारी वकील का इस्तेमाल नहीं किया, बल्कि अपनी ओर से वकील खड़ा किया है। इस पर भी कोर्ट में आपत्ति जताई गई। तोमर के वकीलों ने साकेत कोर्ट में कहा कि सरकारी वकील की बजाए इस तरह बाहरी वकील नियुक्त नहीं किया जा सकता। कोर्ट के पूछने पर पुलिस की ओर से पेश तरुणजीत सिंह केहर ने कहा कि उन्हें इस केस के लिए उपराज्यपाल ने उन्हें नियुक्त किया है। उन्होंने कहा कि फिलहाल उनके पास एलजी का नोटिफिकेशन नहीं है, लेकिन वो बाद में कोर्ट को नोटिफिकेशन उपलब्ध करा देंगे। इस पर कोर्ट ने उन्हें पुलिस की तरफ से बहस करने की इजाजत दे दी और कहा कि वो अगली सुनवाई पर उक्त दस्तावेज दे दें। इससे पहले दिल्ली पुलिस ने सरकारी वकील लेने से इंकार कर दिया था, क्योंकि सरकारी वकील दिल्ली सरकार के अंर्तगत आते हैं। पुलिस को आशंका थी कि सरकारी वकील अपने ही कानून मंत्री के खिलाफ बहस नहीं कर सकते।
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