डोकलाम में भारत चीन सैनिक आमने सामने हैं.
नई दिल्ली:
भारत के पड़ोसी देश भूटान के पठार में स्थित डोकलाम, डोकलम, डोका ला या फिर कहें डोंगलांग को लेकर भारत और चीन के बीच पिछले महीने 16 तारीख से लगातार तनाव चला आ रहा है. इस तनाव का असर यह है कि भारत और चीन की ओर से इस इलाके में सैनिकों की संख्या बढ़ा दी गई है. साथ ही मौके से कुछ दूरी पर चीन ने हथियार और गोलाबारूद तक तैनात कर दिया है. भारत ने भी अपनी ओर से तैयारी करने में कोई कमी नहीं छोड़ी है. बताया जा रहा है कि 16 तारीख के बाद से भारत के झुकने के किसी प्रकार के संकेत नहीं मिलने के बाद चीन ने हजारों टन सैन्य सामग्री से लैस सैनिक दस्ते को सिक्किम बार्डर के लिए रवाना किया है. भारत ने डोकलाम पर अपना रुख स्पष्ट किया है कि वह यहां से पीछे हटने के लिए तैयार नहीं है. इसलिए भारतीय जवानों ने इलाके में अपने तंबू भी गाड़ दिए हैं.
कहा जा रहा है कि डोकलाम मुद्दे पर भारत के सख्त रुख को देखते हुए चीन ने यह कदम उठाया है जो उसकी पड़ोसी देशों पर दबाव बनाने की रणनीति का ही एक हिस्सा रहा है. लेकिन इस बार चीन के मंसूबे सफल होते नहीं दिख रहे हैं. यही कारण है कि चीन ने डोकलाम विवाद को नाक का प्रश्न बना लिया है. चीन ने यह साफ कहा है कि इस पूरे मामले पर वह भारत से बातचीत तब तक नहीं करेगा जब तक भारत अपने सैनिक नहीं हटाएगा. चीन ने यह भी कहा है कि यह विवाद भूटान और चीन के बीच का है और भारत को इसमें कूदने की जरूरत नहीं है. चीन कह रहा है कि भारत मामले में अनावश्यक दखलंदाजी कर रहा है.
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चीन ने उठाई अजित डोभाल पर उंगली : तनातनी के माहौल में बीजिंग में ब्रिक्स देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बैठक होनी है. भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजित डोभाल को इस सम्मेलन में जाना है. जानकार मानते हैं कि डोभाल के इस दौरे से भारत-चीन में सीमा विवाद पर कोई रास्ता निकल सकता है. 27-28 जुलाई को चीन जाएंगे डोभाल: चीनी विश्लेषक के मुताबिक, ब्रिक्स राष्ट्रों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बैठक के सिलसिले में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल की बीजिंग यात्रा भारत और चीन के बीच डोकलाम में जारी सैन्य गतिरोध को कम करने में महत्वपूर्ण हो सकता है. डोभाल को इस बैठक के लिये 27-28 जुलाई को चीन आना है. बैठक की मेजबानी उनके चीनी समकक्ष एवं स्टेट काउंसलर यांग जीइची करेंगे. यह बैठक ब्रिक्स देशों - ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका- के सितंबर में शियामेन शहर में प्रस्तावित शिखर सम्मेलन से पहले अधिकारियों की बैठकों की सीरीज का एक हिस्सा है.
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चीन के सरकारी मीडिया ने एक लेख में यह स्पष्ट लगा है कि इस पूरे विवाद के पीछे अजित डोभाल का दिमाग है. इस प्रकार के चीनी मीडिया के लेख यह साफ दर्शा रहे हैं कि डोभाल की यात्रा से कुछ खास निकलने वाला नहीं है.
क्या है डोकलाम विवाद?
समझें डोकलाम विवाद और समस्या : भूटान में डोकलाम को डोलम कहते हैं. करीब 300 वर्ग किलोमीटर का ये इलाका चीन की चुंबी वैली से सटा हुआ है. यह इलाका भारत के सिक्किम के नाथुला दर्रे के करीब है. इस जगह से नाथूला दर्रा केवल 15 किलोमीटर की दूरी पर है. इसलिए इस इलाके को ट्राई जंक्शन के नाम भी जाना जाता है. ये डैगर यानी एक खंजर की तरह का भौगोलिक इलाका है, जो भारत के चिकन नेक कहे जाने वाले सिलिगुड़ी कॉरिडोर की तरफ जाता है. चीन की चुंबी वैली का याटूंग यहां आखिरी शहर है. चीन इसी याटूंग शहर से लेकर विवादित डोकलाम इलाके तक सड़क बनाना चाहता है.
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चुंबी घाटी में स्थित डोकलाम सामरिक और रणनीतिक दृष्टि से भारत और चीन के लिए काफी अहम है. साल 1988 और 1998 में चीन और भूटान के बीच समझौता हुआ था कि दोनों देश डोकलाम क्षेत्र में शांति बनाए रखने की दिशा में काम करेंगे. वहीं, साल 1949 में भारत और भूटान के बीच एक संधि हुई थी जिसमें तय हुआ था कि भारत अपने पड़ोसी देश भूटान की विदेश नीति और रक्षा मामलों का मार्गदर्शन करेगा. साल 2007 में इस मुद्दे पर एक नई दोस्ताना संधि हुई जिसमें भूटान के भारत से निर्देश लेने की जरूरत को खत्म कर दिया गया और यह वैकल्पिक हो गया.
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डोकलाम पर चीन के दावे का कारण : चीन तमाम विवादित मुद्दों पर इतिहास की बात का तर्क देता रहा है. चीन के अनुसार डोकलाम नाम का इस्तेमाल तिब्बती चरवाहे पुराने चारागाह के रूप में करते थे. चीन का ये भी दावा है कि डोकलाम में जाने के लिए 1960 से पहले तक भूटान के चरवाहे उसकी अनुमति लेकर ही जाते थे. कहा जा रहा है कि ऐतिहासिक रूप से इसके कोई प्रमाण मौजूद नहीं हैं.
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भारत की चिंता : डोकलाम का इलाका भारत के लिए सामरिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण है. भारत के सिक्किम, चीन और भुटान के तिराहे पर स्थित डोकलाम पर चीन हाइवे बनाने की कोशिश में है और भारत इसी का विरोध कर रहा है. उसकी बड़ी वजह ये है कि अगर डोकलाम तक चीन की आसान पहुंच हो गई तो फिर वह भारत को पूर्वोत्तर राज्यों से जोड़ने वाली चिकन नेक तक अपनी पहुंच और आसान कर सकता है.
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युद्ध की स्थिति में डोकलाम में कब्जा होने का लाभ चीन को मिलेगा जिसकी जद में सिलिगुडी से लेकर उसके आसपास का इलाका आ जाएगा. अगर चीन डोकलाम में अपनी तोपें तैनात करता है तो उसकी जद में भारत का चिकन नेक वाला इलाका आएगा, जिससे पूर्वोत्तर से शेष भारत के कटने का खतरा बना रहेगा. बता दें कि चीन लंबे समय से अरुणाचल प्रदेश के काफी बड़े हिस्से पर अपना दावा करता रहा है और यह कहता रहा है कि यह उसका इलाका है. इतना ही नहीं चीन अरुणाचल प्रदेश के लोगों को नत्थी वीजा जारी करता था. इसके पीछे वह यही तर्क देता रहा कि यह लोग उसके अपने लोग हैं.
चीन के इस गुप्त एजेंडा को भारत समझता है इसलिए वह वहां ड्रैगन को किसी तरह की बढ़त देने के मूड़ में नहीं है. शुरुआत से ही चीन भारतीय सीमा के सामरिक इलाकों में अपनी बढ़त बनाने में लगा है. चीन ने तिब्बत के पहाड़ी इलाकों में सीमा तक बड़े हाइवे का निर्माण कर लिया है, जो युद्ध की स्थिति में चीन के सैन्य साजो सामान को चंद घंटों में ही भारतीय सीमा तक पहुंचा सकते हैं. वहीं कई स्थानों में भारत ने अभी तक यह काम नहीं किया है.
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डोकलाम विवाद के पीछे चीन की रणनीति? जानकारों की राय में चीन की विदेश नीति की तरह इसके पीछे की वजह को समझना भी कुछ दिक्कत भरा है. जिस इलाके (डोकलाम) में सड़क निर्माण को लेकर यह पूरा विवाद खड़ा हुआ, उसे लेकर भारत और चीन के बीच सीधा विवाद नहीं है. यह मामला भूटान और चीन के बीच का है. डोकलाम को भूटान अपना हिस्सा बताता है. भारत डोकलाम पर भूटान के दावे का समर्थन करता है. रिपोर्टों में कहा गया है कि चीन ने जब डोकलाम में सड़क निर्माण का काम शुरू किया तब भूटान के सैनिकों ने इसका विरोध किया और चीन ने भूटान के सैनिकों को पीछे धकेल दिया. जब चीन की दादागिरी नहीं थमी तक भारत को भूटान के लिए यहां पर दखल देना पड़ा क्यों भारत के लिए रणनीतिक तौर पर यह इलाका काफी महत्वपूर्ण है. यह तय है कि चीनी सैनिकों को सिर्फ भूटान के सैनिकों के विरोध की उम्मीद थी, जिन पर हावी होने का उन्हें पूरा यकीन था. लेकिन भारत के दखल से चीन को दिक्कत होने लगी.
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धीरे-धीरे इलाकों पर कब्जा करता चीन : पिछले कुछ समय से चीन की कुछ ऐसी ही रणनीति रही है कि वह अपने पड़ोसी देशों पर धीरे-धीरे कब्जा करता जा रहा है. उदाहरण के लिए साउथ चाइना सी जैसे क्षेत्र में भी चीन का ऐसा ही कर रहा है. वहां चीन पूरे इलाके पर अप्राकृतिक आइलैंड बना कर कब्जा करने की कोशिश कर रहा है. चीन इस इलाके में इस रणनीति के तहत काम करता रहा है कि पहले खाली पड़े इलाकों में अपने सैनिक भेजो, इलाके पर कब्जा करो और फिर चुनौती देने वाले को खुद वार करने के बजाय, उसे पहले हमला करने के लिए ललकारो.
पड़ोसी देशों पर दबदबा बनाने की चीनी रणनीति : भारत-चीन सीमा पर भी उसने यही रणनीति अपनाई. इसके नतीजे में दोनों देशों के बीच 1962 का युद्ध हुआ. हालांकि कुछ अपवाद भी हैं, पर ज्यादातर मामलों में चीन की रणनीति में यही रही है. चीन को यह पता है कि एक बार उसके सैनिकों का कब्जा किसी इलाके में हो गया, तो फिर अपनी जबरदस्त सैन्य ताकत के जरिए वह छोटे पड़ोसी देशों को दबा देगा. इसके बाद किसी भी देश पास यही विकल्प बचता है कि वह कूटनाति, अंतरराष्ट्रीय दबाव या अंतरराष्ट्रीय कानून का सहारा ले. लेकिन इन रास्तों के जरिए ज्यादा कुछ हासिल नहीं होता. अब तक तो अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पहुंचे देशों का यही हाल रहा है.
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भूटान की वर्तमान स्थिति : कुछ रिपोर्टों में जानकारों का मानना है कि चीन अपनी इस हरकत के जरिए भारत को भूटान से अलग थलग करना चाहता हो. वर्तमान में भूटान भी अपने स्तर पर चीन के कदम का विरोध कर रहा है. कुछ अंतराल में भारत-चीन के विवाद के बीच फंसने से बेहतर भूटान को यह लगे कि वह विवाद से अलग रहे और अपना रुख निष्पक्ष रखे, जो भारत के दूर हो और चीन के नजदीक. जानकार कहते हैं कि अगर ऐसा होता है तो चीन, भूटान को अपनी तरफ लाने के लिए उसे रियायतों की पेशकश कर सकता है. रिपोर्टों में कहा गया है कि इस शर्त पर कि भूटान के पास भारत के साथ अपने पारंपरिक सुरक्षा और राजनीतिक संबंध तोड़ने के अलावा ज्यादा विकल्प नहीं बचेगा. ऐसा कुछ होने पर भारत के लिए रणनीतिक और सामरिक चुनौती पैदा हो जाएगी.
कहा जा रहा है कि डोकलाम मुद्दे पर भारत के सख्त रुख को देखते हुए चीन ने यह कदम उठाया है जो उसकी पड़ोसी देशों पर दबाव बनाने की रणनीति का ही एक हिस्सा रहा है. लेकिन इस बार चीन के मंसूबे सफल होते नहीं दिख रहे हैं. यही कारण है कि चीन ने डोकलाम विवाद को नाक का प्रश्न बना लिया है. चीन ने यह साफ कहा है कि इस पूरे मामले पर वह भारत से बातचीत तब तक नहीं करेगा जब तक भारत अपने सैनिक नहीं हटाएगा. चीन ने यह भी कहा है कि यह विवाद भूटान और चीन के बीच का है और भारत को इसमें कूदने की जरूरत नहीं है. चीन कह रहा है कि भारत मामले में अनावश्यक दखलंदाजी कर रहा है.
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चीन ने उठाई अजित डोभाल पर उंगली : तनातनी के माहौल में बीजिंग में ब्रिक्स देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बैठक होनी है. भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजित डोभाल को इस सम्मेलन में जाना है. जानकार मानते हैं कि डोभाल के इस दौरे से भारत-चीन में सीमा विवाद पर कोई रास्ता निकल सकता है. 27-28 जुलाई को चीन जाएंगे डोभाल: चीनी विश्लेषक के मुताबिक, ब्रिक्स राष्ट्रों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बैठक के सिलसिले में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल की बीजिंग यात्रा भारत और चीन के बीच डोकलाम में जारी सैन्य गतिरोध को कम करने में महत्वपूर्ण हो सकता है. डोभाल को इस बैठक के लिये 27-28 जुलाई को चीन आना है. बैठक की मेजबानी उनके चीनी समकक्ष एवं स्टेट काउंसलर यांग जीइची करेंगे. यह बैठक ब्रिक्स देशों - ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका- के सितंबर में शियामेन शहर में प्रस्तावित शिखर सम्मेलन से पहले अधिकारियों की बैठकों की सीरीज का एक हिस्सा है.
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चीन के सरकारी मीडिया ने एक लेख में यह स्पष्ट लगा है कि इस पूरे विवाद के पीछे अजित डोभाल का दिमाग है. इस प्रकार के चीनी मीडिया के लेख यह साफ दर्शा रहे हैं कि डोभाल की यात्रा से कुछ खास निकलने वाला नहीं है.
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समझें डोकलाम विवाद और समस्या : भूटान में डोकलाम को डोलम कहते हैं. करीब 300 वर्ग किलोमीटर का ये इलाका चीन की चुंबी वैली से सटा हुआ है. यह इलाका भारत के सिक्किम के नाथुला दर्रे के करीब है. इस जगह से नाथूला दर्रा केवल 15 किलोमीटर की दूरी पर है. इसलिए इस इलाके को ट्राई जंक्शन के नाम भी जाना जाता है. ये डैगर यानी एक खंजर की तरह का भौगोलिक इलाका है, जो भारत के चिकन नेक कहे जाने वाले सिलिगुड़ी कॉरिडोर की तरफ जाता है. चीन की चुंबी वैली का याटूंग यहां आखिरी शहर है. चीन इसी याटूंग शहर से लेकर विवादित डोकलाम इलाके तक सड़क बनाना चाहता है.
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चुंबी घाटी में स्थित डोकलाम सामरिक और रणनीतिक दृष्टि से भारत और चीन के लिए काफी अहम है. साल 1988 और 1998 में चीन और भूटान के बीच समझौता हुआ था कि दोनों देश डोकलाम क्षेत्र में शांति बनाए रखने की दिशा में काम करेंगे. वहीं, साल 1949 में भारत और भूटान के बीच एक संधि हुई थी जिसमें तय हुआ था कि भारत अपने पड़ोसी देश भूटान की विदेश नीति और रक्षा मामलों का मार्गदर्शन करेगा. साल 2007 में इस मुद्दे पर एक नई दोस्ताना संधि हुई जिसमें भूटान के भारत से निर्देश लेने की जरूरत को खत्म कर दिया गया और यह वैकल्पिक हो गया.
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डोकलाम पर चीन के दावे का कारण : चीन तमाम विवादित मुद्दों पर इतिहास की बात का तर्क देता रहा है. चीन के अनुसार डोकलाम नाम का इस्तेमाल तिब्बती चरवाहे पुराने चारागाह के रूप में करते थे. चीन का ये भी दावा है कि डोकलाम में जाने के लिए 1960 से पहले तक भूटान के चरवाहे उसकी अनुमति लेकर ही जाते थे. कहा जा रहा है कि ऐतिहासिक रूप से इसके कोई प्रमाण मौजूद नहीं हैं.
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भारत की चिंता : डोकलाम का इलाका भारत के लिए सामरिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण है. भारत के सिक्किम, चीन और भुटान के तिराहे पर स्थित डोकलाम पर चीन हाइवे बनाने की कोशिश में है और भारत इसी का विरोध कर रहा है. उसकी बड़ी वजह ये है कि अगर डोकलाम तक चीन की आसान पहुंच हो गई तो फिर वह भारत को पूर्वोत्तर राज्यों से जोड़ने वाली चिकन नेक तक अपनी पहुंच और आसान कर सकता है.
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युद्ध की स्थिति में डोकलाम में कब्जा होने का लाभ चीन को मिलेगा जिसकी जद में सिलिगुडी से लेकर उसके आसपास का इलाका आ जाएगा. अगर चीन डोकलाम में अपनी तोपें तैनात करता है तो उसकी जद में भारत का चिकन नेक वाला इलाका आएगा, जिससे पूर्वोत्तर से शेष भारत के कटने का खतरा बना रहेगा. बता दें कि चीन लंबे समय से अरुणाचल प्रदेश के काफी बड़े हिस्से पर अपना दावा करता रहा है और यह कहता रहा है कि यह उसका इलाका है. इतना ही नहीं चीन अरुणाचल प्रदेश के लोगों को नत्थी वीजा जारी करता था. इसके पीछे वह यही तर्क देता रहा कि यह लोग उसके अपने लोग हैं.
चीन के इस गुप्त एजेंडा को भारत समझता है इसलिए वह वहां ड्रैगन को किसी तरह की बढ़त देने के मूड़ में नहीं है. शुरुआत से ही चीन भारतीय सीमा के सामरिक इलाकों में अपनी बढ़त बनाने में लगा है. चीन ने तिब्बत के पहाड़ी इलाकों में सीमा तक बड़े हाइवे का निर्माण कर लिया है, जो युद्ध की स्थिति में चीन के सैन्य साजो सामान को चंद घंटों में ही भारतीय सीमा तक पहुंचा सकते हैं. वहीं कई स्थानों में भारत ने अभी तक यह काम नहीं किया है.
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डोकलाम विवाद के पीछे चीन की रणनीति? जानकारों की राय में चीन की विदेश नीति की तरह इसके पीछे की वजह को समझना भी कुछ दिक्कत भरा है. जिस इलाके (डोकलाम) में सड़क निर्माण को लेकर यह पूरा विवाद खड़ा हुआ, उसे लेकर भारत और चीन के बीच सीधा विवाद नहीं है. यह मामला भूटान और चीन के बीच का है. डोकलाम को भूटान अपना हिस्सा बताता है. भारत डोकलाम पर भूटान के दावे का समर्थन करता है. रिपोर्टों में कहा गया है कि चीन ने जब डोकलाम में सड़क निर्माण का काम शुरू किया तब भूटान के सैनिकों ने इसका विरोध किया और चीन ने भूटान के सैनिकों को पीछे धकेल दिया. जब चीन की दादागिरी नहीं थमी तक भारत को भूटान के लिए यहां पर दखल देना पड़ा क्यों भारत के लिए रणनीतिक तौर पर यह इलाका काफी महत्वपूर्ण है. यह तय है कि चीनी सैनिकों को सिर्फ भूटान के सैनिकों के विरोध की उम्मीद थी, जिन पर हावी होने का उन्हें पूरा यकीन था. लेकिन भारत के दखल से चीन को दिक्कत होने लगी.
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धीरे-धीरे इलाकों पर कब्जा करता चीन : पिछले कुछ समय से चीन की कुछ ऐसी ही रणनीति रही है कि वह अपने पड़ोसी देशों पर धीरे-धीरे कब्जा करता जा रहा है. उदाहरण के लिए साउथ चाइना सी जैसे क्षेत्र में भी चीन का ऐसा ही कर रहा है. वहां चीन पूरे इलाके पर अप्राकृतिक आइलैंड बना कर कब्जा करने की कोशिश कर रहा है. चीन इस इलाके में इस रणनीति के तहत काम करता रहा है कि पहले खाली पड़े इलाकों में अपने सैनिक भेजो, इलाके पर कब्जा करो और फिर चुनौती देने वाले को खुद वार करने के बजाय, उसे पहले हमला करने के लिए ललकारो.
पड़ोसी देशों पर दबदबा बनाने की चीनी रणनीति : भारत-चीन सीमा पर भी उसने यही रणनीति अपनाई. इसके नतीजे में दोनों देशों के बीच 1962 का युद्ध हुआ. हालांकि कुछ अपवाद भी हैं, पर ज्यादातर मामलों में चीन की रणनीति में यही रही है. चीन को यह पता है कि एक बार उसके सैनिकों का कब्जा किसी इलाके में हो गया, तो फिर अपनी जबरदस्त सैन्य ताकत के जरिए वह छोटे पड़ोसी देशों को दबा देगा. इसके बाद किसी भी देश पास यही विकल्प बचता है कि वह कूटनाति, अंतरराष्ट्रीय दबाव या अंतरराष्ट्रीय कानून का सहारा ले. लेकिन इन रास्तों के जरिए ज्यादा कुछ हासिल नहीं होता. अब तक तो अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पहुंचे देशों का यही हाल रहा है.
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