देश में हरित क्रांति के जनक और महान वैज्ञानिक डॉ. एमएस स्वामीनाथन (MS Swaminathan) को आज पीएम नरेंद्र मोदी ने भारत रत्न देने का ऐलान किया है. बता दें कि पिछले साल डॉ. एमएस स्वामीनाथन का 98 साल की उम्र में निधन हो गया था. डॉ. एमएस स्वामीनाथन के निधन के बाद दिल्ली का एक गांव उन्हें शिद्दत से याद करता रहा है. साठ के दशक में जब देश अन्न के संकट से जूझ रहा था, तब डॉ. स्वामीनाथन ने गांववालों से कहा था कि मेरा सपना है कि आप खेती से इतने संपन्न हों कि गांव के हर घर के बाहर कार खड़ी हो. दिल्ली के इस गांव से डॉ. स्वामीनाथन और इंदिरा गांधी का भी रिश्ता रहा है. रवीश रंजन शुक्ला ने गांव के लोगों से बात की और बताया कि क्यों आज भी ये लोग डॉ. स्वामीनाथन और उस दौर को याद करते हैं.
It is a matter of immense joy that the Government of India is conferring the Bharat Ratna on Dr. MS Swaminathan Ji, in recognition of his monumental contributions to our nation in agriculture and farmers' welfare. He played a pivotal role in helping India achieve self-reliance in… pic.twitter.com/OyxFxPeQjZ
— Narendra Modi (@narendramodi) February 9, 2024
दिल्ली के लुटियन जोन से करीब 50 किमी दूर स्थित है जोंती गांव. करीब दस हजार की आबादी वाला यह गांव हरित क्रांति की शुरुआत करने वाला पहला गांव है. यहां 1967 की एक बीज शोधालय की इमारत आज भी मौजूद है, जहां से लाखों किसानों को हरित क्रांति के दौरान गेंहू के बीज दिए गए.
बीज शोधनालय का इंदिरा गांधी ने किया था उद्घाटन
ये बहुत छोटी इमारत है, लेकिन हरित क्रांति के वक्त इसे बड़े प्रतीक के तौर पर जाना जाता था. एक वक्त जोंती सीड कॉरपोरेशन था, इस बीज शोधनालय का उद्घाटन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने किया था और 1968 में हरित क्रांति की शुरुआत हुई थी.
बंपर पैदावार से किसानों के बीच पैदा हुआ भरोसा
इसी इमारत के पास हमें 65 साल के ओम प्रकाश और 63 साल के कुलदीप मिले. जिनके बाबा भूपेंदर सिंह को पहली बार डॉ. स्वामीनाथन ने 1964 में बीज दिए और उन्होंने अपने खेत में गेहूं की बंपर पैदावार करके किसानों के बीच भरोसा पैदा किया था. जोंती गांव के किसान कुलदीप के मुताबिक, हम लोग छोटे थे लेकिन जब भी स्वामीनाथन जी आते थे घर के सदस्य की तरह थे. इतनी प्रेरणा हम लोगों के अंदर भरते थे कि दिन रात मेहनत करें कि हर घर में कार हो. यही वजह है कि आज भी हमारे गांव में बढ़चढ़कर लोग खेती करते हैं.
देश के अन्य राज्यों के किसान ले जाने लगे थे बीज
गांव के ही किसान ओम प्रकाश के मुताबिक, मैं बारह साल का था जब स्वामीनाथन जी ने बीज हमारे बाबा को दिया था. जब गेंहू की पैदावार दुगनी हुई तो गांव वाले हैरान रह गए. उसके बाद तो पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश के तमाम बीज ले जाने लगे.
किसानों को मोटिवेट करने का बताया था तरीका
यह डॉ. स्वामीनाथन की मेहनत और प्रयोग का परिणाम है कि 60 के दशक में जोंती जैसे हजारों गांव के किसानों ने पैदावार बढ़ाकर भारत को खाद्यान्न में आत्म निर्भर बना दिया. राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ. अशोक सिंह डॉ. स्वामीनाथ का जोंती गांव से जुड़ाव बताते हैं. उन्होंने बताया कि पूसा संस्थान में इतनी जमीन नहीं थी कि हम बड़ी तादाद में बीज उत्पादित कर सके. इसलिए उन्होंने दिल्ली के जोंती गांव में परियोजना चलाई. कृषक सहभागिता संघ बनाया गया. उन्होंने बताया कि डॉ. स्वामीनाथन ने मुझे एक बार खुद बताया था कि जब हम किसी तकनीक को किसान के पास लेकर जाते हैं तो गरीब किसान के खेत में प्रदर्शन करना चाहिए, जिससे किसान मोटिवेट होते हैं कि जब वो पैदा कर सकता है तो हम क्यों नहीं.
हालांकि अब धरती के बढ़ते तापमान, घटते जलस्तर और किसानी में बढ़ती लागत के चलते जोंती गांव के किसान भी अब धीरे धीरे दूसरी फसलों की खेती की ओर मुड़ रहे हैं. ऐसी विपरीत परिस्थिति में उनको डॉ. एमएस स्वामीनाथन जैसे कृषि विशेषज्ञों की कमी और ज्यादा महसूस हो रही है, जो किसानों को नई चुनौती से निपटने का हौसला भर सके.
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