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This Article is From Sep 06, 2012

कोयला घोटाला : रातोंरात 113 करोड़ कमाए दर्डा परिवार ने!

नागपुर: दर्डा परिवार ने सिर्फ एक कोल ब्लॉक से रातों−रात 113 करोड़ की कमाई कर ली। जेएएस इन्फ्रा की हिस्सेदारी 10 रुपये शेयर के हिसाब से अपनी बनाई कंपनी आसरा बांका पॉवर को बेची और फिर आसरा पॉवर के शेयर 8800 से ऊपर की दर से निकाले। सिर्फ 10 फीसदी शेयर बेचकर अपनी कंपनी की हैसियत 1300 करोड़ रुपये कर ली। सिर्फ चार महीने पहले ये तमाशा हुआ।

दर्डा घराने ने बिना एक पैस खर्च किए कैसे 113 करोड़ कमा लिए इसकी कहानी दिलचस्प है। 2008 में जेएएस इन्फ्रा ने महुआगढ़ी कोल ब्लॉक के लिए अर्जी दी और 11 करोड़ टन कोयले का ठेका हासिल किया। बताया गया कि इसका कोयला बिहार में बांका के बिजलीघर के लिए इस्तेमाल होगा। जेएएस इन्फ्रा में दर्डा का दो फ़ीसदी हिस्सा है। सितंबर 2010 में दर्डा घराने ने एक और कंपनी आसरा बांका पावर लिमिटेड बनाई।

इसकी मिलकियत पूरी तरह दर्डा परिवार के पास रही। विजय, देवेंद्र, राजेंद्र और राजेंद्र के बेटे करन दर्डा के पास है। विजय दर्डा ने इसका उल्लेख संसद में अपनी संपत्ति बताते हुए किया है। दिसंबर और अप्रैल 2012 में जेएस इन्फ्रा ने आसरा बांका पावर लिमिटेड को 10 रुपये शेयर के हिसाब से अपने 5.8 लाख शेयर ट्रांसफ़र किए। इसके जरिये जिस कंपनी के पास न कोई परिसंपत्ति थी और ना ही इको ऐक्टिविटी उस आसरा बांका का जेएएस इन्फ्रा में सात फीसदी हिस्सा हो गया जिसके पास कोल ब्लॉक थे।

मार्च 2012 में आसरा बैंक ने अपने दस फ़ीसदी या 1,28,000 शेयर सात कंपनियों को 8882 रुपये प्रति शेयर के हिसाब से बेचे और 113 करोड़ रुपये बनाए। इन कंपनियों की पहचान अभी साफ़ नहीं है। सभी शेल (फर्जी) कंपनियां हैं। ये जायसवाल खुद हो सकते हैं जिन्होंने दर्डा परिवार को रिश्वत दी या कोई और पार्टी।

जो भी हो दर्डा परिवार ने बिना एक पैसा खर्च किए एक ऐसे कोल ब्लॉक और प्रोजेक्ट से 113 करोड़ रुपये बनाए जो अभी ज़मीन पर था ही नहीं। और वह भी कोयला विवाद शुरू होने से सिर्फ़ चार महीने पहले। वह भी बस 10 फ़ीसदी शेयर बेचकर। इसका मतलब है कंपनी की कुल हैसियत 1130 करोड़ की हो गई।

कोयला आवंटन विवाद में सीबीआई ने जिन पांच कंपनियों पर छापे मारे उनमें से कई का संबंध नागपुर के मनोज जायसवाल के अभिजीत ग्रुप से है। 53 साल के मनोज की महिमा कम नहीं। दोनों जायसवाल परिवार कानपुर से हैं। और दोनों के ही ससुराल कोलकाता में हैं। रिश्ते भी ससुराल पक्ष से ही होने की बातें कही जा रही हैं।

नागपुर के अभिजीत ग्रुप की कई कंपनियां बिजली, सड़कें, माइनिंग, स्टील, सीमेंट और टोल कलेक्शन में काम करती हैं। नागपुर की इंजीनियरिंग कंपनी नेको के मालिक बसंत लाल शॉ के दूसरे बेटे हैं मनोज तीन दशकों तक पिता की कंपनी में अपनी सेवाएं देते रहें लेकिन बाद में मनोज ने अपना अलग रास्ता चुना।

2005 में अभिजीत ग्रुप की स्थापना की। वह ग्रुप जिसकी कंपनियों को कुल छह कोल ब्लॉक आवंटित हुए। सभी ब्लॉक को जोड़ दें तो कोयले का स्टॉक कुल 444 मिलियन टन है। शायद ये मनोज जायसवाल का रसूख ही था कि जो छह में से पांच झारखंड के ब्लॉक उन्हें दिए गए।

बड़े नेताओं से निजी दोस्ती रखने वाले मनोज की राज्यसभा सांसद विजय दर्डा से नज़दीकियां छिपी नहीं हैं। उनके पारिवारिक समारोह में दर्डा पारिवारिक सदस्य की तरह शरीक होते रहे हैं। मनोज कई मौक़ों पर विजय दर्डा को अपना मार्गदर्शक बता चुके हैं। दर्डा की जेएलडी पॉवर यवतमाल नामक कंपनी से मनोज जुड़े हैं। तो मनोज की एएमआर आयरन एंड स्टील नामक जिस कंपनी के ख़िलाफ़ सीबीआई ने एफ़आईआर दायर की, उससे दर्डा के भी संबंध बताए गए हैं।

साथ−साथ का यह रंग कोयला खदानों से आगे आकर खेल के मैदानों पर भी दिखा है। विजय दर्डा ने एक स्थानीय फुटबॉल टूर्नामेंट कराया। इसमें मनोज की टीम भी उतरी। नाम है अभिजित लायंस।

पेज थ्री की तस्वीरों में छपने वाले मनोज ने पिछले साल सौ करोड़ का हवाई जहाज़ बॉम्बार्डियर चैलंजर 605 ख़रीदा। अभिजीत ग्रुप का माइनिंग कारोबार विदेशों तक फैला है। सरकारी नौकरियों से रिटायर्ड कई बड़े अफसर इस ग्रुप को अपनी सर्विस देते रहे हैं।

हालांकि कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने मनोज जायसवाल से अपने रिश्ते की बात को खारिज किया है लेकिन, दोनों की नज़दीक़ियां साफ हैं। कहा जा रहा है कि इन्हीं नज़दीकियों के चलते उन्हें कोयले के ब्लॉक्स दिए गए। दोनों जायसवाल परिवार कानपुर से हैं और दोनों की ससुराल कोलकाता में है। रिश्ते भी ससुराल पक्ष से ही होने की बातें कही जा रही हैं।

सीबीआई ने जिन लोगों और कंपनियों के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज की है उनमें दर्डा परिवार के अलावा नवभारत ग्रुप भी है। सीबीआई ने अपनी चार्जशीट में बताया है कि इन लोगों ने किस तरह जालसाज़ी कर ये कोल ब्लॉक हासिल किए।

उद्योगपति और एक अख़बार घराने के मालिक विजय दर्डा कांग्रेस के सांसद हैं। उनके भाई राजेंद्र दर्डा महाराष्ट्र सरकार में स्कूली शिक्षा मंत्री हैं। फिर भी सीबीआई ने उन पर हाथ डालने की हिम्मत दिखाई तो इसलिए कि सीबीआई के दावे के मुताबिक उसके पास गड़बड़ी के पुख्ता सबूत हैं। सीबीआई के मुताबिक दर्डा और उसके परिवार ने छह ब्लॉक्स के लिए अर्ज़ी देते हुए ये बात छुपा ली थी कि उसके पास पहले से ही कोल ब्लॉक हैं वरना वे कोल ब्लॉक हासिल करने के हक़दार नहीं रह पाते। इसीलिए सीबीआई ने इनके ख़िलाफ़ जालसाज़ी का मामला बनाया है।

सीबीआई ने अपनी एफआईआर में कई और कंपनियों की गड़बड़ी के तौर तरीके का ज़िक्र किया है। मिसाल के तौर पर नवभारत पावर ने ब्लॉक के लिए अर्ज़ी देते वक्त दो अंतरराष्ट्रीय बिजली कंपनियों के साथ शॉर्ट टर्म एमओयू के आधार पर अपनी आर्थिक हैसियत एक लाख करोड़ की दिखाई। उन्होंने सिंगापुर की एक कंपनी से 90 दिन का एमओयू दिखाकर ओडिशा में दो ब्लॉक हासिल किए। तब उन्होंने अपनी नेट वर्थ 2000 करोड़ की दिखाई थी। इसके बाद कंपनी ने एक दूसरी ग्लोबल कंपनी के साथ एमओयू दिखाया जिसकी नेट वर्थ एक लाख करोड़ रुपये थी। लेकिन, नवभारत के दावे को साबित करने के लिए कोई दस्तावेज़ नहीं थे।

सीबीआई इस बात की भी जांच कर रही है कि प्रमोटर्स ने लाइसेंस लेने के बाद कैसे रातोंरात मुनाफ़ा बनाया। नवभारत के मामले में कंपनी के निदेशकों त्रिविक्रमा प्रसाद और वाई हरीशचंद्र प्रसाद ने एस्सार पॉवर को कंट्रोलिंग स्टेक बेचे और 200 करोड़ से ज्यादा का मुनाफ़ा बनाया। बाकी कंपनियों ने भी यही तरीक़ा अख्तियार किया। सीबीआई इस मामले में जल्द और एफ़आईआर भी दर्ज करने जा रही है।
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