
सरकार ने 2027 में जातिगत गणना के साथ भारत की 16वीं जनगणना कराने के लिए अधिसूचना जारी कर दी है. लद्दाख जैसे बर्फीले क्षेत्रों में जनगणना एक अक्टूबर 2026 से और देश के बाकी हिस्सों में एक मार्च 2027 से की जाएगी. वहीं, देश में 94 साल बाद जाति जनगणना की जाएगी. आम नागरिकों की जाति से जुड़ी जानकारी जनगणना के दूसरे चरण में इकट्ठा की जाएगी.
सबसे जरूरी होगा की जाति गणनाकर्ता को जातियों और उपजातियां के बारे में विश्वसनीय तरीके से जानकारी इकट्ठा करने के लिए साइंटिफिक ट्रेनिंग दी जाए. आम नागरिकों को भी यह समझना जरूरी होगा कि वह अपनी जाति या उपजाति के बारे में सही जानकारी किस तरह जनगणना अधिकारियों के साथ साझा करें. 2011 में जो आर्थिक जाति जनगणना किया गया वह सफल नहीं रहा था. उसमें कई खामियां थी, जिस वजह से आंकड़ों को सार्वजनिक नहीं किया जा सका.
जाति जनगणना के दौरान हर जाति और उपजाति के नागरिकों की आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक स्टेटस से जुड़ी जानकारी साइंटिफिक तरीके से इकट्ठा करने के लिए फ्रेमवर्क तैयार करना होगा. अलग-अलग जातियों और उपजातियां की महिलाओं के आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक, स्वास्थ्य और साक्षरता के स्तर के बारे में जानकारी इकट्ठा करना महत्वपूर्ण होगा.
इससे समाज में ऊंची और पिछड़ी जातियों की महिलाओं की आर्थिक, शैक्षणिक और स्वास्थ्य स्टेटस के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिलेगी. जातियों और उपजातियां की जनगणना से देश में सरकारी नीतियों और योजनाओं की डिजाइन और कार्यान्वयन को और कारगर बनाने में बहुत मदद मिलेगी.
आज़ादी के बाद पहली बार होगी जाति की गिनती
इस बार की जनगणना प्रक्रिया ख़ास है क्योंकि भारत की आज़ादी के बाद पहली बार जनगणना में जातियों की गिनती भी की जाएगी. इसके लिए जनगणना की प्रश्नावली में जाति का एक नया कॉलम बनाया जाएगा. जाति की गिनती पिछले कुछ सालों से एक बड़ा राजनीतिक और चुनावी मुद्दा बन चुका है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी के साथ आरजेडी और समाजवादी पार्टी जैसी विपक्षी पार्टियां लागतार सरकार पर जाति जनगणना करने का दबाव बना रही थीं.
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