पिछले कुछ महीनों से नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के बीच एक समझ विकसित हो रही थी कि अब समय आ गया है कि दोनों को हाथ मिलाकर चलना होगा. 2015 से 2017 के बीच राजद, जदयु और कांग्रेस की मिलीजुली सरकार थी. बाद में नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव और उनके भाई तेजप्रताप यादव पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए अपना समर्थन वापस ले लिया था और भाजपा के साथ नई सरकार का गठन किया.
मई में, नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव द्वारा अपने घर पर आयोजित एक इफ्तार पार्टी में शामिल हुए. इसी तरह, जब तेजस्वी यादव नीतीश कुमार की इफ्तार पार्टी में शामिल हुए, तो मुख्यमंत्री ने उन्हें सम्मान देते हुए उनको गेट तक छोड़ने आए.
उसके बाद, जब तेजस्वी के पिता लालू यादव के खिलाफ भ्रष्टाचार का एक नया मामला दर्ज किया गया, तो न तो मुख्यमंत्री और न ही उनकी पार्टी जनता दल यूनाइटेड ने इस मामले पर कोई टिप्पणी जारी की. उनकी चुप्पी को लालू यादव के लिए समर्थन को तौर पर देखा गया.
सबसे हालिया विधानसभा सत्र के दौरान, जो जून में समाप्त हुआ, तेजस्वी यादव और उनके विधायकों ने नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली सरकार की आलोचना करने से इनकार कर दिया.
जब लालू यादव को गंभीर रूप से बीमार थे तो नीतीश न सिर्फ उन्हें अस्पताल देखने गए बल्कि व्यक्तिगत रूप से उनकी यात्रा सहित सभी व्यवस्थाओं की निगरानी भी करते रहे. पिछले रविवार को जब तेजस्वी यादव की पार्टी ने मूल्य वृद्धि के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया तो सुरक्षा की पर्याप्त व्यवस्था की गई. इसे एक तरह से नीतीश कुमार का समर्थन के तौर पर ही देखा गया.
जब केंद्र ने कहा कि जाति जनगणना नहीं हो सकती है, तो नीतीश कुमार ने सभी दलों की बैठक बुलाई और घोषणा की कि बिहार में जातियों की गिनती होगी. इसके सबसे बड़े पैरोकार तेजस्वी यादव थे।
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