बतौर मुख्यमंत्री जब भूपिंदर सिंह हुड्डा ने रविवार के दिन अपने बंगले पर सूचना आयुक्तों को शपथ दिलाई थी तब विपक्ष में बैठी बीजेपी ने खूब शोर मचाया था। पार्टी के नेता राज्यपाल के पास ज्ञापन लेकर पहुंच गए थे, लेकिन अब सरकार बनने के बाद बीजेपी की खट्टर सरकार को नियुक्ति में कोई खोट नज़र नहीं आ रहा।
पिछले साल जुलाई में नए राज्यपाल कप्तान सिंह सोलंकी की नियुक्ति से महज कुछ घंटे के भीतर मुख्यमंत्री हुड्डा ने नियुक्ति पत्र जारी होने का इंतज़ार किए बगैर दो सूचना आयुक्तों और राइट टू सर्विस आयोग के तीन आयुक्तों को खुद ही शपथ दिलाई थी, जबकि ये काम राज्यपाल को करना था। जिन पांच लोगों को शपथ दिलाई गई उनके हुड्डा के करीबी रिटायर्ड नौकरशाह और उनके राजनीतिक सलाहकार की पत्नी शामिल थे।
इस जल्दबाजी की वजह थी आईएएस अफसर प्रदीप कासनी जो उस वक़्त प्रसाशनिक सुधार महकमे में सचिव थे। कासनी ने ये कहते हुए नियुक्ति पत्रों पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया था कि जिन दो लोगों को सूचना आयुक्त बनाया जा रहा है वो नियुक्ति प्रक्रिया के दौरान लाभ के पद पर तैनात थे और नियुक्ति से सम्बंधित फाइल में कई जगह काट-छांट की गई है जिससे गड़बड़ी की आशंका नज़र आती है। बहरहाल, इस रुख के लिए हुड्डा सरकार ने उनका फ़ौरन तबादला कर दिया था।
एक एनजीओ की याचिका पर पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान खट्टर सरकार ने जो बयान दिया है वह चौकाने वाला है। प्रसाशनिक सुधार महकमे के मौजूदा सचिव ने हाई कोर्ट को बताया है कि चयन प्रक्रिया में पूरी पारदर्शिता बरती गई और दोनों नियुक्तियां नियम कानून के तहत की गई हैं।
आईएएस अफसर अशोक खेमका के बाद कासनी दूसरे ऐसे नौकरशाह हैं जिनसे सत्ता में आने के बाद बीजेपी ने किनारा कर लिया है। खेमका की ही तरह कासनी के तबादले पर बीजेपी ने विपक्ष में रहते हुए खूब हो हल्ला मचाया था।
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