
नई दिल्ली:
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की शुक्रवार को संसद परिसर में पीएम नरेंद्र मोदी से मुलाकात को लेकर अब कांग्रेस की तरफ से कोई जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं दिखता. इस मुलाकात के बाद बड़ी मुश्किल से शीतकालीन सत्र में एकजुट हुए विपक्ष की एकता में दरार पड़ने का खतरा पैदा हो गया.
शीतकालीन सत्र के अंतिम दिन राहुल गांधी ने पीएम मोदी से उस वक्त मुलाकात की जब उसके कुछ क्षण बाद कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी दल नोटबंदी के सवाल पर राष्ट्रपति से मिलने वाले थे. वे राष्ट्रपति को यह बताने के लिए जाने वाले थे कि प्रधानमंत्री की 500 और 1000 रुपये की अचानक घोषणा के बाद से आम लोगों को बेहद दुश्वारियों का सामना करना पड़ रहा है. कांग्रेस के इस कदम से लेफ्ट समेत खफा विपक्षी दलों ने फौरी तौर पर घोषणा करते हुए कहा कि वह उस मार्च में शामिल नहीं होंगे.
माना जा रहा है कि कांग्रेस की तरफ से दो सप्ताह पहले प्रधानमंत्री से मुलाकात के लिए अप्वाइंटमेंट मांगा गया था. दरअसल कांग्रेस किसानों से मिली मांगों की सूची उनको सौंपना चाहती थी. दूसरी तरफ नोटबंदी के मसले पर विपक्षी एकजुटता के सामने लगातार घिर रही सरकार ने ऐन मौके पर मुलाकात का समय देकर उस एकता को तोड़ दिया.
दरअसल इस मसले पर कांग्रेस के भीतर नाराजगी और आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है और राहुल गांधी के नेतृत्व वाली युवा टीम और सोनिया के विश्वस्त पुराने दिग्गजों के बीच कलह एक बार फिर सतह पर आ गई है.
कांग्रेसी नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इन रिपोर्टों का खंडन किया है कि उन्होंने पीएम मोदी से इस मुलाकात के लिए समय मांगा था. लेकिन यह भी कहा कि एक बार मुलाकात का समय तय होने के बाद राहुल गांधी के लिए उसको नजरअंदाज करना मुमकिन नहीं था. दरअसल कुछ समय पहले राहुल गांधी ने यूपी के किसानों से मुलाकात के बाद कहा था कि वह निजी तौर पर उनकी मांगों को पीएम मोदी तक पहुंचाएंगे. उल्लेखनीय है कि यूपी में अगले साल की शुरुआत में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं.
संसद में कांग्रेस की रणनीति बनाने वाले पार्टी के वरिष्ठ नेताओं गुलाम नबी आजाद और आनंद शर्मा ने भी खंडन किया कि वे उस मीटिंग में राहुल की उपस्थिति चाहते थे.
सूत्रों के मुताबिक विपक्षी दलों ने कांग्रेस से आग्रह किया था कि राहुल गांधी की इस मीटिंग को किसी अन्य दिन के लिए टाल दिया जाना चाहिए. उसकी बड़ी वजह यह थी कि पूरे शीतकालीन सत्र के दौरान नोटबंदी के मसले पर विपक्ष की तरफ से मोर्चा लेने में राहुल की मुख्य भूमिका रही थी. लेकिन कुल मिलाकर ऐसा संभव नहीं हो सका.
इस संबंध में एनसीपी नेता प्रफुल पटेल ने कहा, ''कांग्रेस ने अकेले ही पीएम मोदी से मिलने का निश्चय किया. यह कोई तरीका नहीं है.'' इसी तरह बसपा के एक नेता ने कहा कि क्या हम किसानों के पलायन से चिंतित नहीं हैं? सपा की तरह बसपा भी राष्ट्रपति से मिलने नहीं पहुंची.
कांग्रेस के भीतर इस मामले में नाराजगी भरी सुगबुगाहट हो रही है. दरअसल उसके दो दिन पहले ही राहुल गांधी ने दावा किया था कि उनके पास पीएम मोदी के 'निजी भ्रष्टाचार' के संबंध में जानकारी है और यदि उनको संसद में बोलने का मौका दिया गया तो वह उसका पर्दाफाश कर देंगे. लेकिन सत्र के अंतिम दिन उसको उजागर करने के बजाय पीएम मोदी से राहुल गांधी मुलाकात करने चले गए. वहीं दूसरी तरफ लोकसभा में सदन चलने का इतना मौका दे दिया कि दिव्यांगों के अधिकार से संबंधित बिल पास हो गया.
शीतकालीन सत्र के अंतिम दिन राहुल गांधी ने पीएम मोदी से उस वक्त मुलाकात की जब उसके कुछ क्षण बाद कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी दल नोटबंदी के सवाल पर राष्ट्रपति से मिलने वाले थे. वे राष्ट्रपति को यह बताने के लिए जाने वाले थे कि प्रधानमंत्री की 500 और 1000 रुपये की अचानक घोषणा के बाद से आम लोगों को बेहद दुश्वारियों का सामना करना पड़ रहा है. कांग्रेस के इस कदम से लेफ्ट समेत खफा विपक्षी दलों ने फौरी तौर पर घोषणा करते हुए कहा कि वह उस मार्च में शामिल नहीं होंगे.
माना जा रहा है कि कांग्रेस की तरफ से दो सप्ताह पहले प्रधानमंत्री से मुलाकात के लिए अप्वाइंटमेंट मांगा गया था. दरअसल कांग्रेस किसानों से मिली मांगों की सूची उनको सौंपना चाहती थी. दूसरी तरफ नोटबंदी के मसले पर विपक्षी एकजुटता के सामने लगातार घिर रही सरकार ने ऐन मौके पर मुलाकात का समय देकर उस एकता को तोड़ दिया.
दरअसल इस मसले पर कांग्रेस के भीतर नाराजगी और आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है और राहुल गांधी के नेतृत्व वाली युवा टीम और सोनिया के विश्वस्त पुराने दिग्गजों के बीच कलह एक बार फिर सतह पर आ गई है.
कांग्रेसी नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इन रिपोर्टों का खंडन किया है कि उन्होंने पीएम मोदी से इस मुलाकात के लिए समय मांगा था. लेकिन यह भी कहा कि एक बार मुलाकात का समय तय होने के बाद राहुल गांधी के लिए उसको नजरअंदाज करना मुमकिन नहीं था. दरअसल कुछ समय पहले राहुल गांधी ने यूपी के किसानों से मुलाकात के बाद कहा था कि वह निजी तौर पर उनकी मांगों को पीएम मोदी तक पहुंचाएंगे. उल्लेखनीय है कि यूपी में अगले साल की शुरुआत में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं.
संसद में कांग्रेस की रणनीति बनाने वाले पार्टी के वरिष्ठ नेताओं गुलाम नबी आजाद और आनंद शर्मा ने भी खंडन किया कि वे उस मीटिंग में राहुल की उपस्थिति चाहते थे.
सूत्रों के मुताबिक विपक्षी दलों ने कांग्रेस से आग्रह किया था कि राहुल गांधी की इस मीटिंग को किसी अन्य दिन के लिए टाल दिया जाना चाहिए. उसकी बड़ी वजह यह थी कि पूरे शीतकालीन सत्र के दौरान नोटबंदी के मसले पर विपक्ष की तरफ से मोर्चा लेने में राहुल की मुख्य भूमिका रही थी. लेकिन कुल मिलाकर ऐसा संभव नहीं हो सका.
इस संबंध में एनसीपी नेता प्रफुल पटेल ने कहा, ''कांग्रेस ने अकेले ही पीएम मोदी से मिलने का निश्चय किया. यह कोई तरीका नहीं है.'' इसी तरह बसपा के एक नेता ने कहा कि क्या हम किसानों के पलायन से चिंतित नहीं हैं? सपा की तरह बसपा भी राष्ट्रपति से मिलने नहीं पहुंची.
कांग्रेस के भीतर इस मामले में नाराजगी भरी सुगबुगाहट हो रही है. दरअसल उसके दो दिन पहले ही राहुल गांधी ने दावा किया था कि उनके पास पीएम मोदी के 'निजी भ्रष्टाचार' के संबंध में जानकारी है और यदि उनको संसद में बोलने का मौका दिया गया तो वह उसका पर्दाफाश कर देंगे. लेकिन सत्र के अंतिम दिन उसको उजागर करने के बजाय पीएम मोदी से राहुल गांधी मुलाकात करने चले गए. वहीं दूसरी तरफ लोकसभा में सदन चलने का इतना मौका दे दिया कि दिव्यांगों के अधिकार से संबंधित बिल पास हो गया.
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